Bap-Dada's LATEST & FINAL part

DEDICATED to Om Mandli ‘Godly Mission’ to present posts regarding the LATEST & FINAL part of BapDada of World Purification & World TRANSFORMATION – through Divine Mother Devaki - SAME soul of 'Mateshwari', Saraswati Mama.
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
24.06.2023 - संगारेड्डी, (तेलंगाना)

सरस्वती मम्मा स्मृति दिवस

"मीठे बच्चे .. आज सभी स्मृति दिवस मनाते हैं, और बाप-दादा मम्मा का बर्थडे मनाते हैं। आप मृत्यु दिवस मनाते, और बाप जन्म दिवस मनाते हैं। .. सिर्फ मम्मा यादों में नहीं, अब प्रैक्टिकल में है!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=eaklPzz655Y

अच्छा .. बाप से मिलने के लिए कितना इंतजार किया है? आज पूरे विश्व में कौनसा दिन मनाया जा रहा है? [जगदम्बा दिवस, मम्मा स्मृति दिवस] वो स्मृति दिवस मनाते हैं - और आप? और आप? आप क्या करते हैं? आप क्या करते हैं? आप उनके साथ रहते हैं! यह सारा संसार स्मृति दिवस मनाता है, और पाठ पढ़ता है कि हम मम्मा जैसे बनके रहेंगे। पर जो मम्मा पुनर्जन्म लेके आयी, उसको गालियाँ देते हैं। जो पुराना शरीर छूट गया उसको याद करके रोते हैं, जो नया शरीर लिया उसको गाली देते हैं। वंडरफुल ड्रामा है! वंडरफुल खेल है! क्योंकि ड्रामा भी क्या कहेंगे - वंडरफुल क्यों है? क्योंकि किसी को भी याददाश्त ही नहीं है कि मम्मा कौन है, कहाँ है? सोचते हैं – ‘जैसे पहले दिखती होगी आज भी ऐसे दिखेगी’। सबसे बड़ा धोखा खाते हैं। *तो जो धोखे में हैं, उन सभी बच्चों को बाप-दादा कह रहे हैं - अभी भी समय है, इस धोखे से बाहर निकलें। वो तो वो है जो अभी तक मिले ही नहीं हैं - पर जो मिल रहे हैं, जो करीबी हैं, उनके मन में भी संशय आता है।* उनके मन में भी यह अभी तक भ्रम है, कि ‘क्या सच में यह वही आत्मा है? वो तो ऐसी थी, वो तो ऐसी थी!’

तो आज बाप कहते हैं - हाँ, यह वही है। इस वहम से ऊपर उठो। *यह वही ‘मम्मा’, वही ‘जगदंबा’ है, वही ‘सरस्वती’ है, वही ‘आदि शक्ति’ है।* तो जो करीबी बच्चे हैं, उन बच्चों को विशेष बाप का संदेश कहना - इस भ्रम से ऊपर उठे, बाहर निकले। *सिर्फ मम्मा यादों में नहीं, अब प्रैक्टिकल में है!* तो हर एक बच्चे को यह बाप का संदेश देना - कि यह भूल अब नहीं होनी चाहिए। बाप से मिलने के बाद यह भूल नहीं होनी चाहिए। *आज सभी स्मृति दिवस मनाते हैं, और बाप-दादा मम्मा का बर्थडे मनाते हैं। आप मृत्यु दिवस मनाते, और बाप जन्म दिवस मनाते हैं। इसलिए हर कोई को यह बाप का मैसेज पहुँचाए - जो कर सकते हैं।*

वैसे भी - वैसे भी भले पुराने शरीर को बुद्धि में रखके याद किया कि यह मम्मा थी - पर मेजॉरिटी बच्चों के दिल में कहीं ना कहीं यह शिकिल भी बैठ गई है, चाहे ईर्ष्या वश हो, चाहे प्रेम वश हो, चाहे यह सोचके हो कि, ‘देखो, अपने आपको मम्मा कहती है!’ *मेजोरिटी ब्राह्मणों की बुद्धि में आज यह शिकिल छप गई है। तो अब देखो अगर आपने पक्का किया है कि हम याद नहीं करेंगे, तब भी आप याद ही कर रहे हैं। तब भी स्मृति दिवस या जन्म दिवस ही मना रहें हैं। जिसने इस शरीर को - बुद्धि में जिनकी फोटो बनी है, वो जन्म दिवस मना रहे हैं। जो पुरानी फोटो को लेके बैठा वो - वो कौनसा दिवस? वो मरण दिवस मना रहे हैं।* यह - यह पक्का - कई बच्चे डाउट में होते हैं, *तो आज बाप यह पक्का लिख के, स्टैंप मार के कह रहे हैं - यह ‘जगदंबा’, ‘सरस्वती’, और ‘आदि शक्ति’ है। यह बाप कह रहे हैं, परमधाम निवासी कह रहे हैं, यह सृष्टि के रचयिता कह रहे हैं - यह इस संसार को चलाने वाले बाप कह रहे हैं!* अभी भी बुद्धि में फिट नहीं हुआ तो फिर बाप नहीं कहेंगे - फिर आप देखेंगे, और जब देखेंगे तो साथ-साथ, दूसरा अकाउंट भी नजर आएगा। फिर देखने से क्या फायदा - या समझने से क्या फायदा? क्योंकि सृष्टि का अंतिम समय में अगर कुछ मिले, कुछ समझ में आ जावे, कुछ ज्ञान मिल जावे, उससे क्या फायदा? क्योंकि यूज़ तो कर ही नहीं सकते ना!

मानो अगर बैंक बंद होने वाला हो, उसमें आपको बाद में अक्ल आए की अब पैसा डालना है, तो क्या फायदा? क्योंकि सिस्टम तो फैल होने वाला है। वर्तमान समय है - तो हर एक बच्चा, चाहे बाहर बैठा है, बाहर सुन रहा होगा, अपने दिल से यह भावना को निकाल के फेंके। जैसे बाप को भी शुरू में क्या कहते थे? ‘पता नहीं बाप है या नहीं है? पता नहीं यह शिव बाप है या नहीं? कहाँ कोई और तो नहीं?’ *अब बाप पे तो बच्चों को मेजॉरिटी निश्चय भी हो गया कि ‘हाँ, यह बाप है’ - पर गाड़ी कहाँ अटक गई? ‘पता नहीं यह मम्मा है या नहीं? पता नहीं यह आदि शक्ति है या नहीं?’ अटक गई ना? अटक गई ना गाड़ी?*

अच्छा, अगर शिव में शक्ति ना हो तो शिव क्या है? क्या है - कुछ है? आप शिव को याद क्यों करते हैं? क्यों करते हैं? शिव को याद क्यों किया जाता है? शक्तियों के आधार पर! शक्तियों के आधार पर शिव को याद किया जाता है। शिव में शक्ति ही ना हो, कुछ समझ ही ना हो, तो कौन याद करेगा? फिर तो वो साधारण है ना - फिर? *तो अब सभी अपनी बुद्धि का ताला खोलें, समय आ गया है, परिवर्तन का समय आ गया है।* ठीक है?
संकल्प पूरा हुआ?

फिर मिलेंगे ..

यह ब्रह्मा बाप को देना .. [ठीक है] (बाबा के सामने एक मीठा पकवान लाया गया) यह क्या है? (मूंग का हलवा) अच्छा, हलवा है! सभी को जन्म दिवस की बधाई हो! सभी को माना क्या? *जो जिन्होंने मम्मा को पहचाना उनका भी जन्म दिवस ही है, जिन्होंने बाप को पहचाना उनका भी जन्म दिवस ही है।* यह सोचना नहीं – ‘बाबा, आप तो कहते हो देह से ऊपर उठो।’ बिल्कुल उठना है। देह से ऊपर ही तो उठना है। सब छोड़के जाना है। आप बताओ आप बच्चों से मिलने का आधार क्या है? क्या है बच्चों से मिलने का आधार? रथ है, देह है। आप कहो – ‘मेरे को मईया से कोई लेना-देना नहीं है, या मेरे को फलाने से कोई लेना-देना नहीं है, मेरे को बाप को याद करना है, अपना पुरुषार्थ करना है।’ जिस रथ में बाप आते हैं आप कहते हो – ‘उससे लेना-देना ही नहीं है, उससे मुझे मतलब ही नहीं है!’ तो फिर बिना आधार के आपको परमधाम में मिलना चाहिए। आधार के पास नहीं आना चाहिए।

तो जो यह शब्द कहते हैं – ‘मेरा मईया से कुछ वास्ता नहीं, कुछ लेना-देना नहीं; मेरे को कोई मतलब नहीं है, बाप से मतलब है, बाप से मिलेंगे और चले जाएंगे।’ यह तो यही कहानी हुई भक्ति मार्ग की। क्या? एक बड़ा भक्त शिवका आता है और कहता है – ‘मुझे पार्वती से कोई लेना-देना नहीं, मैं बस आपकी ही परिक्रमा करूँगा, मैं बस आपका भक्त हूँ’ - तो ऐसा कैसे हो सकता है? आप कहो – ‘मईया से कोई लेना-देना नहीं’ - माना आपको सिर्फ ज्योति बिंदु शिव चाहिए? और फिर आप डिमांड करते हैं कि ‘मेरी यह प्रॉब्लम ठीक हो जाए; बाबा, आप में तो इतनी शक्ति है ना, आप यह कर सकते हो ना?’ आपने तो पहले ही शक्ति से अलग कर दिया तो बाप के पास क्या बचा? जब शिव को शक्ति से ही अलग कर दोगे तो - क्या ठीक होने की उम्मीद बाप से रखोगे? नहीं रखना। फिर खाली बाप है, खजाना शक्ति के पास है।

इसलिए जो कहते हैं, ‘हमें मईया से कुछ लेना-देना नहीं’, तो माना बाप से भी कुछ लेना-देना नहीं! क्यों? क्योंकि बाप के पास कुछ है ही नहीं! सब तो किसके पास है? शक्ति के पास है - माँ के पास है। आप कहोगे, ‘बाबा मुझे यह दो’। बाबा कहेंगा - नहीं है, आप लक्ष्मी से जाके लो, शक्ति से जाके लो। कहने का भावार्थ सिर्फ - देह में नहीं फँसना है - कहने का अर्थ है कि जब बाप आते हैं तो यह संकल्प नहीं चलाना – ‘मुझे शक्ति से, मुझे माँ से कोई लेना-देना नहीं’।

अच्छा, आप सभी बहुत भाग्यवान हो क्योंकि इतने पास से .. और कोई तो पहली बारी मिल रहा है।

फिर मिलेंगे ..
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Zorba the Greek
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Versions of Shiv Baba
24.06.2023 - (Sangareddy, Telangana)

Memorial Day of Saraswati Mama

"Sweet children .. Today, everyone is celebrating her Memorial Day, and BapDada is celebrating Mama’s Birth-day. They are celebrating her death-day, and the Father is celebrating her Birth-day. .. Mama is not just in memories, she is now in practical form!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=eaklPzz655Y

OK .. You have been waiting so long to Meet the Father! Which day is being celebrated all over the world today (within the Brahmin Family)? [Jagdamba Day, Mama’s Memorial Day] They are celebrating her Memorial Day - and you? And you? What are you doing? What are all of you doing? You are living with her! This whole (Brahmin) world is celebrating her Memorial Day, and making the lesson firm that ‘we will continue to be like Mama’. But they are abusing that Mama, who has come after taking rebirth. They are continuing to remember the old body which she left, and they are abusing the new body that she has now taken. This is a wonderful Drama! This is a wonderful Play! Because what can be said about Drama – why is it wonderful? Because no one has the memory of who Mama really is, and where she really is! They think – ‘today also she would be looking the same as she was looking before’. They get severely deceived. *So, BapDada is telling all those children who are in this deception – there is still time to get out of this deception. They are those who have still not met her – but doubt also arises in the mind of those who are meeting, those who are close.* There is still confusion in their mind as well, until now, ‘is she really the same soul? She was like this, she was like that!’

So, today the Father is telling you – yes, this one is the same. Rise above this misconception. *This is the very same ‘Mama’, the same ‘Jagdamba’, the same ‘Saraswati’, the same ‘Adi Shakti’.* So, convey this Father's message especially to those children who are close - rise above this delusion, come out of it. *Mama is not just in memories, she is now in practical form!* So, give this message of the Father to every child - that they should not make this blunder now. This blunder should not be made after Meeting the Father. *Today, everyone is celebrating her Memorial Day, and BapDada is celebrating Mama’s Birth-day. They are celebrating her death-day, and the Father is celebrating her Birth-day. That is why this Father's message should be conveyed to everyone – by all those who can do so.*

Anyway - although you may remember that this was Mama, by keeping her old body within your intellects - but this face is also imprinted somewhere within the hearts of majority of the children - whether under the influence of jealousy, or whether under the influence of Love, or whether by thinking that, ‘just see, she calls herself Mama!’ *This face is imprinted within the intellects of the majority of Brahmins today. So, now look, even if you had firmly decided that you will not remember her, then too you are still remembering her. Then too, you are celebrating her Memorial Day, or her Birth-day. The one who has made a photo of this body within one’s intellect is celebrating her Birth-day. Those who are sitting with her old photo (within their intellects) – which day are they celebrating? They are celebrating her death-day.* This – this is certain - many children are still in doubt, *so today the Father is telling you by writing this firmly and by stamping the same - this is ‘Jagdamba’, ‘Saraswati’, and ‘Adi Shakti’. The Father is saying this, the Resident of the Supreme Abode is saying this, the Creator of the world is saying this - the Father, who runs this world, is saying this!* If even now this is not sitting within your intellect then the Father will not say anything – then you will see, and when you see, along with that, other accounts will also become visible. Then what is the use of seeing - or what is the use of understanding? Because in the final period of the world, if something is received, or if something is understood, or if some Knowledge is received, then what is the use of that? Because you cannot use that, at all (at that time), can you?

For example, if the bank is about to close, and you realize later on that you have now to put money in it, then what is the use? Because the system is going to fail. Now, there is still time – so, every child, whether one is sitting outside, whoever may be listening outside, remove this feeling from within your hearts and discard it. For example, what were you saying in the beginning about the Father also? ‘I do not know whether this is the Father, or not? I do not know whether this is Father Shiva, or not? Could this be someone else?’ *Now, the majority of the children have faith in the Father that, ‘yes, this is the Father’ – but where has the ‘car’ (of the intellect) got stuck? ‘I do not know whether this is Mama, or not? I do not know whether this is Adi Shakti, or not?’ It has got stuck, has it not? The ‘car’ (of your intellect) has got stuck, has it not?*

OK, if there is no ‘Shakti’ (Power) within Shiva, then what would Shiva be? What would He be – would He be anything? Why do all of you Remember Shiva? Why do you Remember Him? Why is Shiva Remembered? Because of His ‘Shaktis’ (Powers)! Shiva is Remembered on the basis of His ‘Shaktis’ (Powers). If there is no ‘Shakti’ (Power) within Shiva, if there is no understanding at all, then who would Remember Him? Then He would be ordinary, would He not – then? *So, now everyone should open the lock on their intellects, the time has arrived, the time of transformation has arrived.* OK?
Has your thought been fulfilled?

We will Meet again ..

(Baba was being presented with a gift) Give this to Father Brahma .. [all right] (a sweet dish was brought before Baba) What is this? [sweet dish made from mung beans] OK, this is halwa! Greetings to everyone on your Birth-day! Everyone means who? *It is also the Birth-day of all those who have recognized Mama, it is also the Birth-day of all those who have recognized the Father.* Do not think – ‘Baba, you say to go beyond the body’. You definitely have to go beyond. You do have to go beyond this body. You have to leave everything behind and return. Can you say - what is the basis of Meeting you children? What is the basis of Meeting the children? It is the Chariot, the body. If you say – ‘I have nothing to do with the Mother (Maiya), or I have nothing to do with so-and-so, I just have to Remember the Father, I only have to make my own efforts.’ You say about the Chariot in whom the Father comes – ‘I have nothing to do with her, at all; I do not have any concern with her!’ Then, without a ‘support’, you should Meet in the Supreme Abode. You should not come to the ‘support’ (to this Chariot).

So, those who speak these words – ‘I do not have any concern with the Mother, I have nothing to do with her; I do not have any purpose with her, my purpose is with the Father, I will Meet the Father and leave.’ This is that same story of the path of devotion. Which one? One great devotee of Shiva comes and says – ‘I have nothing to do with Parvati, I will go around only You, I am only Your devotee’ – so, how can this be? You say – ‘I have nothing to do with the Mother’ – means do you want Shiva only in the form of a Point? And then you make demands, ‘let this problem of mine be resolved; Baba, You have so much ‘Shakti’ (Power) within you, do You not - You can do this, can You not?’ You have already separated Me from ‘Shakti’ (My Power), then what is left with the Father? When you separate Shiva from ‘Shakti’ (His Power) - will you then still have hope of getting well, from the Father? Do not keep that faith. Then the Father is empty, the treasure is with ‘Shakti’.

This is why those who say, ‘we have nothing to do with the Mother’ - so, that means that they do not have anything to do with the Father, as well! Why? Because the Father would not have anything at all! Who has everything? Everything is with His ‘Shakti’ – with the Mother. You would say, ‘Baba, give me this’. Baba would say – I do not have, you go to Lakshmi and take from her, you go to My ‘Shakti’ and take from her. The intention of saying this is only – you do not have to get trapped in the body - the intention of saying this is that when the Father comes, do not have this thought – ‘I do not have anything to do with Shakti, I have nothing to do with the Mother’.

OK, all of you are very fortunate because you are Meeting so close .. and many are Meeting for the first time.

We will Meet again ..
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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
13.07.2023 - रायपुर, (छत्तीसगढ़)

"मीठे बच्चे .. प्यार की परिभाषा है - सिर्फ प्यार, कोई स्वार्थ नहीं, कोई मतलब नहीं! प्रेम में नंबरवार हो सकते हैं, पर सूक्ष्म में भी स्वार्थ ना रहे, ऐसा अभी तक कोई नहीं है।"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=5jj-1ULc5FE

अच्छा .. सभी बच्चों के दिल में एक दिलाराम है? है? अगर एक की याद होगी, घड़ी-घड़ी जो याद आएगा, अंतिम समय में वैसी अवस्था होगी। आज जो अवस्था है क्या आप अपने आप से संतुष्ट हैं? आज की अवस्था को देखके बतावे। है? क्या आज आपकी जो अवस्था है उससे आप संतुष्ट है? है? संतुष्ट कौन-कौन है? संतुष्ट है? [हाँ, बाबा] अच्छा, आप संतुष्ट है! [बाबा, और अच्छा होना चाहिए] .. अच्छा होना चाहिए, यह अच्छी बात है, पर बाप यह पूछ रहे हैं - क्या आज की अवस्था से आप संतुष्ट है? है? एक भी नहीं। इसका कारण क्या है? क्या इतने संतुष्ट है कि अभी एक सेकंड में बाप का बुलावा आवे, और हमें उस समय बाप के अलावा कुछ भी याद ना आवे? यह कहने की बात और प्रैक्टिकल करने की बात में बड़ा फर्क होता है। क्या ऐसी अवस्था बच्चों की बनी है? [नहीं] नहीं बनी! कब बनेगी? कि बस एक ही याद समायी रहे। ऐसी अवस्था - बाप के सिवाय कुछ नजर ही ना आवे। इतना दृढ़ निश्चय कि जो भी बाप कराएगा उसमें कल्याण होगा - ऐसा दृढ़ संकल्प, ऐसी अवस्था। क्योंकि अगर ‘मैं-मैं’ का गुणगान किया तो क्या होता है? ‘मैं-मैं’ की बकरी नहीं बनना। चेकिंग करो - अती सूक्ष्म चेकिंग करो। क्या ऐसी अवस्था है? चारों तरफ दृष्टी घुमाओ, प्रकृति की हलचल को भी देखो। क्या प्रकृति को एक सेकंड लगेगा सबकुछ उल्टा-पुल्टा करने में, या सब खत्म करने में? लगेगा? नहीं लगेगा। इसीलिए बारी-बारी बाप यही कहते हैं आपकी प्लानिंग अच्छी है, पर कभी बाप की प्लानिंग पे भी अपनी दृष्टि घुमा लिया करें। कभी इतना दृढ़ निश्चय हो – ‘बाबा, यह तो मेरी प्लानिंग है, मुझे आपकी प्लानिंग का नहीं पता, पर आपकी जो प्लानिंग होगी ना, उसमें मैं निर्संकल्पधारी बनके आपके साथ खड़ा हूँ’- ऐसी अवस्था होनी चाहिए। क्या ऐसी अवस्था आयी है? नहीं आयी है! आप क्या बताएंगे, बाप बता रहे हैं - नहीं आयी है!

अपने दिल रूपी दर्पण को चेक करें - कहाँ दर्पण में धूल-मिट्टी तो नहीं जमी है? कहाँ मैंपन की धूल तो नहीं जमी है? अगर जमी है तो बाप की याद की बरसात से उस धूल-मिट्टी को साफ करें। नहीं तो अपनी शिकिल स्पष्ट दिखाई नहीं देगी। कौन सी शिकिल? आत्मा की शिकिल। दुनिया में, लौकिक में, दर्पण में अगर धूल जमी हो, तो क्या अपना यह स्थूल चेहरा देख पाते हैं? नहीं देख पाते ना? बस अपने आपको करेक्ट लगता है, ठीक लगता है - ‘नहीं, मैं ठीक हूँ’ - पर चेहरा साफ नजर नहीं आता। क्या दिल दर्पण साफ है? जो बाप नजर आवे, जो खुद - खुदमें दिखाई देवे कि मेरी शिकिल में कितने दाग लगे हैं। ‘क्या मैंने धोया है? क्या मैंने साफ किया है? कहाँ मेरी दिल में बाप के अलावा घड़ी-घड़ी किसी और की तस्वीर तो नहीं बैठती? क्या किसी और का चेहरा तो नहीं खींचता?’ अपनी चेकिंग करो। चेकिंग करो - सब नजर आएगा। बाप जब इतनी महीन चेकिंग कर रहे हैं, तो आप तो खुद के खुद टीचर हो। आप से ज्यादा चेकिंग आपकी कौन कर सकता है? क्या ऐसी मूरत बने हैं? अच्छा, क्या बनना है - या ऐसे ही रहेंगे? बनना है ना? बनना है - ऐसी मूरत बनना है! ऐसी मूरत बनना है! अंतिम समय के पेपर में फुल पास होना है, कहाँ भी मार्जिन नहीं रखनी है। यह सोचना नहीं है कि बाबा पास तो एक ही होता है – नहीं! बाप के पास, पास होने वालों की लिस्ट लंबी है, और उस लिस्ट में नाम आने का पूरा चांस है। तो यह सोचना नहीं – ‘बाबा, पहला नंबर पास तो एक या दो होता है’। पास होना है ना, या फुल पास होना है? [फुल पास] तो अपनी चेकिंग करो।

बाप प्यार का सागर है ना? क्या है बाप? प्यार का सागर! सभी की आवाज नहीं आयी । [प्यार का सागर] .. फिर भी सभी की आवाज नहीं आयी। [प्यार का सागर है] .. एक बार और कहो। [प्यार का सागर] प्यार का सागर है! प्यार किसको कहते हैं? सबसे पहला शब्द ही ‘प्यार’ आता है, और बाकी तो सब लास्ट, बाद में है। पहला शब्द ही क्या आता है? ‘प्यार’ – ‘प्रेम’! बाबा आप बच्चों के लिए प्यार की झोली भरके लाए हैं। प्यार का सागर माना इस पूरे संसार में प्रेम से अगर परमात्मा को खींचते हैं, तो वो दौड़ा चला आता है। प्यार भी कौनसा? आज लौकीक दुनिया में प्यार का नाम दूसरा दिया है। जिस्मानी प्रेम किया है, विकार में जाना ‘प्रेम’ कहा है। वास्तव में यह प्यार नहीं है। प्यार, प्रेम किसको होता है? प्यार का मतलब है ‘निःस्वार्थ प्यार’ - जिसमें कोई स्वार्थ नहीं हो। ऐसा नहीं होना चाहिए – ‘बाबा, मैं आपके घर में इतना धन दूँगा तो मुझे डबल प्यार मिले’। या ‘मैं इतनी सेवा करूँगा तो मुझे प्यार मिले’। प्यार का मतलब समझें - प्यार का मतलब। चेक करो, हर कोई भी एक बच्चा - क्या आपका प्यार बाप से निःस्वार्थ है? दिल से बताना क्योंकि बाप ने हर एक बच्चे की बुद्धि की महीन चेकिंग की है। अगर आप कहेंगे, ‘हाँ है’, तो बाप उसका जवाब जरूर देगा, कि कहाँ किस बात में स्वार्थ है। सोचके बोलना - क्या आप बच्चों का बाप से निःस्वार्थ प्यार है? [जी बाबा] सब झूठ! [नहीं बाबा] झूठ! अभी वर्तमान में बोल रहे हैं ना। अपनी पास्ट चेकिंग करो, और आने वाले समय की चेकिंग करो। [चेकिंग करते हैं, बाबा] फिर भी सूक्ष्म चेकिंग करो, क्योंकि सूक्ष्म तार बाप के पास है।

निःस्वार्थ का मतलब क्या है? अच्छा, बाप कहेगा कि बाप को हर एक बच्चे से निःस्वार्थ प्यार है। ‘निःस्वार्थ’ माना कोई स्वार्थ नहीं। अच्छा, आप बच्चे कहते हैं निःस्वार्थ है - मानो कोई बीमारी आयी तब क्या कहेंगे? ‘बाबा, ठीक कर दो, मैं आपकी बहुत सेवा करूँगी।’ कहाँ निःस्वार्थ है? ‘बाबा, मुझे सेंटर खोलना है, आप मेरी मदद कर दो।’ कहाँ निःस्वार्थ है? ‘बाबा, मैंने यह लक्ष्य लिया है, आप तो भगवान है ना, पूरा कर दो।’ कहाँ निःस्वार्थ प्यार है? ‘बाबा, मुझे आठ, 108 की माला का मणका बनना है, आप तो सिफारिश लगा सकते हो, क्योंकि आप तो खुद ही माला बना रहे हो।’ कहाँ निःस्वार्थ प्यार है? ‘बाबा, मुझे, या मेरे बच्चे को ठीक कर दो, मेरे पति को ठीक कर दो, मेरे फलाने को ठीक कर दो। बाबा एक घर बनवा दो।’ कहाँ निःस्वार्थ प्यार है? कहाँ निःस्वार्थ प्यार है? ‘बाबा, मैं आपको इतना दूँगा ना, तो एक वारी स्टेज पे बुला लेना।’ कहाँ निःस्वार्थ प्यार है? कहाँ निःस्वार्थ प्यार है?

‘निः - स्वार्थ’ माना कुछ भी स्वार्थ नहीं। कुछ भी माना कुछ भी नहीं। बाप के जैसा प्यार, इस - कोई भी नहीं। क्या बाप ने आपको कभी कहा कि आप यह कर दो, यह कर दो? हाँ, एक बात जरूर कहते हैं – बच्चे, आप पुरुषार्थ करो, आप मेहनत करो, आपको पूरे विश्व को बदलना है। पर इसमें बाप को क्या मिलेगा? इसमें बाप को क्या मिलेगा? कुछ मिलेगा? कुछ मिलेगा? नहीं मिलेगा ना? किसको मिलेगा? आपको ही मिलेगा। बाप को प्रेम है कि मेरे बच्चे रास्ते से भटक गए हैं, तो मैं उंगली पकड़ के रास्ते पे लेके आऊँ, यह बाप को प्रेम है। क्या ऐसा प्रेम आपको है? अब चेक करो, क्या ऐसा प्रेम आपको है? प्रेम में नंबरवार हो सकते हैं, पर सूक्ष्म में भी स्वार्थ ना रहे, ऐसा अभी तक कोई नहीं है। क्या ऐसा प्रेम है? है ऐसा प्रेम? है? [नहीं] तो चेकिंग करो। प्रेम से ही बाप को जीत सकते हैं। प्यार का सागर है, प्यार ही देगा ना। और आप प्यार के सागर के बच्चे हो तो आपस में भी क्या करना है? प्यार से रहना है।

प्यार की परिभाषा क्या है? कोई स्वार्थ नहीं - ना तन से, ना मन से, ना धन से। आपस में भी ऐसा नहीं – ‘अरे, हाँ फलानी या फलाना की कमाई बड़ी अच्छी है, तो उनसे कनेक्शन अच्छा बनाए रखेंगे तो भविष्य में हमारे काम आएगा’ - यह प्यार नहीं है, यह निःस्वार्थ प्यार नहीं है, इसमें टोटल स्वार्थ है। अगर सोचते हैं कि ‘हाँ, फलानी, फलाने से अच्छा कनेक्शन रखेंगे, कब धन की भूख हुई तो मिटेगी’ - यह भी फुल स्वार्थ है, एक परसेंट, दो परसेंट नहीं है। या ‘फलाने समय पर ऐसे हमारी मदद करेंगे, चाहे तन से, मन से, धन से’ - यह टोटल स्वार्थ है, इसको निःस्वार्थ प्रेम नहीं कहेंगे। अच्छा, आपने कहा – ‘नहीं, आप हमारे साथ ऐसे रहो।’ दूसरे ने मना किया - तब आप निःस्वार्थ प्यार करके दिखाओ। आपने धन की मांग की उसने नहीं दिया - तब आप निःस्वार्थ प्यार करके दिखाओ। निःस्वार्थ का मतलब समझ में आता है? देह का नहीं, धन का नहीं - सिर्फ आत्मा का प्यार! और वो ‘आत्मा का प्यार’ सबसे रहेगा, उसमें कोई बंधन नहीं होगा। यह सही मायने में निःस्वार्थ प्यार है।

बच्चे बड़े प्यार से कहते हैं, ‘नहीं-नहीं, मुझे तो आपसे, आत्मा से प्यार है, शरीर से कोई प्यार नहीं।’ फिर बाद में धीरे-धीरे क्या कहते हैं? स्टेज कहाँ तक पहुँचती है? आत्मा से प्यार है, तो आत्मा से करो ना - शरीर को पाने की भूख क्यों होती है? आत्मा से प्यार करो! शरीर से क्यों? क्या ऐसा प्यार है? या ‘हाँ, फलाने से कुछ मिलेगा, धन मिलेगा, या कुछ मिलेगा।’ चेक करो। यह चेकिंग है। चेक करो - मेजॉरिटी फैल हैं, चाहे कहाँ भी बैठे हो, इस पूरे संसार में कहाँ भी बैठे हो। बाप के बच्चे हो, या बाप के बच्चे नहीं हो, मानो ज्ञान में हो, या ज्ञान में नहीं हो। प्यार की परिभाषा है - सिर्फ प्यार, कोई स्वार्थ नहीं, कोई मतलब नहीं! मुख से चिल्ला के बोले – ‘नहीं, मुझे कोई स्वार्थ नहीं’ - पर अंदर की चेकिंग करो।

अभी बताओ निःस्वार्थ प्यार है? अभी आवाज से बोलो, जितनी आवाज से पहले बोले ना, अभी आवाज से बोलो। नहीं है? [नहीं] नहीं है! अब बताओ क्या करना है? कोई भी भूख होगी - तन की, धन की, मान-शान की, कोई भी, उसको निःस्वार्थ प्यार नहीं कहेंगे - ना आपस में, ना बाप से। निःस्वार्थ की परिभाषा ‘निः’- ‘नहीं’, कोई स्वार्थ नहीं। अभी निःस्वार्थ प्यार में सब पास हैं? हैं? हैं? [नहीं] तो अब तक सारी सीट खाली पड़ी हैं। अब बैठके दिखावे। ठीक है? मतलब सबके पास फुल चांस है। समझ में आया? ‘निःस्वार्थ’ समझ में आया?

यह जैसे मैया का आप बच्चों से कैसा प्यार है? [निःस्वार्थ प्यार] है, यह मानते हैं? मानते हैं, या नहीं मानते? [मानते हैं, बाबा] क्या आपसे कभी भी, याद करके बताना - कभी भी, याद करके बताना - मन की तो अपन गैरंटी लेते हैं, मुख की आपके ऊपर छोड़ते हैं, कि आपसे कोई डिमांड किया? या आपसे कुछ लेने की इच्छा रखी? या कोई भी चीज में, किसी भी चीज में किया – ‘आप कुछ दो, तो मैं आपको यह दूँ, आप दोगे तो मैं दूँगी, आप धन दोगे तो मैं प्यार दूँगी, आप यह दोगे तो मैं वो दूँगी’? मुख की तो आपके सामने है, पर मन के लिए बाप गैरंटी लेता है। आप सोचो, अगर आप कहेंगे यह निस्वार्थ प्यार सिर्फ भगवान ही कर सकता है, कोई इंसान नहीं कर सकता, तो जीती-जागती चैतन्य मूर्ति ‘जगत अम्बा’ आपके सामने बैठी है। सबकी मनोकामना पूरी करने वाली ‘कामधेनु’ आपके सामने बैठी है। इस दुनिया में एग्जांपल आपके सामने बैठी है, जो मनुष्य शरीर धारण करके आपके साथ में है। तो यह तो शिकायत नहीं रहेगी ना, कि कोई धरती पर ऐसा है ही नहीं, जिसको निस्वार्थ प्रेम हो! और ऐसा नहीं सिर्फ वाणी से, मन से, मन से - कि सबको स्वतंत्र, ‘आपको जैसे ठीक लगे, आपको जैसे करना है, आपकी जो दिल करे।’ किसी भी बच्चे के ऊपर क्या यह दबाव दिया – ‘नहीं, आप इतना करो या आप इतना दो, तो ही यहाँ रहेंगे, तो ही ऐसे करेंगे, तो ही आपको ऐसे किया जाएगा।’ यह अभी सभी अपने अंदर की चेकिंग करो। निःस्वार्थ प्रेम है? है? अब चेक करो। सबके पास फुल चांस है - पर समय नहीं है।

जब मैया देती है ना, तो कुछ नहीं सोचती। कुछ नहीं। देने का मतलब क्या होता है? देने का मतलब यह होता है कि क्या आप जिसको दे रहे हो उसके मन में स्वार्थ है, या उसको जरूरत है? बस यह देखना है। अगर बार-बार, बार-बार लेने की भावना है, कभी किसी से, कभी किसी से मांगने की आदत है, तो वो उसकी मजबूरी नहीं है, वो आदत से मजबूर है और उनको स्वार्थ है। तो यह भी याद रखना किसी को बार-बार, बार-बार धन का सहयोग देकर हम उसको उसके कर्म से वंचित करते हैं। और जो बार-बार, बार-बार मांगते रहते हैं, मानो वो भिखारी हैं। और भिखारी कभी बच्चे नहीं बन सकते। अगर अपने आप को नहीं सुधारा, अपने आपको ठीक नहीं किया, अपने आप में परिवर्तन नहीं लाए, तो वो भिखारी ही रह जाएंगे, बच्चे नहीं बन पाएंगे।

भिखारी और बच्चे में फर्क क्या है - बताएंगे? भिखारी घर के बाहर गेट पे मांगता है, और बच्चा महल के अंदर राजगद्दी पे बैठता है। अब गेट के बाहर भिखारी जैसे मांगना है, या राजा बनके राजगद्दी पे बैठना है? अब क्या करना है - यह देखो। क्या करना है? यह पक्का है, बार-बार हाथ फैलाने वाले, यूँ करने वाले भिखारी बनेंगे, और बच्चा बनने वाले राजगद्दी पर बैठेंगे। अभी अपनी चेकिंग करो। चेकिंग और चेंज करो। बच्चे में और भिखारी में क्या फर्क है - यह चेकिंग करो। बाप उन बच्चों की पालना की गैरंटी लेता है जो कभी मांगते नहीं हैं।

क्या बाप ने यह पेपर जगदंबा का नहीं लिया? क्या मैया का नहीं लिया? लिया ना? ऐसी स्थिति, ऐसी स्थिति कि पास में एक पैसा भी नहीं, पर फिर भी कभी हाथ नहीं फैलाया। फिर भी! और यह पेपर कोई एक-दो-तीन दिन नहीं लिया, यह पेपर पूरे 4 वर्ष तक लिया। यहाँ इस स्थान पर इस भूमि पर आने से पहले भी, यहाँ आने के बाद भी। सोचो कमाल है ना! पर फिर भी मन से भी नहीं निकला, मुख से तो छोड़ो। है कमाल? यह तक पेपर लिया कि दो रोज भूखा रखेंगे, तो भी तो देखते हैं टूटेगी या नहीं टूटेगी? ऐसे ही बाप ने तन नहीं लिया! पहले अच्छा सा पेपर लिया, हर तरह का पेपर लिया, हर तरह का लिया। क्या अब बताओ ऐसी स्थिति कभी किसी भी समय, किसी भी घड़ी, आप में से किसी बच्चे की आयी अभी तक? आयी? कि एक समय का, या एक दिन का, या दो रोज का भोजन नहीं हो? या आप कभी खाली पेट सोए हो? ऐसी स्थिति किस-किस की आयी है? चेकिंग करो।

इसलिए बाप बार-बार एक चीज बोलते हैं – ‘मांगने से मरना भला’! बिन मांगे मोती मिलते हैं, और मांगने से तो भीख भी नहीं मिलती। क्या करते हैं? जो ऐसे-ऐसे करते हैं, क्या सारी दुनिया उनको देती है? कोई 10 बातें सुनाके चले जाते हैं, तो कोई कुछ बोल के जाते हैं, तो कोई एक पैसा रख के जाते हैं। इस संसार में चाहे कोई कितना भी गरीब हो, दोनों ही गरीब हैं - एक तो मांग रहा है, और एक बहुत मेहनत कर रहा है, दोनों ही गरीब हैं। आपको कौनसा पसंद आएगा? सभी आवाज से बोलो। [मेहनत करने वाला] आएगा ना? आएगा! आपको कौनसा पसंद आएगा? [मेहनत करने वाला] मेहनत करने वाला। जब आपकी पसंद मेहनत करने वालों पर टिकती है, तो क्या बाप भिखारी को पसंद करेगा? बाप तो मेहनत, पुरुषर्थी बच्चों को पसंद करेगा ना? तो कैसे बनना है? पुरुषार्थी बनना है। कौन सा पुरुषार्थ? यह तन है जो बाप के कार्य में समर्पित है, तो पूरा समर्पण हो जाओ। मेहनत करो, दौड़ो, तो बाप जीवन की गैरंटी लेता है। बाप के बनकर भी आलस्य, अलबेलेपन में रहेंगे, तो बाप क्या कहेगा? यह कब तक चलेगा? यह ज्यादा समय नहीं चलता है। समझ में आया?

समझ में आया, आज का पाठ क्या है? [निःस्वार्थ प्यार] ‘निःस्वार्थ प्यार’ - चाहे तन का हो, मन का हो, धन का हो, जन का हो, कोई भी हो। निःस्वार्थ प्यार! ऐसा नहीं सोचना मेरा तो निःस्वार्थ है - अगर सामने वाले के मन में स्वार्थ आ गया तो? यह भी निःस्वार्थ प्रेम नहीं कहेंगे। आपको निःस्वार्थ करना है, सामने वाले का आप क्यों सोचते हैं? आप सिर्फ अपनी गैरंटी लो, सामने वाले का बाप पर छोड़ दो - अगर हर एक बच्चा बैठने वाला यह पाठ पढ़ ले कि निःस्वार्थ प्रेम करना है, कोई स्वार्थ नहीं। शुरू में तो दिखाते हैं निःस्वार्थ है, पर धीरे-धीरे स्वार्थ की पटरी पे चढ़ ही जाते हैं। है ना? है ना? तो यह स्वार्थ की पटरी बार-बार आएगी पर आपको देखते हुए भी नहीं देखना है।

आज ‘निःस्वार्थ प्रेम’ की परिभाषा सिखाई है, और ‘मांगने से मरना भला’ यह पाठ पढ़ाया है। यह कितने समय तक जीवन में धारण रहेगा, बाप अब यह चेक करेगा। यह अंतिम समय तक धारण किया है, या आज तक किया है, यह चेकिंग करना। ठीक है?

सौभाग्यशाली हो - बाप की गोद में पल रहे हो। दुनिया का हाल देखेंगे तो - तो? तो इसलिए कभी यह नहीं सोचना ‘मैंने यह किया, मैंने वो किया, मैंने इतना दिया और मैंने उतना दिया। आज इतना और उतना सब बहके जा रहा है। आप तो विनाशी देते हो; बाप तो अविनाशी देते हैं, जो कभी मिट नहीं सकता, जो कभी खत्म नहीं हो सकता, जो कभी जल नहीं सकता, जो कभी डूब नहीं सकता। बाप तो अविनाशी देते हैं, तो भी बाप कभी नहीं कहते कि मैंने इतना दिया। आपका विनाशी देकरके, जो आज है कल खत्म हो जाएगा, तो भी बच्चे क्या कहते हैं? मैंने इतना दिया! तो सभी बच्चे चेकिंग करो।

फिर मिलेंगे ..
अच्छा बच्चों!

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Re: Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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Versions of Shiv Baba
13.07.2023 - (Raipur, Chhattisgarh)

"Sweet children .. the definition of love is - just love, no selfishness, no meanness! You can be number-wise in Love, but there is no one till now, who does not have any subtle selfishness."

Link: https://www.youtube.com/watch?v=5jj-1ULc5FE

OK .. Is One ‘Comforter of Hearts’ within the hearts of all the children? Is He? If there is the Remembrance of One, if He is Remembered again and again, then that will be your stage in the final moments. Are you satisfied with yourself with the stage that you are in today? Speak after seeing today’s stage. Are you satisfied with yourself with your current stage? Are you? Who all are satisfied? Are you satisfied? [yes, Baba] OK, you are satisfied! [Baba, it should be better] .. It is good that it should be better, but the Father is asking this - are you satisfied with your present stage? Are you? There is no one. What is the reason for this? Are you so satisfied that if the Father's call comes in a second, you do not remember anything else other than the Father at that time? There is a great difference between just saying this and doing it practically. Has the stage of the children become such? [No] It has not! When will that become?
You should be merged in the Remembrance of only One – such a stage that nothing else is visible other than the Father. You should have such firm faith that there will be benefit in whatever the Father enables you to do – such a firm, determined thought, such a stage. What happens if you keep praising yourself by saying ‘Me, Me’? Do not become like a goat by saying ‘Me, Me’. Check – carry out subtle checking. Have you made such a stage? Move your vision all around, and also see the fluctuations of nature. Will it take nature a second to turn everything upside down, or to destroy everything? Will it? It will not? [It will] That is why the Father says this again and again, that your planning is good, but at sometime you should turn your vision on the Father's planning as well. At sometime you should have such a firm determination – ‘Baba, this is my planning, I do not know about your planning, but I will co-operate with you in whatever planning you have without having any other thought’ – you should have such a stage. Has such a stage been made? It has not! What would you say - Baba tells you that it has not been made!

Check the mirror of your heart - has any dirt or dust accumulated within this mirror? Has any dirt of ‘my-ness’ accumulated therein? If it has accumulated then clean that dirt and dust with the shower of the Father’s Remembrance. Otherwise, your face will not be visible clearly. Which face? The face of the soul. In the corporeal world, if dirt is accumulated in a mirror then will you be able to see your physical face? You will not be able to see, would you? You feel it is good, that it is fine – ‘no, I am fine’ – but you are not able to see your face clearly. Is the mirror of your heart clean? Wherein you can see the Father, wherein you yourself can see how many stains exist on your ‘face’ within. ‘Have I washed the stains? Have I cleaned them? Does the picture of anyone else, other than the Father, reside within my heart, again and again? Does the face of anyone else attract me?’
Check your own self. When you check – everything will be visible. When the Father is checking minutely, then you are your own teacher. Who else can carry out your checking better than your own self? Have you become such an image? OK, what have you to become – or will you remain just like this? You do have to become, do you not? You have to become – you have to become such an image! You have to become such a clean image! You have to pass fully in the final paper, you should not leave any margin anywhere. You should not think that there is only one with Baba – no! There is a long list of those who pass with the Father, and there is every chance that your name will appear in that list. So, you should not think – ‘Baba, there is only one, or two, who pass in the first number. You do have to pass, do you not – or do you have to pass fully? [pass fully] Then carry out your own checking.

The Father is the ‘Ocean of Love’, is He not? What is the Father? The ‘Ocean of Love’! Everyone’s voice was not heard. [Ocean of Love] .. Still everyone’s voice was not heard. [Ocean of Love] .. say once again. [Ocean of Love] He is the ‘Ocean of Love’! What is considered to be Love. The very first word which comes is ‘Love’, and everything else is last, it comes later on. What is the first word which comes? ‘Love’! Baba has brought an apron full of Love for you children. ‘Ocean of Love’ means in this whole world, if you attract God with your Love, then He comes here running. Which Love? Today, in the corporeal world they have given a different name for love. They have physical love, they call indulging in the vice of lust ‘love’. That is not really love. Who experiences love?
Love means ‘selfless love’ - in which there is no selfishness. It should not be that – ‘Baba, I will give this much money in your Yagya so that I will receive double love’. Or, ‘I will do this much Service so that I will receive love.’ Understand the meaning of love – the meaning of love. Each and every child should check – do you have selfless love for the Father? Speak from your heart because the Father has carried out a deep checking of the intellect of every child. If you say, ‘yes I do have’, then the Father would definitely respond to that and tell you where there is selfishness in which aspect. Think and speak – do you children have selfless love for the Father? [Yes, Baba] All lies! [No, Baba] Lies! You are saying this for the present time, are you not? Carry out your past checking, and carry out the checking of the time which is to come. [I do check, Baba] Then too, you must carry out subtle checking, because the subtle wire is with the Father.

What is the meaning of ‘selfless’? OK, the Father will say that the Father has selfless Love for every child. ‘Selfless’ means there is no selfishness. OK, you children say that you have selfless love - what would you say when an illness comes? ‘Baba, heal this, I will do Your Service a lot.’ How would this be selfless? ‘Baba, I have to open a Center, You please help me with this.’ How is this selfless? ‘Baba, I have this aim, You are God, please fulfill it.’ How is this selfless love? ‘Baba, I wish to become the bead of the Rosary of 8, 108, you can give a recommendation, because You Yourself are making the Rosary.’ How is this selfless love? ‘Baba, heal me, or my child, heal my husband, heal so-and-so of mine. Baba, get a house built for me.’ How is this selfless love? How can this be selfless love? ‘Baba, I will give You this much, then call me on the stage once.’ How is this selfless love? How can this be selfless love?

‘Self – less’ means there is absolutely no selfishness. Absolutely none means absolutely none. Your Love should be like the Father’s – here, there is no one who has such Love. Did the Father ever tell you that you should do this, or you should do that? Yes, He definitely tells you one thing – children, you should make efforts, you should work hard, you have to transform the whole world. But what would the Father get in this? What would the Father receive in this? Would He get anything? Would He receive anything? He would not, would He? Who will receive that? Only you will receive. The Father has Love that my children have gone astray from the path, so I should hold their finger and bring them back on the path, the Father has this Love. Do you have such Love? Now you should check whether you have such Love? You can be number-wise in Love, but there is no one till now, who does not have any subtle selfishness. Do you have such Love? Do you have such Love? Do you? [No] So, you should carry out such checking. You can win the Father only with Love. He is the ‘Ocean of Love’, so He will definitely give Love, will He not? And you are the children of the ‘Ocean of Love’, so what should you do among yourselves? You should live with Love.

What is the definition of love? There is no selfishness - neither for the body, nor for the mind, nor for money. Among yourselves too, it should not be – ‘oh, yes, the earning of so-and-so is very good, so if I maintain a good connection with him/her, then it will be useful for me in the future’ – this is not love, this is not selfless love, there is total selfishness in this. If you think that ‘yes, if I maintain a good connection with so-and-so, when there is need for money at any time it will be fulfilled’ – this too is complete selfishness, not just one or two percent. Or, ‘he/she would help me at so-and-so time, whether with his/her body, mind, or money’ – this is total selfishness, this will not be called selfless love. OK, you say – ‘no, you should live with me in this way’ - but the other declines to do so – then display your selfless love and show. You asked for money, but he/she did not give you - then display your selfless love and show. Are you able to understand the meaning of ‘selfless’? Not for the body, not for money – love for only the soul! And that ‘love for the soul’ will be for everyone, there will not be any bondage in that. This is selfless love in its true sense.

Children say lovingly, ‘no-no, I have love for you, for your soul, there is no love for your body’. Then, gradually, what do they say? Where does your stage reach? If you have love for the soul, then you should love the soul – why do you have hunger for the body? Have love for the soul! Why with the body? Do you have such love? Or, ‘I will get something from so-and-so, I will get money, or I will get something’. Check this. This checking is necessary. Check this – the majority have failed, regardless of where they may be sitting, wherever they may be sitting in this whole world; whether they are the Father’s children, or whether they are not the Father’s children (according to their understanding), meaning, whether they are in this Knowledge, or whether they are not in this Knowledge. The definition of love is - just love, no selfishness, no meanness! You may shout out with your mouth – ‘no, I do not have any selfishness’ – but you should carry out your internal checking.

Now say – do you have selfless love? Now you may speak loudly, just as you spoke loudly before, now speak loudly. You do not? [No] You do not! Now say what you have to do? If you have any hunger – for the body, for money, for respect or for praise, it may be for anything, that would not be called selfless love – neither among yourselves, nor for the Father. The definition of ‘selfless’, ‘ni’ – ‘none’, no selfishness at all. Has everyone passed in selfless love, now? Have you? Have you? [No] So, all the seats are lying vacant till now. Now take a seat and show. OK? It means everyone has a full chance. Did you understand? Did you understand what ‘selfless’ means?

What kind of love does this Mother (‘Maiya’) have for you children? [Selfless Love] You do accept that she has. Do you accept, or do you not? [We do accept, Baba] Has she at any time - recollect and say – at any time, recollect and speak – I take the guarantee for her mind, and I leave it to you regarding her mouth - has she made any demands to you? Or, did she desire to take something from you? Or, did she say about anything, anything at all – ‘you give something, then I will give you this; if you give, then I will give you; if you give money, then I will give you love; if you give this, then I will give you that’? She is before you with regard to her speech, but the Father takes the guarantee for her mind. Just think, if you say that only God can have this selfless Love, no human being can have this - then the ‘world Mother’ (‘Jagat Amba’), the living form of consciousness, is sitting in front of you.
‘Kamdhenu’, the one who fulfills everyone's wishes, is sitting in front of you. The example in this world is sitting in front of you, who is with you by donning a human body. So, there should be no complaint that there is no one on this earth who has selfless love! And it is not only through her speech, but also through her mind and through her heart – that everyone has freedom, ‘do as you like, do as you wish, do whatever your heart desires’. Did she exert any pressure on any child – ‘no, you have to do this much, or you must give this much, only then will you stay here, only then can you do that, only then will you be treated accordingly’. Now, everyone should carry out your own checking within you. ‘Do I have selfless love? Do I?’ Now, you should check this. Everyone has a full chance – but there is not much time left.

When ‘Maiya’ gives, then she does not think about anything else. Nothing at all. What does giving mean? Giving means whether the person, to whom you are giving, has selfishness within his/her mind, or whether he/she needs it! Just see this. If there is a feeling within anyone of taking again and again, again and again, sometimes from someone, sometimes due to a habit of begging from someone, then that is not the real need of that one, then that one is compelled by a habit and also has selfishness. So, remember this also, by giving financial help to someone again and again, again and again, we deprive that one from his/her karma. And those who keep asking again and again, understand that they are beggars. And beggars can never become children. If they do not improve themselves, do not correct themselves, do not bring a change within themselves, then they will continue to remain as beggars, they will not be able to become children.

What is the difference between beggars and children – will anyone say? A beggar begs at the gate outside the house, while a child sits on a throne inside the palace. Now, should you beg outside the gate like a beggar, or should you sit on the throne like a king? Now, you should check what you should do! What must you do? This is certain that those who spread their hands again and again, those who spread their palms, will become beggars, and those who become children will sit on the throne. Now, you should carry out your own checking. You should check and then change. Check what the difference is between a child and a beggar. The Father takes the guarantee of sustaining those children who never ask from anyone.

Did the Father not take this paper from ‘Jagadamba’ (when ‘Maiya’ enacted that role two births earlier)? Did He not take from this Mother (‘Maiya’) also? He did take, did He not? She was in such a situation, such a situation, that she did not have even one penny (paisa) with her, but still she never extended her hand (to ask from anyone). Even then! And this paper was not taken just for one, two, or three days, this paper was taken for a full 4 years. Here, at this place, even before coming to this place and also after coming here. Just think, this is a wonder, is it not! Then too this (the thought of asking) did not emerge even from her mind, let alone from her mouth! Is this a wonder? A test paper was taken to the extent that she was kept hungry for two days, to see whether even then she would relent or not! The Father has not taken this body just like that! First, a paper was taken strictly, every type of paper was taken, every type was taken. Now say, did any of you children ever have such a situation at any time, at any moment, so far? Did you? That there was no food to eat for one time, or for one day, or for two days? Or that you had to ever sleep on an empty stomach? Who all had such a situation? Carry out this checking.

That is why the Father says one thing, again and again – ‘It is better to die than to ask (beg)’! You receive pearls without asking, and you do not even get alms by asking. What do they do? Those who spread their hands, does the whole world give them? Some leave after lecturing you about 10 things, some leave after saying a few words, and some leave by leaving just a penny. No matter how poor one is in this world - both are poor – one who is begging, and the other who is working very hard, both are poor. Which one would you prefer to be? Everyone should speak loudly. [the one who works hard] You will prefer that, will you not? You will! Whom would you prefer? [the one who works hard] The one who makes efforts. When your choice is for those who work hard, will the Father like a beggar? The Father would like hard-working, effort-making children, would He not? So what must you become? You have to become effort-makers. Which effort? This is a body that is dedicated to the Father's work, so you should surrender completely. Work hard, move swiftly, then the Father takes the guarantee for your life. Even after belonging to the Father, if you indulge in laziness and carelessness, then what would the Father say? How long will this last? This cannot last for long. Did you understand?

Did you understand – what is today’s lesson? [Selfless love] ‘Selfless love’ – whether for the body, for the mind, for money, or for a person, for anyone. Selfless love! Do not think, ‘I have selfless love, but what if selfishness comes in the mind of the person in front?’ This, too, would not be called selfless love. You have to be selfless, why do you think of the one in front? You just take your own guarantee - and leave the one in front to the Father, if every child sitting here studies this lesson that you must have selfless love, no selfishness at all. In the beginning, they show that they are selfless, but gradually they do get on the track of selfishness. Is it not? Is it not? So, this track of selfishness will emerge again and again, but you should not see it even while looking at it.

Today, you have been taught the definition of ‘selfless love’, and you have been taught that ‘it is better to die than to ask’. The Father will now check for how long this will remain imbibed in your lives. Check whether you have imbibed this until the final moment, or whether you have imbibed only till today. OK?

You are a hundredfold fortunate – you are being sustained in the Father’s Lap. If you see the condition of the world – then? Therefore, do not ever think, ‘I have done this, I have done that, I have given this much and I have given that much’. Today, ‘this much and that much’ is all flowing away. You give that which is perishable; the Father gives you that which is imperishable, which can never perish, which can never finish, which can never burn, which can never get submerged. The Father gives you that which is imperishable, then too the Father never says that I have given you this much. By giving something which is perishable, what is there today will finish tomorrow, even then what do the children say? I have given this much! So, all the children should carry out this checking,

We will Meet again ..
OK children!

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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destroy old world
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
20.07.2023 - रायपुर, (छत्तीसगढ़)

"मीठे बच्चे .. जैसे बाप साकार बनके आपसे मिल रहे हैं, ऐसे आप भी कभी निराकार बनके परमधाम में आओ, तो बाप को खुशी मिलेगी। अब बाप बुला रहे हैं - तो सारे सब्जेक्ट को खत्म करो, एक सब्जेक्ट, बस –‘प्यार’! वो भी – ‘निस्वार्थ’!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=g7B0p2y5SlI

अच्छा .. सभी खुश हैं? बाप से प्यार है? [जी बाबा] प्यार है? [जी बाबा] प्यार है? [जी बाबा] .. प्यार है तभी बाप के पास पहुँच गए ना! बिना प्यार के किसी से मिलने की क्या आवश्यकता है? बाप से बहुत प्यार है - तभी पहुँचे ना? पर बाप को कितना प्यार है? अगर सिर्फ आपको ही प्यार होता, तो भी नहीं पहुँच पाते ना? तो बाप को भी तो इतना प्यार है। प्यार, प्यार से खींचता है – याद, याद को खींचती है। प्यार में कदम अपने आप चलते हैं - अपने साथी की तरफ। इसीलिए प्यार तो हर किसी को है ना? ‘प्यार में परिवर्तन’- प्यार में, जिससे प्यार है उसके जैसा बनना। जिससे प्यार है उसके जैसा बनना!

बाप को प्यार है, तभी बाप आपके जैसा बनके आपसे मिलने आए हैं। बाप को अपना इस धरा पर कोई घर नहीं है - कोई पर्मनंट घर नहीं है, पर आपसे मिलने के लिए बाप ने घर (शरीर) किराए पे लिया है। इसको क्या कहेंगे? क्या कहेंगे? क्या कहेंगे? [निस्वार्थ प्यार] आपसे मिलने के लिए इस दुनिया में बाप ने घर लोन पे लिया है, किराए पे लिया है। बाप को प्यार है ना - तभी आपके जैसा बनके आप से मिलन मनाने आते हैं। बाप ने अपना वायदा पूरा किया, अब आपकी बारी है। क्या आप भी बाप के जैसा बनके अपने घर आ सकते हैं? बाप आपसे मिलने के लिए आपके जैसा बनके आए, अब आपको भी क्‍या करना है? [बाप जैसा बनना है] बाप कैसा है? [निस्वार्थ प्यार करने वाला] निस्वार्थ प्यार - दिखने में कैसा है? [निराकार] निराकार! तो आपको भी क्या करना पड़ेगा? निराकार स्थिति में अपने परमधाम घर में आना है .. समझे? यह प्रेम होता है, यह प्यार होता है।

जैसे बाप साकार बनके आपसे मिल रहे हैं, ऐसे आप भी कभी निराकार बनके परमधाम में आओ, तो बाप को खुशी मिलेगी। जब बाप आते हैं आपको खुशी मिलती है! मिलती है? [हाँ बाबा] एक दो को - या सबको? [सभी को] कितनी खुशी मिलती है? [बहुत खुशी] कितनी तैयारी करते हो! खुशी में नाचते हो – ‘बाबा आएगा’! तो जब आप निराकार अवस्था में बाप के पास, बाप के घर आओगे, तो बाप को कितनी खुशी मिलेगी। मिलेगी? तो यह अभ्यास बारी-बारी करना है – ‘मैं निराकार आत्मा बनके अपने घर की यात्रा पर निकल गई हूँ .. जहाँ पर बाप से मिलते ही मुझे सौगात मिलती है .. दिव्य गुणों की सौगात, प्रेम की सौगात, शांति की .. ये सारे गुण मेरी सौगात हैं, उनसे भरपूर हो, मैं आत्मा सतयुग में पहुँचती हूँ .. इस धरती पर बहुत विशाल सौगात हैं मेरे लिए .. और यह सौगात कोई अन्य आत्मा, या धर्मात्मा नहीं दे सकती, यह सिर्फ परमात्मा के पास है।’ आपके लिए परमधाम में बहुत सौगात हैं। प्रेम हो, तो सौगात लेने पहुँच जाना, और बाप को गले लगाने भी पहुँच जाना।

प्रेम की परिभाषा है – ‘आप जैसे कहो, आप जैसे हो, मुझे वो स्वीकार है।’ आप कैसे थे? बाप ने हर आत्मा को स्वीकार किया ना? और अपने जैसा बनाने की मेहनत बाप कर रहे हैं .. आपसे मिलने की। तो प्रेम की परिभाषा .. यह सौदा नहीं है, यह प्यार है .. एक दूसरे जैसा बनना। प्यार माना क्या? जहाँ प्रेमी बुलावे, वहाँ पंख लगाकर दौड़के चले जावे। यही प्रेम है ना? तो बाप भी आपसे बहुत प्यार करते हैं। बाप ने बुलाया है - परमधाम आओ, सूक्ष्म वतन घर आओ। जैसे आपने बुलाया कि ‘अगर भगवान सच में प्यार है तो हमारे जैसा हो, हमसे मिलो; अगर सच में आप हैं, तो हमें अपने पास बुलाओ।’ तो बाप तो आए ना? आपने बुलाया बाप दौड़े चले आए| अब बाप बुला रहे हैं - क्या इतनी रफ्तार आपके पंख में है? है? नहीं है, तो भरो। एक ही पावरफुल मंत्र है – ‘प्यार’!

जब प्यार होता है ना, तो साँप भी रस्सी दिखाई देने लगती है। कुछ नहीं दिखता - ना डर होता है, ना फिक्र होती है, ना लोक-लाज होती है, ना चिंता होती है - बस प्यार होता है। एक ही से होता है - बस प्यार होता है, फिर कुछ नहीं होता। क्या इतना प्यार है? सारे सब्जेक्ट को खत्म करो, एक सब्जेक्ट, बस –‘प्यार’! वो भी ..? वो भी –-‘निस्वार्थ’! स्वार्थ वाला प्यार बहुत बोझिल होता है, आत्मा को उड़ने नहीं देता। पंखों में स्वार्थ का बोझ बढ़ जाता है। जब स्वार्थ खत्म हो जाता है ना, बस प्यार बचता है। और प्यार में इतनी ताकत होती है .. कितनी? कि जो संकल्प लेके बैठा हो कि मैं इस धरती पर नहीं आऊँगा, वो भी आ जाते हैं। किसमें? प्यार में! प्यार को पहचानो, प्यार का मतलब क्‍या है? आपको बाप से प्यार है ना? है ना? [हाँ बाबा] है! आपको बाप से कया चाहिए? क्यों प्यार है? क्यों प्यार है? नहीं पता ना, क्यों प्यार है - बस प्यार है। अपने आप ही प्यार है - है ना? मालूम नहीं है कि क्यों है, बस प्यार बहुत है। कारण क्‍या है? बाप को देखते ही आँखें और दिल क्‍यों भरके आता है? [क्योंकि प्यार है] प्यार है .. पर क्यों? क्यों प्यार है?

आपको कोई लालच है? कि ‘स्वर्ग में महाराजा-महारानी बनूँगा’ - इसलिए प्यार है? ऐसा नहीं ना? या ‘बाप से कोई प्रॉपर्टी, धन-दौलत मिलेगा’ - इसलिए प्यार है? नहीं - यह भी नहीं। तो क्‍यों है? [स्वाभाविक है, बाबा - नेचुरल है] क्यों है? [मेरा बाबा है] मेरा बाबा है .. प्यार क्‍यों है? [संबंध है] संबंध में भी प्यार होता है, संबंध नहीं होगा तो प्रेम कहाँ से होगा? पहला संबंध कौनसा है? [बाप और बच्चे] बाप और बच्चे का संबंध है - इसलिए प्यार है ना? बाप और बच्चे का संबंध! पर दुनिया में भी बाप और बच्चे का संबंध है। है? [जी बाबा] तो क्या उनका प्यार होता है? होता है? [स्वार्थ वाला प्यार होता है|] स्वार्थ वाला होता है - क्यों? क्यों स्वार्थ वाला होता है? बच्चे का लौकिक दुनिया में पिता से क्यों स्वार्थ वाला प्यार होता है? [बाप का भी स्वार्थ होता है ना, बाबा!] बाप का स्वार्थ होता है – ‘बच्चा बड़ा होके मेरी सेवा करेगा’; और बच्चे का स्वार्थ होता है कि ‘बाप की सारी प्रॉपर्टी मुझे मिलेगी’। लौकिक दुनिया के संबंधों में भी स्वार्थ है! लेकिन बाप के प्यार में, बाप के संबंध में, कोई स्वार्थ नहीं! तो ऐसा ‘निस्वार्थ प्यार’ करना है। जैसे बाप आपके जैसा बन गया, अब आप भी बाप के जैसा बनके बाप के घर की यात्रा पर आना।

ऐसे निस्वार्थ, सच्चे प्रेमियों को परमधाम निवासी का मीठा-मीठा याद-प्यार, रस भरा याद-प्यार .. और जो भी बाप के कार्य में सहयोगी - यह बाप का नहीं, आपका कार्य है, क्योंकि मालिक कौन बनेगा? कौन बनेगा? मालिक कौन बनेगा? आप बच्चे मालिक बनेंगे - ऐसे मालिक बच्चों को माली बाप का याद-प्यार!

माली माना फूलों की देखभाल करने वाला। तो आप कौन हो? कौन हो? [फूल] फूल हो ना? फूल हो - बन रहे हो - या बन गए हो? [बन रहे हैं] बन रहे हैं - बन रहे हैं ना? जल्दी बनो, क्योंकि समय बहुत कम है! ड्रामा में होता तो आज - साल, दिन, समय सब बताके जाते। पर मालूम है कि बताने से बच्चों के मन में तूफान आ जाएगा। जो पुरुषार्थ करना चाहिए, मेहनत करनी चाहिए वह नहीं कर पाएंगे - इसलिए समय कम है, जल्दी कवर करना है, बाप साथ है - जीते जी भी, और शरीर छोड़ने के बाद भी। बाप ज्यादा चिपकने वाला है ना? है ना? जीते जी भी नहीं छोड़ते, और मरने के बाद भी पीछे रहते हैं। ऐसा साथी कोई मिलेगा? मिलेगा? जब से आए हैं धरती पर, तबसे पीछे ही पड़े हैं! भले आपने शरीर छोड़के नया लिया हो, पर बाप ने पीछा नहीं छोड़ा। ऐसा साथी कभी मिलेगा? मिलेगा? कभी नहीं मिलेगा, कि आपने कितनी बारी भी शरीर छोड़ा हो - आपने शरीर छोड़ा, पर बाप ने आपको नहीं छोड़ा - इतना प्यार है बाप का! और अगर पर्मनंट इस पुरानी देह का त्याग भी करके परमधाम जाएंगे तब भी नहीं छोड़ेगा - ना इस दुनिया में, ना दुनिया के बाहर। और बच्चे थोड़ा भी नाराज हुए, तो सीधा बाप को ही छोड़ देते हैं। और बाप? चाहे बच्चे कितनी भी गाली देवे, पर ..? पर बाप नहीं छोड़ते क्योंकि बाप को मालूम है - अभी गुब्बारे में हवा बहुत फोर्स से है, जब ठंडा होगा तो अपने आप बाप याद आएगा। क्योंकि बाप तो जानते हैं ना!

कितने बच्चे, ब्राह्मण परिवार में बच्चे क्या बोलते हैं – ‘हम मर जाएंगे पर - पर आपके पास मिलने नहीं आएंगे’! बाप क्या कहते हैं? आप मरने के बाद तो बहुत फास्ट से आओगे, रफ्तार बहुत जल्दी तेज हो जाएगी! ऐसे बच्चे बोलते हैं - तो उनको क्‍या कहेंगे? ऐसा संकल्प लो जो पूरा कर सको, ऐसा नहीं - ‘हम मरने के बाद भी आपके पास नहीं आएंगे’! वो तो सबसे पहले बाप के पास ही आएंगे। इसीलिए यह संकल्प लो – ‘बाबा, चाहे कुछ भी हो जावे, हम आपका साथ और हाथ कभी नहीं छोड़ेंगे’। ठीक है?

फिर मिलेंगे ..

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Versions of Shiv Baba
20.07.2023 - (Raipur, Chhattisgarh)

"Sweet children .. Just as the Father is Meeting you by coming into a corporeal form, in the same way, you also should sometimes come to the Supreme Abode by becoming incorporeal, and then the Father will be pleased .. Now, the Father is calling you .. so, finish all the other subjects, let there be just one subject, that’s all – that of ‘Love’! And that, too – ‘Selfless’ (Love)!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=g7B0p2y5SlI

OK .. Is everyone Happy? Do you have Love for the Father? [Yes, Baba] .. Do you have Love? [Yes, Baba] .. Do you have Love? [Yes, Baba] .. It is because you have Love that you have reached here to the Father! What is the need to meet anyone without love? You have great Love for the Father – that is why you have reached here, have you not? But how much Love does the Father have? If only you had Love, then too, you would not be able to reach here, would you? So, the Father too has such great Love. Love is attracted by Love – Remembrance is attracted by Remembrance. When in Love, your steps automatically move - towards your Companion. Therefore, everyone has Love, is it not? ‘Transformation in Love’ – when in Love, you become like the One whom you Love. You have to become like the One whom you Love!

The Father has Love for you, that is why the Father has come to Meet you by becoming like you. The Father does not have any Home on this earth – He does not have any permanent Home (body), but the Father has taken this Home (body) on rent in order to Meet you. What would this be called? What would it be called? What would it be called? [Selfless Love] In order to meet you, the Father has taken this Home on loan, in this world, He has taken this on rent. The Father has Love for you – that is why He comes to celebrate a Meeting with you, by becoming like you. The Father has fulfilled His promise, now it is your turn. Can you, too, become like the Father and come to your Home (Soul World)? The Father has come here, by becoming like you, in order to meet you, and so what should you too do now? [We have to become like the Father] How is the Father? [He is the One who gives selfless Love] Selfless Love – how does He look like? [Incorporeal] Incorporeal! So, what do you also have to do? You have to come back to your Home in the Supreme Abode in your incorporeal stage .. did you understand? This is affection, this is Love.

Just as the Father is Meeting you by coming into a corporeal form, in the same way, you also should sometimes come to the Supreme Abode by becoming incorporeal, and then the Father will be pleased. You receive Happiness when the Father comes! Do you receive? [Yes, Baba] Just one or two of you – or do all of you receive? [Everyone receives] How much Happiness do you receive? [Great Happiness] You make so many preparations! You dance with Happiness – ‘Baba will come’! When you come to the Father, in the Father’s Home, in your incorporeal stage (only as a soul), then the Father would be greatly pleased. Will He not? So, you must do this exercise again and again – ‘I have set out on a journey to my Home by becoming an incorporeal soul .. where I receive a Gift as soon as I Meet the Father .. the Gift of Divine Virtues, the Gift of Love, of Peace .. all these Virtues are my Gift, and I, the soul, reach the Golden Age after being filled with them .. there are many great Gifts on this earth for me .. and these Gifts cannot be given by any other soul or even by any religious founder soul, they are only with God.’ There are many Gifts in the Supreme Abode for you. If you have Love, then you should reach there to take your Gifts, and you should also reach there to embrace the Father.

The definition of Love is – ‘I accept you whatever you may say, as you are.’ How were you? The Father accepted every soul, did He not? And the Father is making efforts to make you like Himself .. to Meet you. So, the definition of Love is to become like each other .. this is not a deal, this is (true) Love. What is meant by Love? One who comes running wherever the Lover may call, by donning wings (of Love). This is (true) Love, is it not? So, the Father too has great Love for you. The Father calls you – come to the Supreme Abode, come Home to the Subtle Region. Just as you called – ‘God, if you really Love us, then become like us and Meet us; if this is really You, then invite us to Yourself.’ So, the Father came, did He not? You called Him, and the Father came running, and now the Father is calling you – do you have such speed in your wings (of Love)? Do you? If you do not, then fill yourself. There is only one powerful mantra – ‘Love’!

Even a snake appears like a rope, when there is Love. Nothing is visible – neither do you have any fear, nor is there any concern, nor is there any feeling of shame for not complying with community customs, nor is there any worry – you just have Love. You have Love only for One – you just have Love, then there is nothing else. Do you have such Love? Finish all the other subjects, let there be just one subject, that’s all – that of ‘Love’! And that, too ..? That, too – ‘Selfless’ (Love)! Selfish love is very burdensome, it does not allow the soul to fly. The burden of selfishness increases in the wings (of Love). When selfishness finishes, only (true) Love remains. And such Love has so much energy .. how much? Such that, even when some are sitting with the thoughts that I will not come on this earth, but I still come. Through what? Through (true) Love! Recognize (true) Love, as to what is meant by this Love! You do have Love for the Father, do you not? Do you? [Yes, Baba] You do! What do you want from the Father? Why do you have this Love? Why do you have such Love? You do not know as to why you have this Love – you just have such Love. Love exists by itself – is it not? You do not know why you have this Love, you just have such great Love. What is the reason? Why do your eyes and heart fill with tears (of Love) as soon as you see the Father? [Because there is Love] You do have Love .. but why? Why do you have such Love?

Do you have any greed? That ‘I will become an Emperor, or Empress in Heaven’ – and that is why there is Love? It is not like this, is it? Or, ‘I will get some property, or wealth from the Father - and that is why there is Love? No - not even this. Then why do you have Love? [It is intrinsic, Baba – it is natural] Why do you have? [You are my Baba] I am your Baba .. why do you have Love? [There is a relationship] There is love in a relationship, if there is no relationship then how could there be love? Which is your first relationship? [Father and children] The relationship of a ‘Father and child’ – this is why there is Love, is it not? There is a relationship of ‘Father and child’! But there is a relationship of ‘father and child’ in the world also. Is it not? [Yes, Baba] So is there love between them? Is there? [They have selfish love for each other] There is selfish love – why? Why is there selfish love? In this corporeal world why is the love of the child for the father selfish? [Even the father’s love is selfish, Baba!] The father has selfishness that – ‘the child will serve me when he grows up’; and the child has selfishness that – ‘I will receive the entire property of the father’. There is selfishness in worldly relationships also! But there is absolutely no selfishness in the Love of the Father, in the relationship of the Father! So, you should have such ‘selfless Love’. Just as the Father has become like yourself, now you too should become like the Father and come on the journey to the Home of the Father.

To such selfless, true lovers - sweetest Remembrance and Love, essence-full Remembrance and Love from the Resident of the Supreme Abode .. and whoever is co-operative in the Father’s task – this is not the Father’s, it is your task, because who will become a Master? Who will become? Who will become a Master? You children will become the Masters (of Heaven) - to such children who are the Masters, Remembrance and Love from the Father, who is the Gardener (of Heaven)!

‘Gardener’ means the One who takes care of ‘Flowers’. So, who are you? Who are you? [Flowers] You are (living) Flowers, are you not? You are Flowers – are you still becoming – or have you already become? [We are becoming] You are becoming – you are still becoming, are you not? Become fast, because time is very short! Had it been in the Drama, then today – I would have told you everything, the year, the date, and the time, and then leave. But I know that by telling this, storms would arise within the minds of the children. You will not be able to make the efforts which you should be making, and the Service which you should be doing – this is why, since the time is short, you have to cover up quickly, the Father is with you – while you are living, and also after you leave your body. The Father is the One who clings to you more, is it not? Is it not? He does not leave you even while you are alive, and He follows you even after death. Would you get such a Companion? Would you? He has been following you ever since you came to this earth! Even though you may have left one body and taken a new one, the Father never stopped following you. Will you get such a Companion? Will you? You will never get - even though you may have left your body many times – you left your body, but the Father did not stop following you – the Father has such Love for you! And even if you leave this old body permanently and go to the Supreme Abode, then too He would not leave you – neither in this world, nor outside this world. And if the children get even a little angry, they just leave the Father immediately. And the Father? Regardless of how much the children insult Him, but ..? But the Father does not leave you, because the Father knows - right now the air in the balloon has a great deal of force, when it cools down, you will automatically Remember the Father. Because the Father knows, does He not?

So many children, what do the children from the Brahmin Family say – ‘we will die – but we will not come to Meet you’! What does the Father say? You will come very fast after death, the speed will increase very quickly! The children speak in this manner – so, what would they be told? Emerge such a thought which you will be able to fulfill, not this – ‘we will not come to You even after death’! They will come to the Father first of all. That is why you should emerge this thought – ‘Baba, no matter what happens, we will NEVER leave your Company and your Hand’. OK?

We will Meet again ..

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
12.08.2023 - रायपुर, (छत्तीसगढ़)

"मीठे बच्चे .. प्यार की परिभाषा है ‘परिवर्तन होना’। प्यार का मतलब है जिससे भी प्यार है - या तो उसके जैसा बन जाओ, या उसको अपने जैसा बना लो।"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=G5rIDnkS6vo

अच्छा .. आज किसके सरकार आए हैं? किसके सरकार आए हैं? आज बाप के सरकार आए हैं, और सरकार सामने बैठे हैं। आप सरकार कैसे हुए? जो आज तक जहाँ जो नहीं पहुँच पाया, आप बच्चे वहाँ पहुँच के, परमधाम से बाप को बुलाके लेके आ गए! यह सरकार ही कर सकती है ना? नहीं तो द्वापर युग से भक्ति मार्ग में कितने गुरु-गोसाई आए, सन्यासी आए, पर कोई ढूँढ नहीं पाए। बाप जाके सातवें आसमान पर बैठे थे, और आप बच्चों ने क्या किया? क्या किया? क्या बताएंगे क्या किया? बाप को सातवें आसमान से नीचे लेके आए! तो सरकार कौन हुए? कौन हुए? आप सभी बच्चे! भल सभी ने हठ किया, भक्ति मार्ग में बली भी चढ़ गए, सोचो तब भी बाप नहीं आए - आवाज भी सुना, पर बाप को एक रस्सी ने खींचा। कौनसी रस्सी ने? [प्यार की] प्यार की रस्सी ने। क्योंकि परमधाम तक, एक ही रस्सी में इतनी पावर है जो वहाँ पर बैठे बाप को बाँध के नीचे लेके आ सकती है।

बाकी कोई रस्सी ऐसी बनी ही नहीं है जो परमधाम को छू ले। जब परमधाम को नहीं छू पाएंगी तो बाप को कहाँ से छूएगी? तो यह रस्सी है ना, यह प्रेम की रस्सी है, जो बाप को खींच के लेके आती है, और बाप भी दौड़े चले आते हैं। कैसे? कैसे? प्यार की रस्सी में! क्या - बाप को तो इतना प्यार आपसे है, पर क्या आपको इतना प्यार बाप से है? है? या नहीं है? [है] नहीं है! अच्छा, क्यों नहीं है बतावे? मानो कोई भी बच्चा या आत्मा अपना पुराना देह त्याग के अपने बाप से मिलने सूक्ष्मवतन जाए, आपको क्या खुशी होगी? अब बताओ - प्यार है? खुशी नहीं होगी, उल्टा उल्हाना देंगे, क्या कहेंगे – ‘देखो, बाप से मिलने गया था, या बाप से मिलने के लिए जा रहा था, क्या हो गया?’ बाप क्या कहेंगे? आप तो लेट आते, वो तो आपसे पहले बाप से मिलने पहुँच गया। खुशी नहीं होगी ना? नहीं होगी - रोएंगे, दुख में आँसू बहाएंगे।

आप सोचो जब बाप-दादा आते हैं आपको खुशी होती है? [होती है] होती - क्यों होती है? क्यों होती? [सामने आए हैं] सामने आए इसलिए? क्यों होती है? प्यार है इसलिए ना? मतलब बाप-दादा के पास कोई देह नहीं है, पर दूसरी देह में आके आपसे मिलते हैं। सोचो, आपके पास तो अपनी खुद की देह है, फिर भी परमधाम आके, सूक्ष्म वतन आके, आप बाप से नहीं मिलते हो। आपके पास ऑप्शन है, अभी देह से निकलेंगे, बाप-दादा से मिलेंगे, और वापिस अपनी देह में आ जाएंगे। क्या बाप के पास यह ऑप्शन है? क्योंकि बाप-दादा निकले - जैसे ब्रह्मा बाप से निकले, देह पुरानी हुई, छूट गया - अगली देह बाप को मालूम है मुकर्रर होती है, परंतु उसमें आने-जाने के लिए बाप को कितना मेहनत लगता होगा। उसमें सैट (set) होने के लिए कितना मेहनत लगता होगा।

बच्चे सोचते हैं – ‘बाप है ना, आपके लिए तो चुटकी का खेल है।’ चुटकी का खेल है - लेकिन जो आत्मा शरीर में है, और उसका शरीर है, तो उसको अपना स्थान खाली करके बाप को देना पड़ेगा। जब आपके घर में, लौकिक घर में, कोई बाहर से आ जाते हैं, एक-दो रोज के लिए आएंगे, तो आप दिल से वेलकम करेंगे ना? अगर परमानेंट रहने लगे तो? क्या कहेंगे? रखेंगे? नहीं रखेंगे, कभी ना कभी तो कहेंगे। आपके मिट्टी के बनाए हुए घर में आप किसी दूसरे को नहीं रख सकते, हमेशा के लिए नहीं रख सकते, हमेशा के लिए अपना घर उसको सरेंडर नहीं कर सकते - तो यह तो देह, जो आत्मा हर घड़ी इस शरीर रूपी घर में चिपकी होती है, तो यह कैसे सरेंडर हो सकती है? इसमें भी हाईएस्ट पुरुषार्थी आत्मा चाहिए, कि जो अपना शरीर रूपी घर बाप को दे सके। इसमें भी ऐसा पुरुषार्थी चाहिए।

आप सोचो, अब बताओ क्या आत्मा का पाठ पक्का है? है? है? नहीं है ना? नहीं है ना? अच्छा, अभी बताओ बाप से प्यार है? [है] इस बात में सब पक्के हैं। क्योंकि प्यार नहीं होता तो आप यहाँ नहीं होते। प्यार है तभी पहुँचे हो, और बाप को भी प्यार है, तभी बाबा मिलने आए हैं। प्यार की परिभाषा है ‘परिवर्तन होना’। प्यार का मतलब है - जिससे भी प्यार है, या तो उसके जैसा बन जाओ, या उसको अपने जैसा बना लो। तो आप क्या करेंगे? आप क्या करेंगे? [बाबा जैसा बनेंगे] नहीं बन रहे थे। पहले बाप ने आपके जैसा बनके बाप आए हैं आपको अपने जैसा बनाने - तो ज्यादा प्यार किसका हुआ? [बाप का] बाप का हुआ। क्यों? क्योंकि हम पहले आपके जैसे बने, फिर आपको अपने जैसे बना रहे हैं। आपके जैसे, कैसे? आप देह रूपी घर में है ना, तो हमने भी देह रूपी घर लिया, मतलब आपके जैसे बने।

अब बाप के जैसे बनके क्या बनना है? आपको अब क्या बनना है? अब क्या बनना है? [आत्मा’ बनना है] अब ‘आत्मा’ बनना है। बन गए हैं? बन गए हैं? नहीं बने। बनना है! एक-दो के साथ संस्कार मिलाना यह भी आत्मा बनने का अभ्यास है। क्योंकि आपस में एक-दो को अपना परिवार समझना, यह आत्मा बनने का अभ्यास है। क्योंकि परमधाम में सभी आत्माएं एक ही डिब्बी में आने वाली हैं। आपकी अलग, आपको अलग कमरा नहीं मिलने वाला। सभी कहते हैं ना – ‘क्या हमारे लिए अलग कमरा होगा? हमें अलग कमरा चाहिए। हम आ तो रहे हैं, पर हमें VIP ट्रीटमेंट चाहिए। अलग रहना है, हम सबके साथ मिलके रह नहीं सकते।’ तो यह जो भाषा है, यह परमधाम में नहीं होगी। चाहे यहाँ पे कोई कितना भी बड़ा VIP हो। परमधाम रूपी एक ही कमरा है, अलग-अलग नहीं है। तो एक ही कमरे में रहना है। क्यों ना इससे अच्छा एक साथ रहने का अभ्यास डाल लेवे! समझ में आया?

अच्छा बच्चों, बाप की प्रत्यक्षता का नगाड़ा बज रहा है - कहो बज गया है! [बज गया है!] बज गया है! अभी देर नहीं लगेगी! अभी देर नहीं लगेगी, अभी बहुत तेजी से समय तीव्र गति से दौड़ रहा है। समय को भी समझ है कि मेरा लक्ष्य क्या है। अभी सतयुग आना है, यह समय को भी समझ है कि अब मैं गया, अब सतयुग में आना है, यह समय को भी समझ है। आपको समझ है ना? है? समय को तो मालूम पड़ गया है कि मैं गया - आपको समझ है? नहीं है? नहीं है, तो समझो।

अच्छा, यहाँ आने वाले हर एक बच्चे को, दिल में बैठने वाले दिलवाले बच्चों को, बड़ी दिलवाले बच्चों को, दिलाराम बाप-दादा का याद-प्यार, और वंदे मातरम्!

क्यों? वंदे मातरम क्यों? क्योंकि माँ का राज्य आ गया है। और हमेशा देखना इस लौकिक दुनिया में देखना, जब पति चला जाता है, तो माँ के चाहे कितने भी बच्चे हो, वो मेहनत करके अपने बच्चों को पाल के बड़ा कर देती है, काबिल बना देती है। ऐसा ना? और बच्चे क्या करते हैं? द्वापर युग से सभी की धारणा कैसी बनी? स्त्री को पाँव की जूती बनाया, एक गई तो दूसरी आई - और स्त्री ने पति को परमेश्वर बनाया कि ‘एक आप ही हो दूसरा कोई नहीं। भल आप जब तक है तब तक मैं हूँ, नहीं तो आपकी चिता पर बैठकर मैं भी सती हो जाऊँगी।’ कितना फर्क है ना? कितना फर्क है ना - माँ के राज्य में, स्त्री के राज्य में, और पुरुष के राज्य में। कितना फर्क है – सोचो! स्त्री अगर गई तो दूसरी ले आएंगे; पुरुष अगर गया तो उसके साथ सती हो जाएंगे। स्त्री को पाँव की जूती और पुरुष को परमेश्वर का नाम दिया गया। तो अभी अगर परमेश्वर का नाम दिया गया है तो सिद्ध करो, सच में परमेश्वर बनो। कोई यह नहीं सोचना है कि द्वापर युग में हम सब पुरुष ही रहेंगे - माताएं भी होती हैं, बच्चे भी होते हैं।

पुरुष अर्थात ‘आत्मा’ अपने आप को पुरुषोत्तम बनाओ। अपने आपको मर्यादा पुरुषोत्तम बनाओ। मैं मर्यादा पुरुषोत्तम हूँ, कोई मर्यादा को लाँघने वाला नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ। यह नहीं है कि पुरुष ने ऐसा किया – नहीं! पुरुष की प्रवृत्ति ने ऐसा किया। अपने आप को स्त्री और पुरुष नहीं समझो, अपने आपको ‘आत्मा’ समझो। आत्मा समझने से स्त्री पाँव की जूती नहीं बनेगी। हम खुद आत्मा बनके बाप की गोद में छोटे बच्चे बन जाएंगे। तो छोटे बच्चे बनो। देह अभिमान - बाबा बार-बार क्यों कहते हैं, देह अभिमान निकाल दो। क्योंकि देह अभिमान ही रावण को स्थान देता है, और तभी इतने पाप कर्म होते हैं। देहभान नहीं होगा तो पाप कर्म भी नहीं होंगे। जैसे सतयुग में - क्या? देह अभिमान नहीं होता है, तो पाप कर्म भी नहीं होते हैं। आत्मा का अभ्यास डीप में डालो, उतार लो अपने मन में - ठीक है?

और सभी जो इतने समय से बच्चे लगे हैं सेवा में, उन बच्चों को, सेवाधारी बच्चों को, बाप-दादा का, दिल से याद-प्यार, झोलियाँ भर-भर के याद-प्यार, सदा खुश रहना है, खुशियाँ बाँटनी हैं। अभी ब्रह्मा बाप आ करके आपको पूरा समाचार देगा। दोनों के अलग-अलग कार्य है। बाप के आप सभी प्यारे, अति लाडले बच्चे हैं, और सदा रहेंगे।

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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Versions of Shiv Baba
12.08.2023 - (Raipur, Chhattisgarh)

"Sweet children .. The definition of Love is ‘to change’. The meaning of Love is that whoever you Love – you either become like Him, or make Him become like yourself."

Link: https://www.youtube.com/watch?v=G5rIDnkS6vo

OK .. Whose Government has come, today? Whose Government has come? Today, the Government of the Father has come, and the Government is sitting in front of Him. How are you a ‘Government’? You children have reached that place, where no one has been able to reach till today, and you have invoked the Father and brought Him here from the Supreme Abode! Only a ‘Government’ can do this, is it not? Otherwise, since the Copper Age onward, so many gurus, saints, and sannyasis came on the ‘path of devotion’, but no one could find Him. The Father went and sat on the seventh Heaven, and what did you children do? What did you do? Will you say what you did? You brought the Father down here from the seventh Heaven! So, you are a ‘Government’ are you not? Who are you? All of you children! Although everyone performed penances, although you sacrificed on the ‘path of devotion’, just think, even then the Father did not come – He even heard your voice, but the Father was attracted by only one ‘rope’. Which rope? [of Love] The rope of Love. Because there is only one ‘rope’ that has so much power to reach up to the Supreme Abode and tie the Father who is sitting there and bring Him down here.

There is no other ‘rope’ made in such a way that it can touch the Supreme Abode. When it is not able to touch the Supreme Abode, then how can it touch the Father? So, this is a ‘rope’, the rope of Love, which attracts the Father and brings Him down here, and the Father too comes here running. How? How? On the ‘rope’ of Love! The Father does have so much Love for you, but do you have as much Love for the Father? Do you? Or you do not? [We do] You do not! OK, shall I tell you why you do not? For example, if any child, or a soul leaves his/her old body and goes to the Subtle Region to meet the Father, would you feel happy? Now say – do you have as much Love? You would not feel happy, on the contrary you would complain, what would you say – ‘look, he went to meet the Father, or he was going to meet the Father, what happened?’ What would the Father say? You would have come late, he reached to meet the Father before you. You would not feel happy, is it not? You would not – you would cry, you would shed tears in sorrow.

Just think, do you feel happy when BapDada comes? [We do] You do – why do you feel happy? Why do you? [You have come in front of us] Because He is in front of you? Why do you feel? Because you have Love for Him, is it not? It means that even though BapDada does not have a body, but He still comes in another body and meets you. Just think, you have your own body, but still you do not come and Meet the Father in the Supreme Abode, or in the Subtle Region. You have this option - you can leave your body, meet BapDada, and come back to your own body. Does the Father have this option? Because when BapDada left – He left Brahma Baba when his body became old and he had to leave that old body – the Father knows that the next body is fixed for Him, but the Father would have to make so much effort to come and go from that body. He would have to make so much effort to set Himself in that body.

The children think – ‘You are the Father, for You it is just a game of a snap (of a finger).’ It is a game of a snap - but the soul who is in the body, and whose body that is, will have to vacate his/her place and give that to the Father. When someone from outside comes to your home, to your worldly home, if he/she comes for a day or two, you would welcome him/her wholeheartedly, would you not? What if he/she starts living permanently? What would you say? Would you keep him/her? You would not keep him/her, you would tell him/her at some time or the other (to leave). You are not able to keep someone else in your house that is made of mud, you cannot keep him/her forever, you cannot surrender your house to him/her forever – so, this is a body, how can the soul, who is attached every moment to this ‘house’ in the form of a body, surrender it? Here too, the highest effort-making soul is needed, who can give his/her ‘house’ in the form of a body to the Father. Such an effort-maker is needed in this also.

Just think about this - now tell Me, is the lesson of the ‘soul’ firm? Is it? Is it? It is not, right? It is not, correct? OK, now tell Me, do you have Love for the Father? [We do] Everyone is sure about this. Because if there was no Love then you would not be here. You have reached here because you have Love, and the Father too has Love, which is why the Father has come to Meet you. The definition of Love is ‘to change’. The meaning of Love is that whoever you Love – you either become like Him, or make Him become like yourself. So, what would you do? What would you do? [We will become like the Father] You were not becoming like Him. First the Father became like you, and then the Father came to make you like Him – so whose Love is greater? [the Father’s] The Father’s. Why? Because first I became like you, and then I am making you like Myself. How have I become like you? You are in a ‘house’ in the form of a body, so I too have taken a ‘house’ in the form of a body - which means that I became like you.

Now, what do you have to be, by becoming like the Father? What have you to become now? Now, what have you to become? [I have to become a ‘soul’] Now, you have to become a ‘soul’. Have you become? Have you already become? You have not – you have still to become! Matching one's sanskars with one another is also the practice of becoming a soul (regaining soul-consciousness). Because to consider each other as your Family, this too is the practice of becoming a soul. Because all the souls are going to come in the same ‘box’ in the Supreme Abode. You will not get a separate room - a separate one for you. Everyone says, is it not – ‘will there be a separate room for us? We need a separate room. We are coming, but we want VIP treatment. We want to stay separately, we cannot live together with everyone.’ So this language will not be in the Supreme Abode - no matter how great the VIP is here. There is only one room in the form of the Supreme Abode - there are no separate ones. So, you have to stay only in one room. Better than that, why not practice living together here itself! Did you understand?

OK children, the drum of the Father's revelation is beating – say that it has been beaten! [It has been beaten!] It has been beaten! Now, it will not take long! Now, it will not take long, now the time is moving rapidly, very quickly. Even time understands its target. Now, the Golden Age has to come, even time understands that it has now to elapse, and that it has to bring the Golden Age, even time understands this. You understand this, do you not? Do you? Time has come to know that it has to elapse – do you also understand? You do not? If you do not, then you must understand now.

OK, to each and every child who has come here, to the children who sit in the (Father’s) Heart, to the children with a great heart, Love and Remembrance from BapDada, the ‘Comforter of hearts’ - and ‘Vande Mataram’ (‘Salutations to the Mothers’)!

Why? Why ‘Vande Mataram’? Because the Kingdom of the mothers has come. And it is always seen, it is seen in this corporeal world, that when the husband leaves, then no matter how many children a mother has, she works hard to nurture her children, and she enables them to grow, and she makes them capable. Is it not? And what do the children do? How did everyone's inclination (‘dharna’) become from the Copper Age onward? The man made the woman like a shoe on the leg, if one went then another came – and the woman made her husband like God, thinking ‘you are the only one, and no one else; I am there as long as you are there, otherwise I will also become like Sati by sitting on your funeral pyre.’ There is so much difference, is it not? There is so much difference – in the Kingdom of the mother, in the Kingdom of the woman, and in the kingdom of the man. Just think about this – there is so much difference! If the woman goes, then he will bring another; but if the man goes then she will become like Sati and go along with him. A woman has been made like a shoe on the leg, and a man has been given the name of God. So, if the name of God has been given, then now you must prove this and you must really become like God. No one should think that in the Copper Age we will all be only males – there are mothers also, and there are children as well.

‘Purush’ means ‘soul’, make yourself most elevated (‘purushottam’). Let your conduct be most elevated. ‘I am the one who observes the highest code of conduct, I am not going to step over any elevated code of conduct, I am a soul.’ It is not that the man did this – no! The male instinct did this. Do not consider yourself to be a male or a female, consider yourself to be a ‘soul’. The woman will not become like a shoe on the leg when you consider yourself to be a soul. We ourselves will become like small children in the Lap of the Father by becoming souls (by becoming soul-conscious). So, become like small children. Body-consciousness – why does Baba say again and again that you should become free from body-consciousness? Because it is body-consciousness which gives place to Ravan, and that is why so many sinful deeds are performed. If there is no body-consciousness then there will not be any sinful deeds. Like in the Golden Age – how is it there? There is no body-consciousness there, and so there are no sinful deeds either. Enhance the practice of being a soul, take it deep down within your mind – OK?

And to all those children who have been engaged in Service for so long, to the children who have been serving - Bap-Dada's Love and Remembrance from His Heart - Love and Remembrance to completely fill your aprons - always remain happy, and continue to distribute happiness to everyone. Now, Father Brahma will come and give you the complete news. Both have different functions. All of you are the loving and the most beloved children of the Father, and you will always be so!

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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destroy old world
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
27.08.2023 - पुणे (महाराष्ट्र)

"मीठे बच्चे .. आपको सृष्टि बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी - अगर आपने, अपने आप को बदल लिया तो। सिर्फ अपने को बदलो - कोई कुछ भी कहे, कुछ भी बोले - अपने आपको, अपने आपको – बस, अपने आपको बदलो!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=lpK_7QLrro4

अच्छा .. आज बाप-दादा पूरे विश्व में अपनी माला के मणके को देख रहे हैं। सभी - *वैसे तो सारा संसार ही रुद्र माला का मणका है, हर आत्मा मणका है*, पर विशेष दृष्टि बाप की किन मणकों पर गयी? वो कौनसे मणके हैं? कौनसे मणके हैं - जो पहले बाप के गले में पहनाए जाएंगे, उसके बाद विष्णु के गले का हार बनेंगे? वो कौनसे मणके हैं - और वो माला कितने मणकों की होगी? कितने मणकों की माला होगी? [108] 108 माला के मणकों की! वो 108 मणकों की निशानियाँ क्या है? सभी बच्चे तो कहते हैं, ‘बाबा, हम तो 8 की माला का माणका बनने का पुरुषार्थ करेंगे’। बाबा ने कहा - बहुत अच्छी बात है, कमाल हो जाएगा, पर उससे पहले 108 की माला में दौड़ी पहननी है। निशानी क्या होगी - 108 की माला के मणकों की निशानी? [सम्पूर्ण आज्ञाकारी होंगे] सम्पूर्ण आज्ञाकारी - सिर्फ मुख से नहीं, 108 की माला के मणके अगर आज्ञाकारी होंगे तो सिर्फ मुख से नहीं होंगे। कहाँ से? अंदर से - दिल से होंगे, दिल से - कि जो बाप ने कहा बिना संकल्प ‘जी बाबा’। क्या ऐसी दिल है? एक झटके से कहे ‘जी बाबा’! संकल्प भी ना चले। अभी सभी अपने आपको चेक करते जाना - 108 माला के मणकों की निशानियाँ - आज्ञाकारी है? फिर एक बाप दूसरा ना कोई, वफादार! और बताओ [ईमानदार] - ईमानदार, वफादार! इनकी डिटेल समझ में आती है? ईमानदार का मतलब क्या होता है? अपने आपके साथ भी नहीं, और बाप के साथ भी नहीं - कि ‘बाबा, इतना तो चलता है ना, आप मजबूरी समझो ना, अभी तो हम संपन्न थोड़ेही बने हैं, बस आप ही तो जानते हो ना?’

आपको मालूम है - *ब्राह्मण आत्माओं का संकल्प बहुत तीव्र होता है, जो पूरी सृष्टि में घूमता है, और उसका प्रभाव सब पर पड़ता है।* संकल्पों का प्रभाव कैसे पड़ता है? कैसे पड़ता है? कैसे? हम सोचते हैं, ‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं होता, संकल्प कुछ भी करो, किसी को टच नहीं होते; किसीका किसीके ऊपर प्रभाव नहीं पड़ता’। अच्छा, क्या सूर्य का प्रकृति के ऊपर प्रभाव पड़ता है? जब सुबह का सूर्य उदय होता है और एक-एक फूल पर गिरता है तो फूल खिल उठते हैं, पूरी प्रकृति खिल उठती है। क्या सूर्य की किरणों का प्रभाव इस धरती पर पड़ता है? पड़ता है या नहीं? सभी एक हाथ की ताली दिखाओ। सूर्य का प्रभाव धरती पर पड़ता है! पड़ता है ना? प्रकृति पर पड़ता है? इस शरीर पर पड़ता है? चांद का प्रभाव पड़ता है? पड़ता है? [पड़ता है] पड़ता है! हवा का प्रभाव पड़ता है? अगर कहे – ‘सूर्य का प्रभाव कैसे पड़ता है? सूर्य तो बहुत दूर है। कितना दूर है! चंद्रमा कितना दूर है!’ दूर है - तो आपके ऊपर प्रभाव कैसे पड़ता है? अब अपने संकल्पों का खेल देखिए। अगर चलो यह धरती का सूर्य, अगर 12 रोज या 15 रोज ना उगे, ना निकले, तो क्या होगा? क्या स्थिति होगी, कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा? आप - जब शरीर छोटा था आपका, पैदा हुए, कितना प्रभाव पड़ा? आप सिर्फ भोजन ग्रहण करने से बड़े नहीं हुए, सिर्फ दूध पीने से बड़े नहीं हुए। आपके ऊपर सूर्य की किरणें गिरी, पानी की बूंद गिरी, धरती पर खड़े हुए, आकाश की छत्र-छाया मिली, हवा लगी, और सूर्य की किरणों से गर्मी मिली। इन सब तत्वों को मिलाकर, इन सबका प्रभाव आपकी देह पर पड़ा, और तब आप बड़े हुए, यह शरीर बड़ा हुआ।

अब आपके संकल्पों की बात है। अगर आप यह सोचते हैं कि ‘हमारा संकल्प सृष्टि को हानि या लाभ नहीं पहुँचाता’, तो यह बहुत बड़ी गलतफहमी है। समस्त संसार की आत्माएं अगर बुरा सोचेंगे, गलत सोचेंगे - ईर्ष्या का, क्रोध का, भय का संकल्प उत्पन्न करेंगे - तो इसका असर पूरी सृष्टि पर पड़ता है, सारे संसार पर पड़ता है। और अगर आपने अच्छा सोचा, सबके प्रति शुभ भावना के संकल्प उत्पन्न किये, सबके प्रति शुभ भावना रखी, सृष्टि परिवर्तन का संकल्प उठा, और बाप के मददगार बनने के लिए तन-मन-धन से समर्पण हुए, तो इसका प्रभाव भी पूरी सृष्टि की समस्त आत्माओं पर, और प्रकृति पर पड़ता है। *आपके संकल्प सिर्फ आप तक सीमित नहीं रहते, आपके संकल्प इस पूरे विश्व में घूमते हैं, चक्र लगाते हैं। आपके पास सबसे बड़ा खजाना है! सबसे बड़ा खजाना - संकल्पों का खजाना, समय का खज़ाना!* यह समय और संकल्पों का खजाना इतना बड़ा है कि इसकी तुलना में इस संसार का कोई भी हीरा फ़ैल (fail) है। आप सबसे बड़े मूल्यवान हो! आप सबसे बड़े धनवान हो! आप सबसे बड़े बुद्धिवान हो! आप सबसे महान हो! आपके अंदर वो ऊर्जा है जो किसी में नहीं है। जीते-जागते चैतन्य चलते-फिरते देवी-देवताएं हो!

*बस, खेल सारा संकल्पों पर है, कि आपके संकल्प कितने प्रभावशाली हैं।* वंडरफुल बात तो यह है! मूल्य देखो कितना है! अगर आपने सोच अच्छी रखी, हर किसी के प्रति - चाहे कोई भी हो, कोई भी माना कोई भी - वो संकल्प उस आत्मा तक पहुँचेगा और रिटर्न में आपको कई गुणा मिलेगा। आपका शुभ संकल्प पूरे सृष्टि में भ्रमण करेगा, और अपने साथ अनेकों अच्छे संकल्प लेके आएगा। आपका फायदा कितना है! आपको कई जन्मों का ब्याज सहित मिलता है - पर घाटा भी उतना ही है! अगर आपने व्यर्थ संकल्प किया, किसी के प्रति बुरा सोचा, व्यर्थ सोचा, क्रोध, नफरत, ईर्ष्या से सोचा, तो वो भी पूरे सृष्टि में भ्रमण करेगा, अनेक दूषित संकल्पों को आपके पास लेके आएगा, और आपके मन, वचन, कर्म को भी दूषित करेगा। अब सिर्फ आपके पास खजाना है, और रास्ता भी है आपको चलना कहाँ पर है!

*आप बहुत महान हैं! बाप हर एक बच्चे को महान ते महान दृष्टि से देखता है। इसीलिए देखता है कि आप बहुत कुछ बदल सकते हो, बहुत कुछ परिवर्तन कर सकते हो, इस समस्त संसार को बदल सकते हो। आप अनेक बच्चों के संकल्पों में इतनी पावर है!* बदल सकते हो ना? बदल सकते हो? [जी बाबा] पक्का? [जी बाबा] *पर सबसे पहले अपने आपको बदलो!*

बच्चे बड़े वंडरफुल हैं! कहते हैं – ‘बाबा, अपने आपको बदलना बड़ा मुश्किल है, आप बस दूसरों को बदलने की ड्यूटी दे दो, वो हम अच्छे से करेंगे; हाँ, दूसरों को बदलने की ड्यूटी दे दो, यह जो अपना बदलाव है ना, यह बड़ा मुश्किल है’। और बाबा ने कहा - *आपको सृष्टि बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी - अगर आपने, अपने आप को बदल लिया तो। सिर्फ अपने को बदलो - कोई कुछ भी कहे, कुछ भी बोले - अपने आपको, अपने आपको – बस, अपने आपको बदलो!* क्योंकि समय कम है, और बाद में यह नहीं कहना, ‘बाबा, आपने हमें मैसेज (message) क्यों नहीं पहुँचाया? ठीक है?

अच्छा .. भारत के कितने राज्यों में बाबा मिलन हो चुका है, और कितने राज्य अभी शेष हैं, उसका लिस्ट निकाल कर बाप को देना। और जिन राज्यों में मिलन नहीं हुआ है अब उन राज्यों में मिलन होगा - चाहे वहाँ का कोई बच्चा बाप से मिला है या नहीं मिला है। पर आप सभी बच्चों को मिलकर हर एक राज्य में जाकर सेवा करनी है, और बाप मिलन कराना है। बस, अभी यह संकल्प रखना है की कोई भी राज्य वाले बाप को उलाहना ना दे, की ‘बाबा, आप हमारे राज्य में तो आए ही नहीं’ - अब यह संकल्प लेना है। हाँ, इसमें आप सबके सहयोगी बहुत मिलेंगे जहाँ पहली बार, कई बार हो चुका है। अब वहाँ करें जहाँ अभी तक नहीं हुआ है। *पेपर तो आएगा - पर प्यार में हर पेपर क्या बनता है? तोहफा बनता है!* ठीक है? ठीक है?

आप सभी को, सभी बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते - और ‘वंदे मातरम्’! [वंदे मातरम्] ‘वंदे मातरम्’ का अर्थ क्या है? जानते हो क्या है? जानते हो? ‘मैं अपनी माँ की वंदना करता हूँ’। ‘माँ’- यहाँ हर पुरुष बैठा एक माँ से ही जन्मा है ना? और आपके बच्चे भी कहाँ से आए? एक माँ से ही ना? आपकी पैदाइश भी कहाँ से हुई? माँ से! तो कोई भी यह नहीं सोचे ‘वंदे मातरम्’ ही क्यों? क्योंकि आप भी इस सृष्टि पर माँ से पैदा हुई संतान हो, और इस सृष्टि को चलाने के लिए भी आपको एक स्त्री की आवश्यकता है - और इस पूरी प्रकृति को भी ‘माँ’ कहा जाता है। जैसे बच्चा बनता है, तो उसको रंग-रूप, उसको शक्ल-सूरत कौन देता है? प्रकृति देती है। तो ‘वंदे मातरम्’ का अर्थ है – ‘मैं इस प्रकृति की, इस हवा, अग्नि, वायु, जल ठंडक, अच्छे फल, इन सबकी वंदना करता हूँ’। और ये सब एक माँ में सिमटे हुए हैं। तो माँ का कितना सम्मान होना चाहिए! होना चाहिए? *तो बाप भी सभी माताओं को नमन करते हैं। पर उससे पहले आदि-शक्ति को नमन करते हैं।*

आदि-शक्ति आपके सामने है। क्या कभी ऐसा संकल्प उठता है आदि-शक्ति के लिए? उठता है? अगर कोई कहते हैं ना, कोई भी किसी के भी संकल्प उठते हैं – नहीं-नहीं, मईया गलत है, या गलत करती है, या यह है, या वो है। तो बाप उनको एक मैसेज देना चाहेगा - कि अगर मईया गलत करती है, और आप सही करते हैं, तो बाप मईया में नहीं, आप में आते। *जगदंबा को अच्छे से समझो! ‘जगत अंबा’ – ‘सरस्वती’! क्यों भूल जाते हैं बार-बार की यह कौन है! हम सृष्टि पर आकर पहला नमन जगत अंबा को करते हैं - बाकी बाद में हैं।* कभी सोचना बैठकर - सृष्टि की आदि-शक्ति एक साधारण से वेश में आपके सम्मुख होती है, और आप उस आदि-शक्ति के लिए आप सबकी विचारधारा क्या है? जो भी सुन रहे हैं, जहाँ भी सुन रहे हैं। वंडरफुल कहानी क्या है? क्या? जो जगदंबा, थोड़ा भी .. बाबा ने क्या कहा - माँ के पिछाड़ी बाप है! यह समझ में आता है? जो कहते हैं, ‘हमें जगदंबा से कोई लेना-देना नहीं, और हमें ब्रह्मा से भी कोई लेना-देना नहीं, बस शिवबाबा ही अच्छा है, प्यार करता है, डांटता नहीं है’ - क्योंकि बाप का कार्य तो प्यार करना है। जगदंबा का संकल्प .. अच्छा, *आप अब पूरी कहानी देखो, अगर जगदंबा नहीं है, तो बाप से कहाँ से मिलोगे? अगर आदि-पिता ब्रह्मा बाप से भी अभी मिलना है तो कैसे मिलोगे?* कैसे मिलोगे? आपके पास सब कुछ है पर शरीर नहीं है, तो क्या फायदा?

*यहाँ बाप बैठ जगदंबा को नमन करता है।* जो कहते हैं – ‘यह गलत है, और गलत करती है’; तो बाप ने कहा - तो आप समझदार है ना, आप अच्छा करें। बच्चे कहते हैं कि ‘हम तो सिर्फ शिवबाबा को याद करेंगे, बस उनके अलावा कुछ नहीं है’; तो बाप ने कहा - भले, पर ‘हम’ (बाप-दादा) तो माँ के साथ हैं। इस सृष्टि पर आए हैं, तो ले जाने के लिए, साथ में ले जाने के लिए। आप बाप को याद करो आपको परमधाम मिलेगा, फिर सतयुग की आस नहीं रखना है। जो सिर्फ कहते हैं – ‘हमें इस शिवबाबा के अलावा और किसी से कोई कनेक्शन नहीं है’; तो बाबा कहेगा - तो अच्छी बात है ना, फिर हम परमधाम में ही रहेंगे! अब परमधाम में आप तो रहेंगे, हम तो कभी भी आना-जाना कर लेंगे, पर आपके लिए लॉक (lock) रहेगा, आप अपनी मर्जी से भी आना-जाना नहीं कर सकते।

*इसीलिए अपने आपको देखो! हम दूसरों के लिए बहुत सारी कमियाँ छांटते हैं, देखते हैं - और तो, कई बच्चे तो जगदंबा में भी बहुत सारी कमियाँ छांटते हैं। पर यह तो देखो कि वो बाप के साथ है, वो बाप के साथ चल रही है।* आपको उनका पार्ट समझ में नहीं आएगा। आप तो एक जन्म को देखकर सही और गलत का निर्णय लगाते हैं, बाप ने तो अनेक जन्मों को देखा है। सिर्फ एक जन्म देखते हैं? एक जन्म नहीं है। जन्मों की कहानी जब सामने दिखेंगी तो आप क्या कहेंगे? ‘हमें माफ करना!’ *तो बाप यह ही कहेगा कि अगर बाप के रथ के लिए भी गलत संकल्प चलते हैं, तो बाप कहेगा - उनको बाप पर निश्चय नहीं है, उनको बाप से प्यार नहीं है, वो बाप की श्रीमत पर नहीं है, वो रावण की मत पर है! अपने दिल को साफ करो, तो सामने वाला स्पष्ट दिखाई देगा* - और यह उन बच्चों के लिए भी है जो इस सभा में उपस्थित नहीं हुए! अच्छा, फिर मिलेंगे ..

सभी को जगदंबा, ब्रह्मा बाप, और परमधाम निवासी बाप का पदम-पदम गुणा याद-प्यार और नमस्ते - नमस्ते .. सच्चे दिल से नमस्ते। अपने आप को परिवर्तन - बस! ठीक है?
फिर मिलेंगे ..
अभी आप अपने कन्हैया के साथ मिलन मनाओ।
फिर मिलेंगे ..

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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Versions of Shiv Baba
27.08.2023 - (Pune, Maharashtra)

"Sweet children .. you will not need to change the world - if you change your own self. Just change your own self - whatever anyone says, whatever they say – your own self, your own self - just change your own self!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=lpK_7QLrro4

OK .. Today, BapDada is seeing the beads of His Rosary in the whole world. Everyone – *in fact, everyone in the whole world is a bead of the Rudra Mala, every soul is a bead*, but on which beads did the Father's special vision fall on? Which beads are those? Which beads are they - who will first adorn the Father's neck, and then become the garland around Vishnu's neck? Which beads are they - and how many beads will that Rosary have? How many beads will there be in that Rosary? [108] That will be a Rosary of 108! What are the signs of those 108 beads? All the children do say, ‘Baba, we will make efforts to become the beads of the Rosary of 8’. Baba says - that is very good, that will be wonderful, but before that you have to hasten in order to come into the Rosary of 108. What will be their signs - what are the signs of the beads of the Rosary of 108? [they will be completely obedient] Completely obedient – not just through speech, if the beads of the Rosary of 108 are obedient, then that will not be just through speech. From where? From within - that will be from the heart, from the heart - that whatever the Father says they will say ‘yes Baba’ without any other thought. Do you have such a heart? That you are able to say, ‘yes Baba’, instantaneously! There should not be any other thought. Now all of you keep checking yourselves – whether you have the signs of the beads of the Rosary of 108 – are you obedient? Then, ‘One Father and none other’, faithful! And what else [honest] – honest, faithful! Do you understand this in detail? What does ‘honest’ mean? Not just with yourself, and not just with the Father - that ‘Baba, this much can be accepted, consider this to be done under a compulsion, I have not yet become complete, You do know this, don’t You?’

You know that - *the thoughts of Brahmin souls are very swift, they circulate in the whole world, and their impact is felt by everyone.* How do thoughts make an impact on others? How do they influence others? How? We may think, ‘no, nothing like that happens, no matter what thoughts one has, they do not influence anyone else; there is no influence of anyone over anyone else’. OK, does the sun have an effect on nature? When the morning sun rises and the rays of the sun fall over each flower, then the flowers blossom, entire nature blossoms. Do the sun's rays affect this earth? Do they affect or do they not? Everyone show the ‘clap’ of one hand (wave out). The sun does have an effect on nature! It does have an effect, does it not? Does it influence nature? Does it influence this body? Does the moon affect you? Does it? [it does] It does! Does the wind affect you? If one says – ‘how does the sun affect? The sun is so far away. It is so far away! The moon is so far away!’ It is far away - so how does it affect you?

Now watch the game of your thoughts. What will happen if the earth's sun does not rise, or does not come out for 12 days, or for 15 days? What will the situation be, how adverse will its effect be? When you - when your body was small, how much were you affected when you were born? You did not grow up by simply ingesting food, you did not grow up just by drinking milk. The rays of the sun fell over you, a drop of water fell on you, you stood on the earth, you came under the shade of the sky, the wind blew over you, and you received warmth from the rays of the sun. All these elements were combined, and all of them affected your body, and then you grew up, this body grew.

Now, take the matter of your thoughts. If you think that ‘our thoughts do not cause harm or benefit to the universe’, then that is a great misconception. If the souls of the entire world emerge evil or negative thoughts – if they emerge thoughts of jealousy, anger, fear – then they have an impact over the whole creation, over the entire world. And if you have good thoughts, if you emerge thoughts of good wishes towards everyone, if you have pure feelings for everyone, if you have thoughts of transforming the world, and if you surrender your body, mind and wealth in order to assist the Father (in His BENEVOLENT task of World Purification and World Transformation), then this will also affect all the souls of the whole world, as well as nature. *Your thoughts are not confined to you alone, your thoughts travel around throughout the world. You have the greatest treasure! The greatest treasures – the treasure of thoughts, the treasure of time!* These treasures of time and thoughts are so great that any diamond in this world would fail in comparison to them. You are the most valuable! You are the most wealthy! You are the most intelligent! You are the greatest! You have that energy within you that no one else has. You are living, sentient Deities who keep moving around!

*This Play is all about thoughts, how impressive your thoughts are* - this is indeed a wonderful aspect! Look how much value this has! If you have good thoughts towards everyone - whoever it may be, whosoever means whosoever - those thoughts will reach that soul, and you will receive many times more in return. Your pure thoughts will travel throughout the world, and will return by bringing many good thoughts along with them. You have so much benefit! You receive the return of many births, together with interest - but the loss can also be as great! If you have emerged wasteful thoughts, if you have evil thoughts about someone, if you have waste thoughts, if you have thoughts of anger, hatred, or jealousy, then those also will travel throughout the whole world, and will bring many contaminated thoughts back to you, which will also contaminate your mind, speech, and actions. Now, only you have the treasures, and there is also a clear path on which you have to walk!

*You are very great! The Father looks at every child with the greatest vision. That is why He sees that you can change many things, you can transform many things, you can transform this entire world. There is so much power in the thoughts of many children!* You can change, can you not? Can you change? [Yes, Baba] Sure? [Yes, Baba] *But first of all you have to transform your own self!*

Children are very wonderful! Some say – ‘Baba, it is very difficult to change our own selves, you just give us the duty of changing others, we will do that very well; yes, give us the duty of transforming others; this transformation of our own selves is very difficult’. And Baba says – *you will not need to change the world - if you change your own self. Just change your own self - whatever anyone says, whatever they say – your own self, your own self - just change your own self!* Because time is very less, and you should not say later on, ‘Baba, why did You not convey this message to us? OK?

OK .. make a list of all the States in India where Baba’s Meeting has taken place, and how many States are still remaining, and give that to the Father. And in the States where a Meeting has not yet taken place, there will now be a Meeting in those States - whether any child there has met the Father or not. But all of you children have to go to every State and do Service together, and enable them to have a Meeting with the Father. Now, just have this thought that no one from any State should complain to the Father, ‘Baba, you have not come to our State at all’ – now you must have this thought. Yes, you will find many who co-operate with you in this, where the Meeting has taken place for the first time, and many times. Now, have a Meeting where it has not taken place, as yet. *Test papers will come - but what does every test paper become in Love? It becomes a Gift!* OK? OK?

To all of you, to all the children, BapDada's Remembrance and Love, and Namaste - and ‘Vande Mataram’! [Vande Mataram] What is the meaning of ‘Vande Mataram’? Do you know what it is? Do you know? ‘I adore my ‘mother’. ‘Mother’ – every male sitting here is born from a mother, is it not? And where did your children come from? Only from one mother, is it not? Where were you born from? From your mother! So, no one should think - why only ‘Vande Mataram’? Because you are also an offspring in this world who is born from a mother, and you also need a woman in order to sustain this world - and this entire nature is also called ‘mother’. When a child is born, who gives him/her a form, a complexion, and an appearance? Nature gives all that. So, ‘Vande Mataram’ means – ‘I adore this nature, this breeze, sunlight, wind, water, coolness, good fruits, all these’. And all these are contained in one ‘mother’. So, there should be so much respect for the ‘mother’! Should there be regard? *So, the Father also bows down to all of you mothers. But before that He bows down to ‘Adi-Shakti’ (Jagadamba – ‘Maiya’).*

Adi-Shakti is in front of you. Does such a thought ever arise for Adi-Shakti? Does it arise? If some say, if any thoughts arise within anyone – no-no, Maiya is wrong, or she is doing wrong, or she is like this, or she is like that. So, the Father would like to give them a message - that if Maiya is doing wrong, and you are doing right, then the Father would not incarnate in Maiya, but in you. *Understand Jagadamba very well! ‘Jagat Amba’ – ‘Saraswati’! Why do you keep forgetting who this is, again and again! After coming to this world, we first bow down to ‘Jagat Amba’ – all the rest will come later.* Sometimes sit and think - the original power of the world is in front of you in an ordinary form, and what is the comprehension of everyone about that original power? Whoever is listening, wherever they are listening. What is this wonderful story? What? If Jagdamba, even a little .. what did Baba say - the Father is behind the mother! Do you understand this? Those who say, ‘we have nothing to do with Jagdamba, and we have nothing to do with Brahma either, only ShivBaba is good, He Loves everyone, He does not scold anyone’ - because the function of the Father is to Love. Jagadamba's thoughts .. OK, *now look at the whole story - if Jagadamba is not there, then how would you Meet the Father? If you have to Meet even the original Father Brahma now, then how would you Meet him?* How will you Meet him? If you have everything, but you do not have a body, then what is the use?

*The Father sits here and bows down to Jagdamba.* Those who say – ‘she is wrong, and she is doing wrong’; so, the Father says – so, you are wise, you do good. Children say that ‘we will Remember only ShivBaba, there is nothing else but Him’; so, the Father says – fine, but We (Bap-Dada) are with the Mother. I have come to this world in order to take you away, to take you away along with Me. You Remember the Father, and you will attain the Supreme Abode, then you should not aspire for the Golden Age. Those who just say – ‘we have no connection with anyone other than this ShivBaba’; then Baba will say - that is good, then we will remain only in the Supreme Abode (Soul World)! Now you will stay in the Supreme Abode, I will be able to come and go anytime, but there will be a lock for you, you cannot even come and go as per your wish.

*That is why you should look at yourself! We find many faults in others, and we see them - moreover, some children find many faults in Jagdamba too. But at least perceive that she is with the Father, that she is walking along with the Father.* You will not be able to understand her part accurately. You are judging right and wrong by looking at one birth; whereas, the Father has seen many births. Does He see only one birth? There is not just one birth. What will you say when you see the story of all births in front of you? ‘Please forgive us!’ *Then the Father will only say that - if they have wrong thoughts even for the Father's Chariot, then the Father will say that - they do not have faith in the Father, they do not have (TRUE) Love the Father, they are not following the Father's Shrimat, they are following the dictates of Ravan (Satan)! Clean your heart, and then the One who is in front will be clearly visible* - and this is even for those children who are not present in this gathering! OK, we will Meet again ..

Multi-millionfold Remembrance and Love, and Namaste – Namaste to everyone - from Jagadamba, from Father Brahma, and from the Father who resides in the Supreme Abode .. Namaste from a TRUE Heart. Just change your own self - that's all! OK?
We will Meet again ..
Now celebrate a Meeting with your ‘Kanhaiya’ (Father Brahma).
We will Meet again ..

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
19.09.2023 - रायपुर, (छत्तीसगढ़)

"मीठे बच्चे .. वह हर गणपति है, जो बाप की श्रीमत से माया रुपी चूहे को अपनी सँवारी बनाकर उसपे सँवार होता है, और सँवार होके बड़ी छलांग मारके बाप की गोदी में बैठ जाता है - वो हर गणपति है, चाहे वो कहाँ पर भी बैठा हो। इस पूरे संसार में कहाँ पर भी बैठा हो, वो हर एक बच्चा गणपति है।"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=EtJWKpU1K8E

अच्छा .. सभी को प्यार है? सभी को है? कितनी परसेंटेज में है? प्यार की निशानी क्या है? प्यार की निशानी क्या है? [बाप समान बनना] बाप समान बनना! बन गए हैं? बन रहें हैं? बन जाएंगे? बाप इंतजार कर रहे हैं वतन में कि कब बाप समान बनके बाप के पास आएंगे? बाप से प्यार है? है? [जी बाबा] कितना है? [बहुत है] कितना है? बहुत है! बहुत किसको कहते हैं? बहुत का मतलब क्या होता है? बहुत का मतलब होता है ‘अथाह’, बहुत अपने आप में समाहित नहीं है, बहुत की कोई दीवारें नहीं है, कोई लिमिट नहीं है। क्या इतना प्यार है? है? अगर इतना प्यार है तो घड़ी-घड़ी याद क्यों भूल जाती है? लौकिक दुनिया में अगर किसी के भी शरीर से प्यार होता है तो क्या उसकी याद भूलती है? कभी नहीं भूलेंगी। सोते-जागते, उठते-बैठते, घड़ी-घड़ी याद रहेगा - वह प्यार होता है। *अगर बाप से प्यार होता, तो घड़ी-घड़ी बाप की याद बुद्धि में समाई होती - तो किसी और की याद नहीं आती।* मतलब अभी प्यार में कमी है।

प्यार की निशानी क्या है? जो, जिससे मैं प्यार करता हूँ उसके जैसा बनूँ, उसकी कॉपी करूँ, उसके समान बनूँ। अगर सच्चा प्यार है तो बाप समान बनके दिखाओ। बाप ने आज तक सभी को प्यार किया है ना? प्यार किया है! बच्चों का गलती भी हुआ है, तो भी बाप ने प्यार का हाथ देकर उठाया है ना? तो आप क्या कर रहे हैं? क्या आपके अंदर में भी बाप के प्रति इतना प्रेम है? यह बस चेक करना है। ठीक है?

*प्यार के सागर बाप का प्यार भरा याद-प्यार, सभी को स्वीकार हो।*

गणपति बनना है - ‘गणपति’! गणपति का अर्थ क्या है? एकदम निश्चय बुद्धि - यह गणपति का मतलब है। निश्चय का पाँव रखा, तो कुछ भी हो जावे फिर संशय की कोई मार्जिन नहीं, वो गणपति है। गणपति को मालूम है - मेरे पिता कौन है, और मेरे पिता कैसे हैं। *अगर गणपति के सामने कोई दूसरा उसके पिता का वेश बनाके आएगा, तो भी गणपति को अपने पिता के प्रेम की खुशबू है, वो अपने पिता के प्रेम की खुशबू को पहचानता है।* इसलिए उसको लंबी नाक दी है, कि मेरे पिता की खुशबू कहाँ आ रही है, उसको सूँघता हुआ, दौड़ता हुआ जाता है - यह ‘निश्चय’ है! बस, जो मेरा बाप कहे - ‘जी बाबा’! आज्ञाकारी बच्चा जो सिर्फ बाप की ही सुनता है, इसीलिए उनके कान बड़े दिए हैं कि बाप के अलावा और किसी का ज्ञान बुद्धि में ना ठहरे। आँख छोटी दी हैं – बस, इन आँखों में एक समाया हो, वापिस आँखों को बंद कर लिया कि दुनिया को नहीं देखना है – बस, एक बाप को एकाग्र हो करके देखना है।

क्या गणपति बने हो? सिर्फ एक बाप की ही सुनना, ऐसे बड़े कान वाले बने हो? एक बाप को ही देखना, ऐसे दिव्य चक्षु वाले बने हो? एक बाप के प्रेम की खुशबू को लेना, क्या ऐसे बड़े नाक वाले बने हो? क्या गणपति बने हो? जो निश्चय बुद्धि कि ‘मेरा बस एक ही शिवबाबा है’, ‘मेरा एक ही पिता है’ - क्या ऐसे गणपति बने हो? गणपति नहीं, गढ़पति बने हो? गढ़पति माना .. *गढ़पति माना जो एक बाप की याद में गढ़ जाए वो गढ़पति, और जो गढ़ जाए उसको कोई हिला नहीं सकता वो गणपति।* क्या ऐसे गणपति बने हो? या कोई भी आकर थोड़ा भी ऐसे हाथ लगाया या कुछ सुनाया और बुद्धि हिलने लगी। गणपति घूमने वाला पति बन जाए, ऐसा नहीं। गणपति माना गढ़ गया। गढ़ गया गणपति वो होता है जिसने निश्चय के खूँटे से अपने आप को बाँध दिया - वो गणपति है। अब बताओ ऐसे गणपति बने हो? हो? [नहीं बाबा] मतलब अभी मार्जिन है। अभी और .. और निश्चिय बुद्धि अर्थात निश्चय के खूँटे को और गहराई तक उतारना है। ज्यादा बाहर दिखाई देता है, तो हर कोई हिलाने की कोशिश करता है। जितना अंदर जाएगा उतना कोई हिला नहीं पाएगा। *ऐसे प्रेम की भूमि में निश्चय के खूँटे को गाड़ देना ही गणपति बनना है, कि बाप से सिर्फ इतना प्यार हो कि कोई भी मेरे निश्चय को हिला नहीं सकता।*

आप सभी को गणपति दिवस की शुभ कामनाएं! यह गणपति एक नहीं है। यह वो हर बच्चा गणपति है जिनको बाप से अथाह प्रेम है, और निश्चय का खूँटा मजबूत है, वो बाप का हर एक बच्चा गणपति है।

*सभी गणपतियों को परमपिता का याद-प्यार और नमस्ते। ऐसे बनने वाले बच्चों को बाप की तरफ से नमस्ते।*

गढ़ जाना माना - ‘मेरा बाप है’! गढ़ जाना माना - जो कार्य मुझे बाप ने सौंपा है उसमें संशय की मार्जिन नहीं होनी चाहिए। *गढ़ जाना माना – बाप के शब्द पे लक्ष्मण रेखा खींच देना, और उसका उल्लंघन नहीं करना।* गढ़ जाना ही .. बाप के श्रीमत की जो बेल है उस पे बंध जाना ही गढ़ जाना है। फिर उसको कभी नहीं छोड़ना - फिर चाहे कुछ भी हो जावे। ऐसे बच्चों पर बाप कुर्बान होता है, और ऐसे बच्चों की मदद के लिए बाप एक पाँव पर खड़ा होता है। ऐसे बच्चों के लिए बाप पूरे विश्व से लड़ लेता है। आप ऐसे बनो, तो फिर बाप की कमाल देखना कि बाप आपके लिए क्या करता है। पर ऐसे बनो तो .. कि बस एक, एक के अलावा कुछ नहीं। एक की श्रीमत - बस! *ऐसी खुशबू बाप की आवे कि चाहे दुनिया में कोई कुछ भी आवाज लगावे - मैं बाबा हूँ, या मैं फलाना हूँ, या मैं वो हूँ - जो बस, एक ही हो।* उन बच्चों पर बाप कुर्बान जाएगा। उन बच्चों के लिए बाप के सामने कोई मर्यादा नहीं रहेगी। उन बच्चों के लिए बाप सारे नियम, कायदे, कानून को किनारे रख सकता है। किन बच्चों के लिए? गढ़पति बच्चों के लिए! गणपति, और गढ़पति!

गणपति को हमेशा बाप की गोदी में बिठाया जाता है, बराबर में नहीं बिठाया जाता। जो गणपति है ना - वो माँ और बाप की गोदी में बैठता है। अब आप बच्चों पर निर्भर है कि साइड में बैठना है, या गोदी में बैठना है। तो गोदी में गणेश ही बैठ सकता है। गोदी में गढ़पति ही बैठ सकता है। आप गढ़पति बनो - बाप की गोदी बहुत विशाल है, इतनी बड़ी है कि गणपति बाप की गोदी में कितने भी गणपति बैठ सकते हैं - एक नहीं! वो तो एक उदाहरण, एग्जांपल है कि गणपति बाप-माँ की गोदी में ही बैठेगा, पर वो एक गणपति की कहानी नहीं है। वो गणपति कैसे .. माया कैसी है? *जो माया को अपनी सँवारी बना दे - वो गणपति बाप की गोदी में बैठ सकता है।* चूहा क्या करता है? अंदर, अंदर, अंदर - सब कुतर के खोखला कर देता है ना। तो गणपति उस चूहे को पकड़ कर, उस माया को पकड़ के अपनी सँवारी बना लेता है, कि इतना भारी हो जाता है कि माया चूहा एक नन्हा सा चूहा बन जाता है, और इतना बड़ा गणपति उस माया को नन्हे चूहे मुआफ़िक बनाकर उसकी सँवारी करता है - ऐसा गणपति बाप की गोदी में बैठता है, कि वो खोखला नहीं करने देता अपने आप को।

जैसे ही माया - माया माना चूहा - गणपति के नीचे आ जाता है, ऐसे माया का सत्यानाश हो जाता है, और विजय गणपति को मिल जाती है। तो ऐसे गणपति हो? अभी तो नहीं हो, यह तो बाप भी जानते हैं, पर बाप को यह निश्चय है की बनेंगे आप ही। और सिर्फ यहाँ बैठने वालों के लिए नहीं है, जो बाहर सुन रहे हैं, जो माया रुपी चूहे को अपनी सँवारी बनके चलाते हैं, वो हर कोई गणपति है - चाहे वो मधुबन में बैठा है, चाहे वह मंदिर में बैठा है, चाहे वह घर में बैठा है, चाहे वह गृहस्थी है, चाहे वह कुमार-कुमारी है, चाहे वह भक्ति मार्ग वाला है, चाहे वह कोई भी है। *वह हर गणपति है, जो बाप की श्रीमत से माया रुपी चूहे को अपनी सँवारी बनाकर उसपे सँवार होता है, और सँवार होके बड़ी छलांग मारके बाप की गोदी में बैठ जाता है - वो हर गणपति है, चाहे वो कहाँ पर भी बैठा हो। इस पूरे संसार में कहाँ पर भी बैठा हो, वो हर एक बच्चा गणपति है।* और गणपतियों के लिए बाप की गोदी बहुत विशाल है।

तो आप सभी को बाप की गोदी में वेलकम है। आपके लिए बाप की गोदी फ्री है, खाली है - आ जाओ, और बाप की गोदी में बैठ जाओ!

अच्छा, फिर मिलेंगे ..

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Versions of Shiv Baba
19.09.2023 - (Raipur, Chhattisgarh)

"Sweet children .. everyone, who turns Maya in the form of a mouse into a vehicle and then rides on it, in accordance with the Father’s Shrimat, is Ganpati - and then takes a huge leap and sits in the Father’s Lap, after riding on it - every such child is Ganpati, no matter where one may be sitting. In this whole world, wherever one may be sitting, every such child is a Ganpati."

Link: https://www.youtube.com/watch?v=EtJWKpU1K8E

OK .. Does everyone have Love? Does everyone have it? In what percentage do you have it? What is the sign of Love? What is the sign of Love? [To become like the Father] To become like the Father! Have you become like Him? Or, are you still becoming? Will you become this? The Father is waiting in the Subtle Region to see when you will come to the Father by becoming equal to the Father. Do you have Love for the Father? Do you? [Yes Baba] How much? [Very much] How much is that? Very much! What is called ‘very much’? What does ‘very much’ mean? The meaning of ‘very much’ is ‘immeasurable’; ‘very much’ is not just self-contained, ‘very much’ has no walls, it has no limits. Do you have so much Love? Do you? If you have so much Love then why do you forget to Remember Baba every now and then? In the corporeal world, if one falls in love with someone's body, does one forget to remember that person? One will never forget. You will remember that person every moment - while sleeping or while awake, while sitting or while standing – that is love. *If you have Love for the Father, then the Remembrance of the Father would be merged within your intellect constantly - then there would be no remembrance of anyone else.* That means, there is still a lack of Love for the Father, even now.

What is the sign of Love? To become like the One whom I Love, to copy Him, to become similar to Him. If you have TRUE Love then display that by becoming similar to the Father. The Father has loved everyone till today, has He not? He has Loved everyone! Even if the children have committed mistakes, then too the Father has uplifted them by extending His Hand of Love, has He not? So, what are you doing? Do you also have this much Love for the Father? You just have to check this. OK?

*Everyone should accept Love-FULL Remembrance and Love from the Father, the Ocean of Love.*

You have to become Ganpati – ‘Ganpati’! What is the meaning of ‘Ganpati’? One who has an absolutely faithful intellect – this is the meaning of Ganpati. When you place your step with determination, then no matter what may happen, there is no margin for any doubt - such a one is Ganpati. Ganpati knows - who my Father is, and how my Father is. *Even if anyone else comes in front of Ganpati in the guise of his Father, Ganpati still has the fragrance of his Father's Love, he recognizes the fragrance of his Father's Love.* That is why he has been given a long nose, to determine where his Father's fragrance is coming from - he smells it, and then goes running towards it – he has this ‘faith’! Whatever my Father says, that’s it – ‘yes, Baba’! He is an obedient child who listens only to the Father, that is why his ears have been widened so that no one's knowledge, other than the Father's, would remain within his intellect. He has been given small eyes – so that only One remains merged within his eyes, that’s all – then his eyes are partially closed again, so that he does not see the world – he sees only One Father with complete concentration, that’s all.

Have you become ‘Ganpati’? Have you become one with such wide ears who listens to only One Father? Have you become one with such Divine eyes who sees only One Father? Have you become one with such a large nose who is able to sense the fragrance of Love of just One Father? Have you become ‘Ganpati’? One who has the faith that ‘I have only One ShivBaba’, ‘I have only One Father’ – have you become such a ‘Ganpati’? Not just ‘Ganpati’, have you become ‘Gadpati’ (one who is fortified like a citadel, castle, or fort)? ‘Gadpati’ means .. *‘Gadpati’ means one who is fortified with the Remembrance of One Father, such a one is a ‘Gadpati’; and the one who is fortified, and who cannot be shaken by anyone, is a ‘Ganpati’.* Have you become such a Ganpati? Or, someone comes and touches you a little, like this, or tells you something, and your intellect begins to fluctuate! It should not be that Ganpati becomes a wandering husband. ‘Ganpati’ means one who is fortified. A fortified Ganpati is one who has tied himself to a stake of determination – such a one is ‘Ganpati’. Now tell Me, have you become such a Ganpati? Have you? [No Baba] Which means that there is still a margin. Now you must increase .. increase the faith within your intellect - that is, the stake of determination and faith has to be driven deeper. If it becomes more visible outside, everyone tries to shake it. The more it is driven inside, to that extent no one will be able to shake it. *To become Ganpati means to bury the stake of determination in the ground of such Love - that you should have so much Love for the Father, that no one can shake your determination and faith.*

Best wishes to all of you on this day of Ganpati! This Ganpati is not just one. Every child who has immeasurable Love for the Father and whose stake of faith is strong is Ganpati - every such child of the Father is Ganpati.

*Remembrance and Love from the Supreme Father, and Namaste to all the Ganpatis. Namaste from the Father to the children who are becoming like this.*

To be fortified means – ‘He is my Father!’ To be fortified means - that there should be no margin of doubt in the task which the Father has entrusted to me. *To be fortified means to draw the ‘Lakshman Rekha’ on the Father's words, and to never violate them.* To be fortified .. to be tied to the vine of the Father's Shrimat is to be fortified. Then you should never leave him - no matter what happens. The Father sacrifices Himself for such children, and the Father ‘stands on one foot’ (is determined) to help such children. The Father ‘fights’ with the whole world for such children. You should become like this - and then witness the wonders of what the Father does for you. But, only when you become like this .. that there is just One, and nothing else other than One. The Shrimat of only One - that's all! *You should sense such fragrance from the Father that no matter what anyone in the world speaks - I am Baba, or I am so-and-so, or I am that – for you there is only One, that’s all!* The Father will sacrifice Himself for such children. There will be no code of conduct before the Father for those children. For those children, the Father can keep aside all the rules, regulations and laws. For which children? For the ‘Gadpati’ children! Ganpati, and Gadpati!

Ganpati is always made to sit in the Father’s Lap, and not made to sit by His side. The one who is Ganpati – he sits in the Lap of Mother and Father. Now it is up to you children whether to sit by His side, or to sit in His Lap. So, only ‘Ganesh’ can sit in His Lap. Only ‘Gadpati’ can sit in His Lap. You should become ‘Gadpati’! The Lap of the Father is very extensive, it is so huge that Ganpati .. any number of Ganpatis can sit in the Father’s Lap - not just one! That is just an example - that Ganpati will sit only in the Lap of his Father and Mother - but that is not the story of just one Ganpati. How is that Ganpati .. what is Maya like for him? *One who makes Maya his vehicle – such a Ganpati can sit in the Father’s Lap.* What does a mouse do? Inside, inside, inside – a mouse gnaws everything from the inside and makes it hollow, is it not? So, Ganpati catches that mouse, catches that Maya, and makes Maya into his vehicle - so much so, that he becomes so heavy that Maya the mouse becomes a very tiny mouse, and such a huge Ganpati makes that Maya like a tiny little mouse, and turns Maya into his vehicle – such a Ganpati sits in the Lap of the Father in such a way that he does not allow himself to be made hollow by Maya (even in a subtle form).

As soon as Maya - Maya means a mouse - comes under Ganpati, that Maya gets annihilated, and Ganpati achieves victory. So, are you such a Ganpati? Even the Father knows that you are not that now, but the Father has the trust that only you will become that. And this is not just for those sitting here, or for those who are listening outside - those who drive Maya as their vehicle, in the form of a mouse – every such child is Ganpati - whether one is sitting in Madhuban, whether one is sitting in a temple, whether one is sitting at home, whether one is a house-holder, whether one is a Kumar or a Kumari, whether one is on the path of devotion, no matter who one may be. *Everyone, who turns Maya in the form of a mouse into a vehicle and then rides on it, in accordance with the Father’s Shrimat, is Ganpati - and then takes a huge leap and sits in the Father’s Lap, after riding on it - every such child is Ganpati, no matter where one may be sitting. In this whole world, wherever one may be sitting, every such child is a Ganpati.* And for such Ganpatis, the Father's Lap is very extensive.

So, all of you are welcome in the Father’s Lap. The Father's Lap is FREE for you, it is empty – do come, and sit in the Father's Lap!

OK, we will Meet again ..

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
12.10.2023 - रायपुर, (छत्तीसगढ़)

"मीठे बच्चे .. अंत और आरंभ - दोनों एक साथ ही जन्म लेते हैं। अगर आरंभ नहीं है तो अंत नहीं है, और अंत नहीं है तो कभी आरंभ नहीं हो सकता। ऐसे ही अगर आदि में ब्रह्मा बाप का पार्ट बजा, अंतिम में जगदंबा है; अगर अंतिम का पार्ट के निमित्त जगदंबा नहीं बनती तो आरंभ ही नहीं होता!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=YMqmYxNLIGk

अच्छा .. आज बाप और दादा दोनों आए हैं। बाप और दादा में फर्क है? है? .. बाप और दादा में फर्क है? है? [नहीं, बाबा] .. पर है! ‘बाप’ और ‘दादा’ – ‘दादा’ माना ‘बाप का बाप’! कौन से रूप से देखना चाहते हैं? बाप आए हैं, आत्माओं के बाप आए हैं, और आत्मा का पिता परमात्मा है, तो आपके बीच में आत्माओं के पिता आए हैं! पर लाइट का शरीर ब्रह्मा बाप का है, तो कहेंगे ‘दादा’ भी आए हैं। ‘दादा’ माना सभी आत्माओं का ‘बड़ा भाई’। तो क्या हो गया? ‘दादा’ हो गया। और आत्माओं का पिता ‘परमात्मा’ हो गया। दूसरी रीति से देखा जाए - ब्रह्मा, ‘बाप’ हो गए, ब्रह्मा का पिता फिर ‘दादा’ हो गया। खेल है ना? *वंडरफुल खेल है! पर दोनों अलग-अलग हैं। हर एक आत्मा का पार्ट अलग-अलग है। परमात्मा का पार्ट अलग है।*

आप सभी नीचे बैठके ऊपर जाते हैं, तो कैसे गिनती करते हैं? आप यहाँ से ऊपर जावेंगे तो पहले क्या आवेगा? पहले ब्रह्मा पुरी, उसके बाद विष्णु पुरी, उसके बाद शंकर पुरी, और उसके बाद शिव पुरी! समझ में आया? यहाँ से जाएंगे तो ऐसे रास्ता बना है। अब शिवपुरी से आ जाओ। अब गिनती करो - पहले शिव पुरी, उसके बाद शंकर पुरी, और उसके बाद विष्णु पुरी, उसके बाद ब्रह्मा पुरी, और उसके बाद यह साकारी सृष्टि। जब सृष्टि रची, तो ऊपर से नीचे आके रची। और जब सृष्टि को समेटना होता है, तो नीचे से ऊपर की ओर जाते हैं। ऐसा ही ना? ऐसा! पर .. सृष्टि रची, पर हर एक ऑफिस में अलग-अलग कार्य है, जैसे आप सबका डिपार्टमेंट होता है ना। कैसा? सबका डिपार्टमेंट अलग-अलग होता है - भंडारे का डिपार्टमेंट अलग है, दवाईखाने का डिपार्टमेंट अलग होगा, धोबीघाट का अलग होगा, साफ-सफाई का अलग होगा। अब आप सब कहेंगे कि नहीं यह सब एक है, तो कैसे चलेगा? पर जो मालिक है - वो भंडारे में भी जाएगा, वो दवाखाने में भी जाएगा, वो साफ-सफाई वाले में भी जाएगा। *आप यह कह सकते हैं कि सब उस मलिक के कारोबार हैं, ऐसे कह सकते हैं। पर सभी एक है, ऐसे नहीं कह सकते। सभी के कारोबार, सभी का डिपार्टमेंट, सभी के कार्य अलग-अलग हैं।*

जैसे ब्रह्मा पुरी में क्या कार्य है? मानो - जैसे वो धोबी घाट हो। क्या? सूक्ष्मवतन, धर्मराज पुरी में - कौनसा? धोबी घाट कहेंगे। क्यों? आत्मा की अच्छे से फटके मारके धुलाई होती है। ऐसा ही ना? अब जाओ विष्णु पुरी में। जैसे कि ऊपर जाने का बारीक चेकिंग, पासपोर्ट सब चेकिंग, चेकिंग डिपार्टमेंट और ठप्पा डिपार्मेंट - वो यह कहेंगे। क्योंकि आपको जाना कहाँ है? ऊपर जाना है। तो अच्छे से जब तक आपके मोहर नहीं लगेगी तब तक आप आगे की यात्रा नहीं कर सकते। अब आओ ऊपर। ऊपर एकदम लास्ट चेकिंग होती है, जिसको बारीक चेकिंग कहते हैं। अगर वहाँ पासपोर्ट कैंसिल हो गया, तो सब जगह से कैंसिल हो जाएगा। वहाँ भी अपना डिपार्टमेंट है। तो लास्ट चेकिंग कहाँ बचती है? शंकर पुरी में। उसके बाद ही आप शिव पुरी के एरोप्लेन में बैठ सकते हैं। फिर वहाँ डब्बे हैं। जनरल भी है, मीडियम भी है, और फर्स्ट-क्लास भी है। अब आप बच्चों को कौनसा टिकिट चाहिए? सभी से पूछेंगे तो कहेंगे फर्स्ट-क्लास वाला चाहिए। *पर बाप कहेगा - फर्स्ट-क्लास वाले कर्तव्य करके दिखाओ, फर्स्ट-क्लास वाली सेवा करके दिखाओ, फर्स्ट-क्लास वाला पुरुषार्थ करके दिखाओ, और फर्स्ट-क्लास वाली याद करके दिखाओ - तो टिकट भी कौन सी मिलेगी? टिकट भी फर्स्ट-क्लास मिलेगी!* अब क्या करना है? क्या करना है? फर्स्ट-क्लास में जाने के लायक बनना है। *ज्ञान एकदम सीधा है, पर जिन बच्चों के समझ में नहीं आता, वो ज्ञान को उल्टा पकड़ लेते हैं।*

कहाँ-कहाँ बच्चे कहते हैं, ‘ब्रह्मा और शिव दोनों एक ही हैं; विष्णु भी और शिव दोनों एक ही हैं’। सबको एक मिलाके - जैसे शास्त्रों में क्या कर दिया है? गफलत कर दिया है ना, सब रास्ता भटक गए। तो यह कहके .. ऐसे तो मानो ऐसे केहते हैं - ‘श्री कृष्ण गीता का भगवान है’ - ऐसे कहके गफलत किया है ना। वास्तव में गीता का भगवान कौन है? शिव है। तो जो बच्चों ने यह ज्ञान फैलाया है ना कि - शिव और श्री कृष्णा एक ही है, या ब्रह्मा एक ही है - तो वही बच्चे द्वापर युग में क्या करते हैं? शास्त्रों में सर्वव्यापी का ज्ञान डालकर सारी दुनिया को भटकाने का कार्य करते हैं, तो उसका बोझा भी फिर क्या चढ़ता है? कई गुणा चढ़ता है। रास्ते से भटकाना यह भी तो पाप का कार्य है। समझ में आया? *अगर कोई सही रास्ते जा रहा है, और जबकि बाप आया है, बाप के साथ सही रास्ते पर अपने बच्चे बाप की उंगली पड़के जा रहे हैं - और कोई भी आता है, रास्ता भटकाता है, तो उसका पाप कर्म चढ़ता ही चढ़ता है। और डबल पाप कर्म किस पे चढ़ता है? जो रास्ता भटक जाते हैं।* क्यों? क्योंकि जबकि पता है - मेरी उंगली मेरे बाबा ने पकड़ी है, हर बार मेरा बाबा मेरे कदम-कदम पे साथ चल रहा है - फिर कोई आए और उंगली छुड़वा दे, ऐसा तो किसको कहेंगे? ऐसे बच्चों को ‘महामूर्ख’ का टाइटल दिया जाएगा। कि मानो आपको अपने पिता से ज्यादा निश्चय एक साधारण मनुष्य पे है, एक साधारण आत्मा पे है।

बच्चे कहते हैं – ‘हम यह तो मानते हैं कि शिवबाबा आते हैं, पर जिनमें आते हैं उनको हम नहीं मानते’। बाबा उन बच्चों को क्या कहेंगे? आप महा, और महा, फिर तीसरा महा बुद्धू है। क्यों बुद्धू है? जब आप यह मानते हैं कि शिव परमात्मा मईया के तन में आते हैं - तो वो विशेष है, वो जगदंबा है - यह क्यों नहीं मानते? *किसी भी शिव के मंदिर में जाके देखो, एंट्री करते ही आपको जगदंबा दिखाई देगी - मानो जगदम्बा शिव के साथ पूजी जाती है, शक्ति शिव के साथ पूजी जाती है। शिव के मंदिर में, पीछे की तरफ हर मंदिर में जगदंबा मिलेगी।* इसका .. सभी बोलते हैं – ‘तीसरा रथ तो हमने देखा ही नहीं, हमने किसी भी मंदिर में नहीं देखा’। तो बाप क्या कहेंगे? शक्ति बाहर नहीं बैठती, शक्ति शिव के साथ पूजी जाती है। आप जाओ और देखो, आपको वहाँ पे मिलेगा। तो उसी जगदंबा के साधारण तन का आधार बाप ने लिया है। फर्क इतना है कि किसीने पहचाना है, और किसीने पहचान के भी अपनी बुद्धि पर देह-अभिमान की मिट्टी से ढँक दिया! *अब जब तक मिट्टी नहीं उतारोगे जगदंबा दिखाई कहाँ से देगी?*

अच्छा .. बड़े-बड़े धर्म पिताएं आये, साधारण देह, साधारण घरों में जन्म लिया। क्या उनके लौकिक माँ-बाप को, क्या उनके परिवार वालों को मालूम था कि यह धर्म पिता है, यह बौद्ध धर्म का है, या यह फलाना है। मालूम था? उस समय उनके गाँव वालों को मालूम था? या उसके माँ-बाप को मालूम था? नहीं ना? नहीं मालूम था ना? अगर मालूम पड़ता तो सारा गाँव आरती उतारता, पूजा करता। ऐसा ही? पर उनके जाने के बाद सबने उनको माना, उनके घर वालों ने उनकी पूजा की। साधारण ही तो थे ना? *तो अगर शिव को धरती पर आना है तो जगदंबा खींचेगी ना? साधारण तन में ही खींचेगी ना?* जब सृष्टि परमात्मा ने रची, जब सृष्टि का रचयिता है, आया है, मिल रहा है आपसे, आपके सम्मुख बैठा है, तो यह निश्चय है कि परमधाम है। यह निश्चय है कि शिव को सारा संसार क्यों पूजता है? जरूर आया होगा। बिना आए, बिना कोई इतना बड़ा कर्तव्य किये, क्या किसी की पूजा होगी? होगी? नहीं होगी ना? कोई भी छोटा-मोटा गुरु गोसाई भी आकर कुछ फॉलोअर्स बना लेता है ना, उसकी भी पूजा होती है। क्योंकि उन्होंने भी कुछ तो कार्य किया है। तो बाप की पूजा सारे संसार में क्यों होती है? जरूर आकर के सृष्टि परिवर्तन का कार्य किया है - तभी उनकी पूजा हुई। और जगदंबा के, शक्ति के, इतने शक्तिपीठ दिखाते हैं, इतने ढेरों मंदिर दिखाते हैं, तो जगदंबा ने क्या किया? आज नवरात्रि मनाते हैं - तो जरूर, जरूर शक्ति ने कोई बड़े-बड़े कर्तव्य किए होंगे, तभी तो शक्ति की पूजा होती है। तभी शक्ति की पूजा होती है!

कहाँ-कहाँ किन्हीं-किन्हीं बच्चियों के मन में यह आता है ना – ‘मैं क्यों देवकी मईया नहीं बनी? शिवबाबा मेरे में क्यों नहीं आए? मैं क्यों वो पार्वती नहीं बनी, या मैं क्यों शक्ति नहीं बनी?’ - तो बाबा क्या कहेगा? पहले अपने आप को देखो। *जगदम्बा सारे संसार का कल्याण करती है, जगदंबा पूरे विश्व के कल्याण के निमित्त बनती है, जगत अंबा का दिल बहुत विशाल है, जगत अंबा हर आत्मा को अपना बच्चा बनाकर उनकी पालना करती है, जगत अंबा सर्वश्रेष्ठ है, जगत अंबा के अनेकों गुण हैं, अनेकों का कल्याण करती है, जगत अंबा कामधेनु है।* .. अब हर शक्ति अपने आप में यह चेकिंग करे - क्या मेरी दिल एक छोटे से घर, लौकिक घर या परिवार तक सीमित है? तो जगदंबा नहीं बन सकती! क्योंकि बड़ी दिल वाले बनना है! जगत अंबा हर किसी का कल्याण सोचती है - तो क्या मैं हर किसी का कल्याण सोचती हूँ? अभी अगर ये सारी क्वालिटी हैं तो बाप कहेगा - तो टाइटल आपको देगा। हर .. *शिव के साथ जगत अम्बा पूजी ही जाएगी - चाहे मंदिर में शंकर-पार्वती के रूप में कहो, या निराकार शिवलिंग के रूप में कहो।* तो बाप कहेगा - सच्ची-सच्ची जगत अंबा बनना है तो ऐसे गुण धारण करना है। देखो, जगदंबा को बाप से कितना प्यार है!

कहाँ ना कहाँ बच्चों का कभी ना कभी संशय की बूंद आ जाती है, हिल जाते हैं। सोचते हैं - यह कार्य कैसे होगा? सोचते हैं - श्री कृष्ण का जन्म कैसे हुआ? उसका यात्रा कैसी रहेगी? वो कैसे आएगा? चल के आएगा, या उड़के आएगा, या धरती से प्रकट होगा या जल से होगा? हर एक बच्चा यह सब सोचने में अपना टाइम वेस्ट कर रहा है - और बाप अपना कर्तव्य कर रहे हैं। अब आप देखो, आपको टाइम वेस्ट करना है या पुरुषार्थ करना है?

ये जो बाहर बैठे, कहाँ भी बैठे, यहाँ है या किधर भी है, यह सोच-सोच के अपना समय व्यर्थ ना गवाएं, सिर्फ पुरुषार्थ करें। ‘श्री कृष्ण का जन्म कैसे होगा? और कैसे हुआ है?’ ये बताए बिना हम सृष्टि को अलविदा नहीं कहेंगे। तो ये सब व्यर्थ की बातों का त्याग कर पुरुषार्थ करें। समय नहीं गंवाना है, एक-एक घडी कीमती है। *कोई रहस्य छुपे नहीं रहेंगे - उनके सामने जो बाप के साथ अंतिम समय तक चलेंगे!* और जो सोचते हैं - हम बस अभी जान ले - तो बाबा क्या कहेगा? यह बाप है! कच्चा सौदा नहीं करता, बाप पक्का सौदा करता है। पहले सामने वाले व्यापारी को अच्छे से ठोकेगा, फिर उसकी झोली में ज्ञान के रत्नों का गुप्त रहस्यों का सारा खजाना जरूर देगा। अब आप बच्चे चेक करो - क्या झोली मजबूत है, या नीचे छेद है? अभी अजुन झोली मजबूत बनी नहीं है, कमजोर है। बाप कहते हैं - यह लो, इसको छुपा के रखना, पर बच्चे उसको दिखाए बिना रह ही नहीं सकते। तो बाप भी क्या करेगा? आपके ऊपर है, आप जितना इंतजार कराएंगे, बाप बैठा है, बाप इंतजार करेगा।

तो सभी शक्तियों को, सभी पांडवों को, आने वाले समय की कहो, श्री कृष्ण जन्म की कहो, सबको ढेर सारी शुभकामनाएं! अभी तो जगदंबा आ रही है ना? आपके साथ-साथ है, आपके साथ-साथ चलती है। *सारे संसार में, अब पूरे भारत में जगत अंबा की मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा की जाएगी। और आप बच्चे? आप बच्चे? .. उस चैतन्य जगत अंबा के साथ हैं! यह सबसे ऊंचा सौभाग्य है, महान सौभाग्य है!* देखना, मंदिर में जाएंगे, सिर्फ मूर्ति रखी होगी - उसको सजाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं, भोग लगाते हैं, आरती उतारते हैं - पर कमाल की बात यह है कि आपके संग-संग जगदंबा चलती है। आपके साथ-साथ रहती है। बच्चों के मन में कब-कब संशय आता है - क्या बाप सही बोलते हैं कि यह जगदंबा है? इतनी सिंपल सी दिखने वाली, इतनी साधारण सी दिखने वाली, इतनी शिकिल भोली भाली वाली - क्या यह जगदंबा है?

आज, *अब इस पूरे विश्व को रचने वाले पिता, सभी आत्माओं के पिता, आपको स्टेम्प मार के देते हैं कि आप जगदंबा के बच्चे जगदंबा के साथ रहते हो। आप आदि शक्ति के बच्चे आदि शक्ति के साथ रहते हो।* और बाप ने स्टेम्प मार दी, तो बुद्धि से बेफिक्र हो जाओ, परिंदा बनके उड़ो। यह नहीं सोचना यह जगदंबा है? ऐसे कैसे? ये सब सोचना व्यर्थ की बात हैं। क्योंकि जो पार्ट जगदंबा को दिया है, वो पार्ट वो हूबहू निभा रही है। *अगर जगत अंबा को देखके किसी का भी व्यर्थ संकल्प चलता है, तो वो बच्चे अपना पार्ट बिगाड़ रहे हैं और पीछे जा रहे हैं।* क्योंकि जगदंबा अपने पार्ट की पक्की है कि जो बाप कहेगा - ‘जी बाबा’! वो अपना पार्ट एक्यूरेट बजा रही है। अब आप बच्चे सोच लेना - अगर सच में बाप पर निश्चय है, बाप से प्यार है, अंदर दृढ़ संकल्प है, तो हर एक बच्चा अपना पार्ट एक्यूरेट निभावे। *जगदंबा को देखकर अपने व्यर्थ संकल्पों की रचना नहीं करें, क्योंकि उसका भुगतान आप बच्चों को ही करना पड़ेगा। उसका भुगतान बाप नहीं करेगा, जगदंबा नहीं करेगी, उसका भुगतान आप बच्चे ही करेंगे।*

अब हम अपनी आदि शक्ति को नमन करता हूँ। यह जगदंबा को नमन करता हूँ। भारत की माँ को नमन करता हूँ। यह आदि शक्ति को नमन करता हूँ। सृष्टि की पहली रचना को नमन करता हूँ। शिव से निकली पहली किरण को नमन करता हूँ। मैं नमन करता हूँ। .. क्योंकि अंतिम का पार्ट बजाने के निमित्त जगत अम्बा बनी है। आप बच्चों को इन नेत्रों से दिखाने के निमित्त जगदंबा बनी है!

बच्चे कहेंगे - आरंभ कहाँ से हुआ? *अंत और आरंभ - दोनों एक साथ ही जन्म लेते हैं। अगर आरंभ नहीं है तो अंत नहीं है, और अंत नहीं है तो कभी आरंभ नहीं हो सकता। ऐसे ही अगर आदि में ब्रह्मा बाप का पार्ट बजा, अंतिम में जगदंबा है; अगर अंतिम का पार्ट के निमित्त जगदंबा नहीं बनती तो आरंभ ही नहीं होता!* जैसे अगर मृत्यु नहीं होती तो जन्म नहीं होता, और जन्म नहीं होता तो मृत्यु नहीं होती। ऐसे आदि नहीं होता तो अंत नहीं होता, और अंत नहीं होता तो आदि की शुरुआती ही नहीं होती। ये दोनों कंबाइंड हैं। ऐसे ही शिव, बिना शक्ति के जैसे शव है, और शक्ति मिल गई तो शिव सबसे शक्तिशाली बन गए। अगर शिव के अंदर शक्ति ही नहीं है, तो सृष्टि कैसे रचना होगी? होगी? होगी? नहीं होगी! शिव तो है – है! सिर्फ शिव ही है, पर उसके अंदर शक्ति नहीं है, तो क्या होगा? जैसे की आपका यह शरीर तो है, पर इसके अंदर आत्मा नहीं है, तो आपके शरीर का कुछ कार्य है? नहीं है ना? ऐसे शिव को शक्ति है, जैसे शरीर को आत्मा है .. यह शरीर है, मानो शिव आत्मा है, मानो शक्ति - उसी का उदाहरण यह सृष्टि पर दिया है।

ऐसे यह शरीर मानो प्रकृति कहेंगे, शक्ति कहेंगे - और वो! .. तो बाप क्या कहते हैं? कोई भी एक सिंगल चीज कुछ कार्य नहीं कर सकती। क्या बिना आत्मा के शरीर खाएगा? कुछ पिएगा? कुछ लेगा? नहीं ना? आत्मा है तो सब कुछ करेगा। तो उसके सारे रुप इस सृष्टि पर दिए हैं। *तो जिन बच्चों को जगदंबा पर थोड़ा भी संशय है, उस संशय से ऊपर उठो, बाहर निकलो, तभी कल्याण होगा!* नहीं तो क्या होगा अंतिम समय में? सारी दुनिया देख पाएगी, और जिनको संशय है वो कभी नहीं देख पाएंगे! सारे संसार को साक्षात्कार हो जाएगा, पर जो अपने को कहते हैं – ‘हम बाप से मिलते हैं, हमें निश्चय है’ - और संशय में लुढ़कते हैं, उनको कभी नहीं दिख पाएगा! उनके लिए लास्ट में क्या कहेंगे? ‘ओहो, मेरा दुर्भाग्य!’ यह बाप बताके जाते हैं - थोड़े दिन नशा रहता है, और फिर डाउन हो जाता है। यह नशा नहीं उतरना चाहिए। *साधारण सी दिखने वाली देवी को साधारण नहीं देखो - यह शक्ति है, यह आदि शक्ति है, यह सृष्टि पर पड़ने वाली पहली किरण है!*

अच्छा बच्चों .. कल्याणकारी बाप, कल्याणकारी ड्रामा, और कल्याणकारी यह सारा संसार है, इसमें कुछ भी अकल्याण नहीं हो सकता है, इसीलिए क्या, क्यों, कैसे, वैसे के सवालों को खत्म करो।

[बाबा आपकी आज्ञा हो तो आपके कुछ बच्चों ने प्रश्न पूछे हैं, तो एक प्रश्न पूछे?]
जो भी प्रश्न पूछते हैं, आपका ‘दादा’ (ब्रह्मा बाप) बड़ा अच्छे से जवाब देगा। ठीक है ना? सवाल-जवाब का कर्तव्य ब्रह्मा बाप को दिया है। उनके निकले हुए महावाक्य, मानो (शिव) बाप का संदेश समझना। वो कभी .. बाप यह नहीं कहेगा आपने ऐसे क्यों किया? क्योंकि उनकी पोटली में ऊपर से हम ही ज्ञान रत्न भरके भेजते हैं - तो बिफिक्र रहना!

[उन्होंने खास रिक्वेस्ट किया था कि आप से ही पूछना - तो इसीलिए ..]
तो क्या ब्रह्मा बाप पे निश्चय नहीं है? इसका मतलब यह है!

अच्छा बच्चों, फिर मिलेंगे ..

सदा खुश रहो, बाप के साथ रहो, उड़ते रहो, उड़ाते रहो, और *जो भी बच्चे सवाल करते हैं करेक्ट समय पर उसका आंसर भी मिलता है। अगर आपके सवाल की घड़ी उसी समय आई है, तो बाप जरूर देगा। अगर बच्चों को कहते हैं - अभी यह सवाल बाद में पूछना - तो मानो ड्रामा की सही सीन नहीं आई है!*

फिर मिलेंगे ..

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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Zorba the Greek
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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Versions of Shiv Baba
12.10.2023 - (Raipur, Chhattisgarh)

"Sweet children .. The end and the beginning - both come into existence simultaneously. If there is no beginning then there is no end, and if there is no end then there can never be a beginning. Similarly, if in the beginning the part of Father Brahma was played, then in the end it is that of Jagadamba; if Jagadamba had not been made an instrument for the final part, then there would be no beginning at all!"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=YMqmYxNLIGk

OK .. Today, both the Father (ShivBaba), and the elder Brother (Brahma Baba) have come. Is there a difference between the Father and ‘Dada’? Is there? .. Is there a difference between ‘Bap’ and ‘Dada’? Is there? [No, Baba] .. But, there is! ‘Bap’ and ‘Dada’ – ‘Dada’ also means ‘Father of Father’ (grand-Father)! In which form do you wish to see Him (Father, or Grand-Father)? The Father has come, the Father of all the souls has come, and the Father of all the souls is the Supreme Soul, so the Father of all the souls has come in the midst of you! But the body of Light belongs to Father Brahma, so it can be said that ‘Dada’ (elder Brother) has also come. ‘Dada’ means ‘elder Brother’ of all souls. So, what is he? He is ‘Dada’ (elder Brother). And the Father of all the souls is the ‘Supreme Soul’. From another perspective - Brahma is the (‘Alokik’) ‘Father’, and Brahma's (‘Parlokik’) Father then becomes the ‘Grand-Father’ (Dada). This is a game, is it not? *It is a wonderful game! But both are different. Every soul has a different part. The part of the Supreme Soul (God) is different.*

When all of you sit down (in meditation) and go up (with your intellect), then how do you visualise? If you go up from here, what will come first? First Brahma Puri, then Vishnu Puri, then Shankar Puri; and then Shiv Puri (Soul World)! Did you understand? If you go from here, the path would be like that. Now, come down from Shiv Puri. Now visualise - first Shiv Puri, then Shankar Puri, and then Vishnu Puri, after that Brahma Puri, and after that this corporeal world. When the universe was created, it was created from the top downwards. And when the world has to be transformed, then you have to go from down towards the top. It is like this, is it not? In this way! But .. when the world is created, there are different tasks in every Office (of the Subtle Region) - just as you all have the various departments here. How? Everyone's department is different - the store department is different, the dispensary department is different, the laundry department is different, and the sanitation department is different. Now, if you all will say – no, all of them are one - then how would that work out? But the Owner can go to the store-rooms also, he can go to the dispensary also, and he can also go to the cleaning department. *You can say that everything is the undertaking of that Owner - you can say like that. But it cannot be said that all of them are one. Everyone's department, everyone’s activity, and everyone's function, is different.*

For example, what is the activity in Brahma Puri? You can consider that to be the ‘Laundry Section’. What? In the Subtle Region, what would ‘Dharamraj Puri’ (Purgatory) be? It can be called the ‘Laundry Section’. Why? The souls are thoroughly drubbed and cleansed. It is like that, is it not? Now go up to Vishnu Puri. There would be ‘fine checking’ there, in order to go further upwards – it would be said to be like the checking of all the passports, like the checking department and the stamping department. Because where do you have to go? You have to go further up. So, unless and until you get a proper stamp, you cannot travel further upwards. Now come further up. The very last checking takes place at the top, which is called ‘very fine checking’. If the passport is canceled there, it will be canceled everywhere else. I have My Department there also. So, where is the last and final checking carried out? In Shankar Puri. Only after that can one board the airplane to Shiv Puri. Then, there are various compartments - there is a general compartment also, medium also, and first-class also. Now, which ticket do you children want? If everyone is asked, you would say that you want a first-class ticket. *But the Father will say - perform first-class actions and show, carry out first-class Service and show, make first-class efforts and show, and have first-class Remembrance and show! Then which ticket would you get? You would also get a first-class ticket!* So, what have you to do now? What must you do? You have to become worthy of going to the first-class compartment. *The Knowledge is straightforward, but those children who do not understand, they imbibe the Knowledge in a reverse (adulterated) way.*

Somewhere or the other, the children say, ‘Brahma and Shiva are both one and the same; Vishnu and Shiva are both one and the same’. By mixing everyone together .. for example, what has been done in the Scriptures? They have made blunders - due to which everyone lost their way. So by saying this .. just as they have been saying that – ‘Shri Krishna is the God of Gita’ - they have committed a blunder by saying that, have they not? Who is actually the God of Gita? He is Shiva. So, those children who have spread this knowledge - that Shiva and Shri Krishna, or Brahma, are one and the same – then, what do those very same children do in the Copper Age? They carry out the actions of misleading the whole world by putting the knowledge of ‘omnipresence’ in the Scriptures - then what is the burden of that? It increases manifold. To mislead others from the correct path is also an act of sin! Did you understand? *If someone is going along on the right path – and when the Father has come, and when His children are holding the Father’s Finger and are going along with the Father on the right path - and if anyone else comes and misleads them from this path, then the sinful actions of such a one (who misleads) keep on increasing. And on whom does double sin accrue? On those who lose their way.* Why? Because when they know - that my finger is held by my Baba, and at every instance my Baba is walking along with me at every step - then if someone else comes and takes their finger away, then what will such ones (who still allow their finger to be taken away) be called? Such children will be given the title of ‘great fools’. It is as if they have more faith in an ordinary human being, in an ordinary soul, rather than on the Father.

Children say – ‘we do believe that ShivBaba comes, but we do not believe in the one in whom He comes’. What will Baba say to those children? You are a great, and great, and for the third time, a great ‘fool’. Why are you a ‘fool’? When you believe that Supreme Soul Shiva comes in the body of Maiya (Mother), then why do you not believe that she is special, that she is Jagadamba? *Go to any Shiva temple and see, as soon as you enter you will see Jagadamba – understand that Jagadamba is worshiped along with Shiva, Shakti is worshiped along with Shiva. In every temple, Jagadamba will be seen at the back side of the temple of Shiva.* In this regard .. everyone says – ‘we have not seen a third Chariot at all, we have not seen it in any temple’. So, what will the Father say? Shakti does not sit outside, Shakti is worshiped along with Shiva. You go and look, you will find her there. So, the Father has taken the support of the ordinary body of that very same Jagadamba. The difference is that some have recognized (Jagadamba), and some have covered their intellects with the dust of body-consciousness even after recognizing (the Father)! *Now unless you remove the dust, how will Jagadamba be visible?*

Well .. great founder fathers of religions came, they were born in ordinary bodies, in ordinary houses. Did their worldly parents, or did their family members know that this is a founder Father of a religion, that this one is (the founder Father) of the Buddhist religion, or this one is so-and-so. Did they know (when they were born)? Did the people from their village know at that time? Or did their parents know? They did not know. They did not know, right? Had it been known, the entire village would have performed ‘aarti’ and would have worshiped them. Would they not? But after they left (their ordinary bodies), everyone believed in them, and even their family members worshiped them. They were ordinary, were they not? *So, if Shiva has to come down to earth, then Jagadamba would attract Him, would she not? She would attract Him in her ordinary body, would she not?* When God created the universe, when He is the Creator of the universe, and He has come, and He is Meeting you, He is sitting in front of you, then you have the faith that He is the Supreme Soul from the Supreme Abode. You have faith because you know why the whole world worships Shiva! He must have definitely come. Will anyone be worshiped without coming here, or without performing such great tasks? Will anyone be worshiped? That would not happen, right? Any small Guru or great saint also comes and makes some followers, and they are also worshiped. Because they too have performed some good work. So, why is the Father worshiped all over the world? He definitely came and performed the task of transforming the whole world - that is why he is worshiped. And they show so many Shakti forms of Jagadamba, they build so many temples of Shakti, so what did Jagadamba do? Today, they celebrate ‘Navratri’ - then Shakti must have definitely performed some great tasks, and that is why Shakti is worshiped. Only then Shakti would be worshiped!

Somewhere or the other, this question arises within the mind of some or the other (female) children – ‘why did I not become Mother Devaki? Why did ShivBaba not come in me? Why did I not become that Parvati, or why did I not become that Shakti?’ – so, what would Baba say? Look at your own self first. *Jagadamba brings benefit to the whole world, Jagadamba becomes the instrument for the welfare of the whole world, Jagat Amba has a very great heart, Jagat Amba makes every soul her child and nurtures them, Jagat Amba is the most elevated (among all the ‘shaktis’), Jagat Amba has many virtues, she brings benefit to so many, Jagat Amba is ‘Kamadhenu’ (one who fulfils everyone’s noble aspirations).* Now, every ‘shakti’ should check within her own self - is my heart limited to a small house, worldly home or family? Then, you cannot become Jagdamba! Because you have to become ones with a great heart! Jagat Amba thinks about everyone's welfare – so, do I also think about everyone's welfare? Now, if you have all these qualities then the Father will say – then He will give you that title. Every .. *Jagat Amba will certainly be worshiped along with Shiva - whether in the form of Shankar-Parvati in the temple, or in the form of the incorporeal Shivalinga.* Then the Father will say – if you want to become a true Jagat Amba (World Mother), then you have to imbibe such virtues. Look, how much Jagadamba Loves the Father!

Somewhere or the other, sometimes or the other, a flash of doubt arises within the children and they begin to fluctuate. They think - how will this task be performed? They think - how was Shri Krishna born? How will his journey be? How will he come? Will he come walking, or will he come flying, or will he appear from the earth or from the water? Every child is wasting his/her time thinking about all this - and the Father is performing His functions. Now, you determine for yourself whether you should waste your time or whether you should make efforts?

Those who are sitting outside, wherever you may be sitting, whether you are here or anywhere else, do not waste your time just thinking about these things - just make efforts. ‘How will Shri Krishna be born? And how did it happen?’ We will not say goodbye to creation without revealing this. So give up all these wasteful aspects and make efforts. Do not waste your time, every hour is precious. *No secret will remain hidden - for those who will walk along with the Father until the very end!* And those who think - we should know right away - then what will Baba say? This is the Father! The Father does not make a raw deal, He makes a firm deal. First He will drill the merchant in front of Him properly, then he will definitely give him/her the entire treasure of the gems of Knowledge and the deepest secrets in his/her apron (of the intellect). Now, you children should check - is your apron strong, or is there a hole at the bottom? Right now, your apron (of your intellect) has still not become strong, it is weak. The Father says - take this, and keep this hidden - but the children cannot remain without revealing the same. So what will the Father also do? It is up to you, as long as you keep Me waiting, the Father is sitting here, and the Father will wait.

So, to all the Shaktis, to all the Pandavas, all the very best wishes to everyone, whether for the times to come, or whether for the birth of Shri Krishna! Jagadamba is coming now, is she not? She is with you, she walks along with you. *All over the world, and now across the whole of Bharat (India), statues of Jagat Amba will be made and worshiped. And you children? What about you children? .. You are with that living Jagat Amba (World Mother)! This is your highest good fortune, your greatest good fortune!* Just look, when you go to the temples, only the idol is placed there - they make so much effort to decorate it, they offer ‘Bhog’, they perform ‘aarti’ - but the wonderful thing is that Jagadamba is walking along with you. She lives with you. Doubts sometimes arise in the minds of the children - is the Father right in saying that this is Jagdamba? She looks so simple, she looks so ordinary, her face looks so innocent - is this really Jagadamba?

Today, *the Father who creates this entire world, the Father of all souls, now places a stamp and asserts to you that you are the children of Jagadamba who are living with Jagadamba. You are the children of Adi Shakti who are living with Adi Shakti.* And when the Father has placed a stamp, then become carefree with your intellect, and fly like a bird. Do not think – is she really Jagadamba? How can this be so? Thinking about all this is wasteful. Because the part which has been given to Jagadamba - she is playing that part accurately. *If anyone has any wasteful thoughts after seeing Jagat Amba, then those children are spoiling their part and slipping backward (in their status).* Because Jagadamba is sure of her part that whatever the Father says – ‘yes Baba’! She is playing her part accurately. Now, you children should think - if you really have faith in the Father, if you have Love for the Father, if you have a strong determination within you, then every child should play his or her part accurately. *Seeing Jagadamba, do not create any wasteful thoughts within you, because you children will have to give an account for them yourselves. The Father will not give an account for that, Jagadamba will not give an account for that, only you children will have to give an account for that.*

Now, I revere My Adi Shakti. I revere this World Mother. I revere the Mother of Bharat. I revere this Adi Shakti. I revere the first creation of the universe. I revere the first Ray who has emerged from Shiva. I revere her. .. Because Jagat Amba has become the instrument to play the final part. Jagdamba has been created to show you children Shiva through these eyes of hers!

Children will ask - where did this begin? *The end and the beginning - both come into existence simultaneously. If there is no beginning then there is no end, and if there is no end then there can never be a beginning. Similarly, if in the beginning the part of Father Brahma was played, then in the end it is that of Jagadamba; if Jagadamba had not been made an instrument for the final part, then there would be no beginning at all!* Just as, if there is no death then there would be no birth, and if there is no birth then there would not be death. Similarly, if there is no beginning then there can be no end, and if there is no end then there cannot be any commencement of the beginning. These two are combined (eternally). Similarly, Shiva is like a dead body without Shakti (Power), and when He has Shakti, then Shiva becomes the most Powerful. If there is no Power within Shiva at all, then how will the universe be created? Will it be created? Will this happen? It will not happen! Shiva is definitely there! What if there is only Shiva, but there is no Shakti (Power) within Him? For example, you have this body, but if there is no soul within it, then is there any function for your body? There would not be any, is it not? In the same way, Shiva has Shakti (Power), just as the body has a soul .. this is the body (of Jagadamba), as if Shiva is the soul, as if this (Jagadamba) is His Shakti - the example of the same has been given in this world.

Similarly, this body can be called nature, it will be called Shakti - and that One! .. So, what does the Father say? No single thing can perform any function. Will the body eat without the soul? Would it drink something? Would it take anything? It would not, right? If there is a soul within then it will do everything. So all its forms have been given in this world. *So, those children who have even a little doubt about Jagadamba, rise up above that doubt, come out of it, only then will there be benefit for the self.* Otherwise what will happen at the last moment? The whole world will be able to see (Jagadamba), while those who have doubts will never be able to see her! The whole world will have visions (of Jagadamba); but those who say to themselves – ‘we Meet the Father, we have faith’ – but who wallow in doubt, will never be able to see her! What would they say about themselves in the end? ‘Oh, my misfortune!’ This is what the Father is telling you before leaving – their intoxication lasts for a few days, and then diminishes. This intoxication should not diminish. *Do not look at this ordinary looking Deity as ordinary - this is Shakti, this is Adi Shakti, this is the first Ray that falls over creation!*

Okay children.. the Father is Benevolent, the Drama is benevolent, and this whole world is benevolent, there cannot be anything malevolent within it, that is why eliminate all those questions like what, why, how.

[Baba, if you permit, some of your children have asked some questions, so can I ask one question?]
Whatever questions are asked, your ‘Dada’ (Father Brahma) will answer very well. OK? The function of answering questions has been given to Father Brahma. Consider the great words that come out from him to be the Message of the Father (Shiva). That Father will never say (to Brahma) why did you do this? Because I, Myself, send him here from up above, filled with gems of Knowledge - so be carefree!

[He had made a special request to ask only you - so that's why..]
So is there no faith in Father Brahma? It means this!

OK children, we will Meet again ..

Always be happy, stay with the Father, keep flying, enable others to keep flying, and *whatever questions the children ask, they also get the answer at the correct time. If the moment for your question has come at that time, then the Father will definitely give an answer to that. If children are told to ask that question later, then consider that the right scene of the Drama has not yet come!*

We will Meet again ...

(Then Baba took leave, after giving ‘dhristi’ to all the children)!
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Bap-Dada's LATEST & FINAL part

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ॐ... "पिताश्री" शिवबाबा याद है?

शिवबाबा की वाणी
29.10.2023 - गंगापुर सिटी, (राजस्थान)

"मीठे बच्चे .. एक ही पूंजी है आपके पास, वो है ‘समय’। यह सबसे बड़ा खजाना है। यह खजाना छूट गया मानो आपकी तिजोरी खाली हो गई; और जिसकी तिजोरी खाली हो जाती है ना, वो कंगाल हो जाता है, और कंगाल को फिर कोई पूछता थोड़ेही है। लौकिक धन में भले कंगाल हो जावे, पर अलौकिक धन में कभी कंगाल नहीं होना।"

Link: https://www.youtube.com/watch?v=sCe0IDj04pY

अच्छा .. आज बाप और दादा दोनों ही साथ में बैठकर बच्चों के प्रेम, और उनका इंतज़ार देख रहे हैं। सभी को प्यार है? [हाँ जी बाबा] प्यार – ‘प्यार’ शब्द ही कितना प्यारा है! और वो भी जब हो जाए, आत्मा और परमात्मा का, तो वो संपूर्ण है। क्योंकि जो प्यार सच्चा होता है ना, वो सुख देता है। ‘सुख’ - कि उनके प्रेम में बड़ा सुख है, शांति है, मिलन का इंतजार में वो खुशी है, वो लगन है, वो प्यार की मस्ती है। *प्यार की परिभाषा - कि दुख की फीलिंग आ नहीं सकती, भले उससे कितना भी नाराज हो जावे, भले अंदर में गुस्सा हो, पर फिर भी याद वही आता है जिससे प्यार होता है - इसको ‘सच्चा प्यार’ कहा जाता है।*

आज, शायद इस सभा में कोई ऐसा नहीं बैठा होगा, जिनको लौकिक संबंधों में या लौकिक प्रेम में दुख ना पहुँचा हो। एक भी ऐसा नहीं है, चाहे वो ज्ञानी है, चाहे वो अज्ञानी है। इन लौकिक रिश्तों में हर किसी का मन दुखा है, टूटा भी है, तकलीफ भी हुई है, और फिर भी उससे बेहतर की तलाश में लगे हैं। ‘पहले वाला तो सही नहीं था - हम क्या ढूँढ रहे हैं? हो सकता है उससे बेहतर हमें मिल जाए।’ क्या यह हो सकता है? *आप क्या चाहते हो? प्यार में क्या चाहते हो? वफादारी, आज्ञाकारी, निस्वार्थ प्यार - झूठ नहीं, कोई फरेब नहीं। हर एक व्यक्ति इसी तलाश में भटक रहा है।* ‘काश मुझे कोई ऐसा मिल जाए जो सच्चा हो। काश मुझे कोई ऐसा मिल जाए जो वफादार हो। काश मुझे कोई ऐसा मिल जाए जो मेरी हर बात माने। काश मुझे कोई ऐसा मिल जाए जो वो मुझसे मतलब से नहीं प्रेम करे, निस्वार्थ प्रेमी हो।’ हर एक आत्मा एक ऐसे साथी की तलाश में भटक रही है। हर किसी में ढूँढती है, थोड़े दिन साथ रहती है फिर छोड़ देती है - क्योंकि आपने जो खोजा था वो मिला ही नहीं।

अच्छा .. आप दूसरों में वो ढूँढ रहे हैं, एक बार कभी अपने आप को देखा - क्या मैं ऐसा हूँ जैसा व्यक्ति मैं ढूँढ रहा हूँ? अपनी चेकिंग करें - चेंज करें। बेहतर की तलाश है, आप खुद को बेहतर बनाओ। *जो गुण आप दूसरों में तलाश रहे हो, जो विशेषताएं आप दूसरों में ढूँढ रहे हो, आप उनको खुद क्यों नहीं धारण कर लेते? आपसे बेहतर फिर कोई भी नहीं होगा।* आपसे सच्चा फिर कोई भी नहीं होगा। आपसे अच्छा फिर कोई भी नहीं होगा। आपसे सुंदर फिर कोई भी नहीं होगा। आपसे महान फिर कोई भी नहीं होगा। आपसे श्रेष्ठ फिर कोई भी नहीं होगा। आप जैसा निस्वार्थ फिर कोई भी नहीं होगा। तो जब आप ऐसे बन जाओगे .. कोशिश तो कर सकते हैं, कुछ छोड़ो नहीं - बस बन जाओ - कुछ धारण कर लो, कुछ ले लो - छूट तो अपने आप जाता है। *और जब आप ऐसे बन जाओगे तो आपसे महान आत्मा कोई भी नहीं होगा। फिर आपको सब ऐसे मिलेंगे जैसे आप चाहते हो - निस्वार्थ, प्यारा, सच्चा दिलवाला, सत्य, एकदम शक्तिशाली, पावरफुल।*

आज दुख का कारण क्या है? जानते हो दुख का कारण क्या है? आज सभी दुखी हैं - उसका कारण क्या है? कोई बताएगा - दुख का कारण क्या है? दुख का कारण है दूसरों को बदलना, दूसरों को सुधारना, दूसरों को परिवर्तन करना, दूसरों को महान बनाना, दूसरों को सत्य बोलना सिखाना - यह दुख का कारण है। *और इसकी जगह आप खुद बन जाओगे तो सारे दुख खत्म! कोई दुख का कारण नहीं बनेगा, आपको कोई दुखी नहीं कर सकता। संसार में किसी आत्मा की ताकत नहीं आपको दुखी कर देवे।* आप संतान किसकी हो - सुख के सागर की, शांति के सागर की, प्रेम के सागर की! जब बाप ऐसा है और बच्चे रोते रहे, तो यह तो बाप का नाम बदनाम करना हुआ ना? बाप का नाम बदनाम करना क्या अच्छा लगता है? तो आज से प्यार का स्वरूप बनना है, सुख का स्वरूप बनना है, शांति का स्वरूप बनना है। आपको बनना है।

आप अगर शांत स्वरूप बन जाओगे तो क्या वहाँ अशांति ठहर पाएगी? ठहर पाएगी? नहीं ना? जब आप प्यार की मूरत बन जाओगे तो वहाँ क्रोध ठहर पाएगा? नहीं! क्यों? क्यों? क्यों नहीं ठहर पाएगा? क्यों नहीं ठहर पाएगा? बताओ। [प्यार करेंगे तो प्यार मिलेगा] .. दोनों एक साथ नहीं रह सकते। एक समय पर एक ही आएगा, दो नहीं आएगा। जब कोई भी पाप करते हैं दुनिया में, तो चाह कर के भी भगवान को याद नहीं कर पाते। क्यों? उस समय क्या है? उस समय पाप कर रहे हैं। आप मंदिर में जाओ, आरती कर रहे हैं, उस समय बस बाप है, भगवान को याद कर रहे हैं; पाप के ख्याल भी आते हैं तो कान पकड़ते हैं – ‘अरे, भगवान के घर में कैसे ख्याल आते हैं!’ दोनों एक स्थान पर कोई चीज नहीं टिक पाएगी। जैसे रोशनी है, तो अंधेरा नहीं - अंधेरा है, रोशनी नहीं। अलग है ना? *ऐसे ही जहाँ पाप है, वहाँ भगवान नहीं है, बाप नहीं है; और जहाँ भगवान है, वहाँ फिर पाप नहीं है।* दोनों अलग चीज हैं। एक ही व्यक्ति एक समय पर पुण्य भी करता है, तो दूसरे समय पर पाप भी करता है, पर दोनों एक जगह स्थिर नहीं हो सकते। अभी हमें क्या करना है - वो आप सभी बच्चे देखेंगे।

प्यार का सागर आया है प्यार की दुनिया बनाने। प्यार का सही मतलब पहचानो। प्यार की खुशबू क्या कहती है वो पहचानो। जैसे अनेक बच्चों को बाप से प्यार है। कहो कि बाबा आए हैं, मिलन मनाना है, तो क्या करते हैं? क्या करते हैं? अच्छा, संदेश तो मिल गया, तो सोचते हैं – ‘ऐसे थोड़ेही कोई भगवान आ सकता है! चलो फिर भी इतने लोग कह रहे हैं तो जाने में क्या जाता है, एक बार देखके आ जाते हैं कि सच्ची है या झूठा है।’ आ भी जाते हैं। *कमाल की बात है लौकिक पिता पे कोई संदेह नहीं करेगा, कोई परखेगा भी नहीं। माँ ने कहा ‘यह आपका पिता है’ - तो मोहर लग जाती है; पर परमपिता पर निश्चय होगा, पक्का होगा - थोड़ा कुछ आपके हिसाब से बात नहीं हुई, तो संशय में आ जाएंगे।* आपके सवाल का सही जवाब नहीं मिला तो संशय में आ जाएंगे। थोड़ा कुछ ऊपर-नीचे देखा, तो भी संशय में आ जाएंगे। यह लौकिक और पारलौकिक पिता में भेद - कि आत्मा का पिता कौन है, उसमें इतना संशय पैदा होता है; पर लौकिक पिता पे एक परसेंट भी संशय पैदा नहीं होगा।

अच्छी बात है, जैसा बाप वैसे बच्चे, बाप भी कोई कच्चा सौदागर थोड़ेही है! बाप भी हर किसी को ठोकेगा ना, तभी तो पक्का सौदा करेगा। आपको भी ऐसा ही करना चाहिए - बहुत अच्छी बात है। *परखो - कोई दिक्कत नहीं! बाप को तो समय की सीमा का मालूम है, पर ऊपर-नीचे करने में, बस ज्यादा समय नहीं गँवाना, क्योंकि आज का दिन बीत गया तो यह दिन कल नहीं आएगा।* आज के 10 घंटे बीत गए, ये 10 घंटे कल नहीं आएंगे। ये पूरे 5000 वर्ष, कल्प के बाद आएंगे। आज आपने 10 घंटा वेस्ट किया, तो कल आपका फिर 20 घंटा वेस्ट जाएगा। मार्जिन डबल होकर मिलती है। अगर आपने 10 घंटा सफल किया तो आपको 20 घंटा सुख मिलेगा। आप क्या कर सकते हो? आपके पास जो समय की पूंजी है ना, उस पूंजी को आप बहुत अच्छे से संभाल सकते हो, उसको अच्छे कार्य में यूज़ कर सकते हो। *एक ही पूंजी है आपके पास - वो है ‘समय’। यह सबसे बड़ा खजाना है। यह खजाना छूट गया, मानो आपकी तिजोरी खाली हो गयी*; और जिसकी तिजोरी खाली हो जाती है ना, वो कंगाल हो जाता है, और कंगाल को फिर कोई पूछता थोड़ेही है। लौकिक धन में भले कंगाल हो जावे, पर अलौकिक धन में कभी कंगाल नहीं होना। वो धन तो फिर भी कमाया जा सकता है, पर इस धन को कमाने में बड़ी मेहनत लगती है। एक बार खाली होगा, तिजोरी खाली दिखेगी, तो सोचेंगे अब क्यों इतना कमाए, मरना तो है ही, जाना तो है ही। गति क्या होगी? ‘अंत मती सो गती’!

*बाप के बच्चे हैं, प्यार है तो दिखना चाहिए – ‘हाँ, हमें प्यार है, हम परवाने हैं, हम फरिश्ते हैं’।* फरिश्ते कभी किसी को दुख नहीं देते। हम इस धरा पर अवतरित हुए फरिश्ते हैं। हमें सबको सुख देना है। हमें फरिश्ते के राजा को सामने लेकर आना है। फरिश्ते बनो ताकि आपसे स्वयं परमात्मा की पहचान हो - ऐसा फरिश्ता बनना है। कैसा? ब्रह्मा बाप जैसा!

सभी बोलते हैं – ‘कैसे थे ब्रह्मा बाबा?’ एकदम न्यारे, प्यारे, निस्वार्थ, गंभीर, और खुशमिजाज! ऐसे थे नहीं - ऐसे हैं ब्रह्मा बाबा। ‘आदि सो अंत’ सबने सुना ना? ‘आदि सो अंत’ सबने सुना कि ऐसे ‘आदि सो अंत’ होगा। सुना? *जैसे आदि में ब्रह्मा बाप की लीलाएं चली, अंत में भी चलेगी।* अब लीलाएं चलने के लिए तो उनको शरीर चाहिए ना? पर शरीर खुद का तो नहीं हो सकता, क्योंकि सतयुग में ही श्री कृष्ण का जन्म होगा। तो लीलाएं देखने का मौका कब मिलेगा? तो उनके लिए शरीर चाहिए ना? *तो यह वही समय है, जो ‘आदि सो अंत’ की लीलाएं चली हैं।*

बच्चे कहते हैं – ‘बाबा, क्या करें - प्यार तो आपसे बहुत है, पर हर चीज को देखना पड़ता है, लौकिक भी देखना पड़ता है, अलौकिक भी देखना पड़ता है’। बाबा क्या कहेगा - आप अपना बचपन याद करो। जब-जब आप शुरुआत में आए, मिले बाप से, वो लगन याद करो। उस समय जब आप चले, तब आपको ख्याल था - कि ‘नहीं मैं लौकिक भी देखूँगी, अलौकिक भी देखूँगी?’ नहीं! उस समय तराजू का पलड़ा वो भारी था, जहाँ बाप और आप बैठे थे, कि ‘जब आप मुझे मिलेंगे तो मैं सब कुछ त्याग दूँगा, मैं सिर्फ आपका बन जाऊँगा’। वो बचपन याद करो, वो साथ याद करो। बचपन के दिन भूल गए क्या? याद नहीं है? क्या अंदर ब्रह्मा बाप जैसा समर्पण है? है समर्पण? है? इसलिए ब्रह्मा बाप एक ही है, और इसलिए ही वो श्री कृष्णा कहलाता है, और इसलिए ही ‘गीता का भगवान’ उनको कहा गया है। क्यों? विष्णु को नहीं कहा गया। भले वही वो बने हैं - पर श्री कृष्ण को क्यों कहा गया? *क्योंकि परमात्मा के प्रति पहला समर्पण उनका रहा, कि जब मिले तो सब कुछ अर्पण कर दिया - अपना तन, मन, धन, परिवार, संबंध, संपर्क!* इतनी गालियाँ खाई, इतनी गालियाँ खाई, इतने कलंक लगे, पर कदम पीछे नहीं हटाया, घबराए नहीं - क्योंकि बाप साथ था, और क्योंकि ‘आदि शक्ति’ साथ थी। यह उनको संपूर्ण निश्चय था कि मेरे साथ कौन है! यह संपूर्ण दृढ़ निश्चय था। इतने वर्ष तक एक घड़ी, एक पल के लिए भी उनका निश्चय डगमगाया नहीं - की ‘क्या करें इतनी गाली मिल रही है, इतनी बार देश निकाला मिल रहा है’। घबराए नहीं, डरे नहीं, संशय नहीं आया। डटकर खड़े रहे, इसको कहा गया समर्पण। *यह ब्रह्मा बाप थे नहीं - आज भी है! एक पल के लिए भी यह नहीं सोचेंगे कि – ‘यह बाबा ने कहा, यह ऐसे क्यों कहा? नहीं, बाबा ऐसे नहीं कर सकते।’ यह बाप की श्रीमत पर। कौन बने हैं ऐसे? कितने बने हैं ऐसे?*

क्या मम्मा जैसा समर्पण है? उनके जैसी याद है? चेक करो। मिलना, कहना – ‘हाँ, हमें बाबा से प्यार है, हम मिलने पहुँच गए; नहीं, हमें बाबा से बहुत प्यार है’ - अच्छी बात है ना। ‘नहीं, हम बाबा को बहुत मानते हैं’ - बिल्कुल अच्छी बात है, पर बाप की कितना मानते हैं? कितना मानते हैं? *बाप की श्रीमत कितनी मानते हैं? है कोई जो यह बता सके कि ‘मैं संपूर्ण श्रीमत का पालन कर रहा हूँ’। कोई बैठा है? एक भी नहीं कहेगा बाबा – ‘एक भी’ माना एक भी नहीं, जो संपूर्ण श्रीमत का पालन करता हो।* फिर वो कहेंगें बाबा आपकी श्रीमत क्या है - वो तो बताओ? बाबा कहेंगे आप अपनी दिनचर्या को ही ठीक कर लो, सबसे पहले श्रीमत का पालन यह कर लो, उसके बाद सेकेंड श्रीमत लेना। है किसीकी दिनचर्या ठीक? अमृतवेले से छोड़ो, मुरली से भी छोड़ो, मुरली से शुरू करो। है - घड़ी-घड़ी बाप की याद? और जिनकी दिनचर्या ठीक है, जिनका खानपान भी ठीक है, और जिनका प्रेम अटूट है, बाबा उन पर कुर्बान जाता है - आज और अभी। इसलिए बार-बार ब्रह्मा बाप को फॉलो करने के लिए क्यों बोलते हैं। एक बार समर्पण होकर, दूसरी बार संकल्प तक नहीं किया कि – ‘मैंने बाप को क्या-क्या समर्पण किया है’। यह .. यह ब्रह्मा बाप की विशेषता रही। सभी माताओं को आगे करके, और खुद पीछे जाके बैठ गए, यह उनकी विशेषता रही। अब देखा आपको कितना प्यार है?

बाप तो 15 रोज में एक बारी आते हैं ना अभी। इस दिन के लिए इंतजार भी करते हैं, बड़ी मेहनत से सेवा भी करते हैं। लगन से सेवा करते हैं, और जब मिलन का टाइम आता है तो झुटके मारने लगते हैं, सो जाते हैं। अभी भी बाप इस सभा में सोने वाले और खोने वाले बच्चों को देख रहा है। ‘जिन सोया तिन खोया’! आप बाप के सामने बैठे तो हो, आप वो सब जो सोने वाले हैं उस लाइन में आएंगे, जो कहेंगे – ‘क्या जब भगवान भाग्य बांट रहा था क्या आप सोए पड़े थे?’ आज का दिन याद रखना। जो सो रहे हैं वो खो रहे हैं, उनके हाथ कुछ नहीं लगने वाला। ‘जिन सोया तिन खोया’। आपकी झोली में निंद्रा के छेद हो गए हैं, जो जा रहा है वो नीचे से निकल रहा है। इसलिए बाप कहते हैं - इंतजार इतना और इंतजाम भी इतना! और सब कुछ करके फिर सो जाना यह कैसा इंतजार और इंतजाम है? यह कैसा इंतजार और इंतजाम है?

कोई तो सोचते हैं – ‘अभी तो आधा घंटा हो गया ना, पता नहीं ब्रह्मा बाप कब आएंगे? शिवबाबा कब जाएंगे? .. आप बताओ अभी तो समय हो गया ना, अभी तो पूरा कर देना चाहिए, हम तो 2 घंटे से बैठे हैं, बाबा तो आधे घंटे से ही बोल रहे हैं!’ चेकिंग करो बच्चों - यह व्यर्थ है, यह आपका भाग्य जमा नहीं करेगा। यह आपके भाग्य को खत्म करेगा। *आज जिस सभा में आप बैठे हो, आप किसी गुरु, संत, महात्मा, महामंडलेश्वर की सभा में नहीं बैठे हो। आप एक मेले में बैठे हो, जिस मेले का नाम है ‘आत्मा और परमात्मा का मेला’!* यह मेला हर कहीं नहीं लगता है, यह मेला रोज-रोज भी नहीं लगता है। यह मिलन मेला इस संगमयुग पर एक बार लगता है। आज इस मिलन मेले का रस गँवा दिया तो यह दिन फिर कभी नहीं आएगा। यह समय भी नहीं आएगा, यह भाग्य ही खत्म हो जाएगा। यह मिलन मेला है, यह महामिलन मेला है, इसमें आपके आँख, कान सब खुले होने चाहिए। आंख और कान खुले होने से ही आपका खजाना आप आत्मा में धारण हो जाएगा, स्टोर हो जाएगा, उसको कोई छीन नहीं पाएगा। इसलिए आज का जो समय है वो वैल्युएबल है आपके लिए।

हमारे पास तो जो खजाना था वो बांटके जाना हमारा फर्ज है। आपका फर्ज क्या कहता है कि आपने कितना लिया है? कल को बाप को उलाहना तो नहीं देंगे – ‘उसको कम और मुझको ज्यादा, मुझको कम और उसको ज्यादा क्यों दिया?’ क्योंकि जितनी बड़ी झोली आपकी होगी, इतना ही ज्यादा खजाना आपकी झोली में भरेगा। नहीं तो? नहीं तो - ‘खाली हाथ आए थे और फिर खाली हाथ ही चले जाएंगे’ - यह कहावत सुनी है ना? ‘खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाएंगे’! *पर यह संगमयुग की ही कहानी सुनो – ‘खाली हाथ भले आए होंगे, पर खाली हाथ जाओगे नहीं’। आपके ईश्वरीय खजाने से आपके हाथ भरे हुए होंगे, आप मालामाल होंगे, आप भरपूर होंगे, और फिर आप जाएंगे, एक राजा बनकर – ‘मैं राजा की तरह आया हूँ!’ और तिलकधारी बनकर जाओगे यह संगमयुग की नई कहानी है।* भल खाली हाथ आए थे - पर खाली हाथ जाओगे नहीं! यह समय है आप खाली हाथ कभी नहीं जाओगे, चाहे इतना, चाहे इतना, लेके ही जाओगे। अब आपके ऊपर करता है कि आपको कितना लेना है। ठीक है?

एक बार सभी दिल से कहना कि ‘बाबा मैं आपका हूँ, आपका था, आपका रहूँगा, और हमेशा रहूँगा’, एक बार अपने मुख से सभी बोलो। (सभी ने धीरे से दोहराया) आवाज नहीं आयी। (सबने आवाज से दोहराया) वाह! *बाप भी आपका हमेशा रहेगा! यह बाप का वायदा है, भल आप भूल जाओ पर हम नहीं भूलेंगे - यह हमारा वायदा है!*

अच्छा .. ऐसे प्यारे-प्यारे, मीठे बच्चों को .. मीठे है ना? आपको रोज ‘मीठा’ इसलिए बोलते हैं - ऐसा नहीं है कि आप मीठे हो, ऐसा है कि आप मीठे बनो। रोज ‘मीठा’ केहने से तो मीठा बन जाता है ना। तो क्या बाप आज पूछ रहे हैं, इतने सालों से ‘मीठे बच्चे, मीठे बच्चे’ कह-कह के बाप का ही मुख बहुत मीठा हो गया, पर बच्चों का मुख मीठा नहीं हुआ। अब आपसे पूछ रहे हैं - कब मीठे बनेंगे? समय गुजर गया है, ‘मीठे बच्चे’ केहते समय चला गया है, बाप बूढ़ा हो गया है। बाप कभी बूढ़ा होता है? नहीं! अच्छा, आप सोच लो की 80-85 वर्ष का हो चुका है, आप ऐसा सोचो - ‘मीठे बच्चे, मीठे बच्चे’ कहते। अब बाप पूछ रहे हैं कि आप मीठा कब बनोगे? [अभी से] पक्का वायदा? [पक्का वायदा, बाबा] .. यह वायदा बहुत बार टूटा है। *वायदा मत करो भले, पर करके दिखाओ, वो वायदा रहेगा।* [पक्का, बाबा - पक्का वायदा] .. पक्का? [पक्का] .. मीठे बनेंगे ना? अगली बार मिले तो क्या कहे - मीठे कहे? अगली बार फिर ‘मीठे बच्चे’ कहेंगे। [बन जाएंगे, बाबा] .. हाँ!

[बाबा माया आ जाती है] .. तो माया को तो आप बुलाते हो, वो अपने आप नहीं आती। माया हमारी सबसे आज्ञाकारी पुत्री है। वो कहीं बिना बुलाए एंट्री नहीं करती। बिना बुलाए मेहमान नहीं है वो। आपने एकदम दिल खोल दिया, दरवाजा खोल दिया, मन खोल दिया - और बाप को कहा ‘गेट आउट’! और माया ‘आऊँ, आऊँ, आऊँ’। अब जब बाप को ‘गेट आउट’ कहेंगे तो खाली जगह में तो फिर कौन आएगा? माया तो आएगी ना! तो बाप को नहीं भगाओ, फिर बाप भी नीचे गर्दन करके चला जाता है। इनकी आज्ञा तो माननी पड़ेगी ना क्योंकि ये मेरे बच्चे हैं। कहेंगे ‘जाओ’, फिर कहेंगे ‘आ जाओ’। कितनी बार भगाते हैं, कितनी बार बुलाते हैं। बाबा कितनी बार चला जाता है, और फिर भी इतना निरअहंकारी है, फिर भी आ जाता है। ऐसा बाप कहीं देखा? आप किसी भी टाइम भगाते हो, और कोई-कोई तो खुद गड़बड़ करके फिर गालियाँ बाप को देते हैं। ‘आपका बना हूँ ना जब से ..’ - ऐसे बोलते हैं। ‘आपने मेरा यह काम नहीं किया ना, तो हमारा रिश्ता खत्म!’ फिर अगले दिन फिर रिश्ता जोड़ लेते हैं। रोज तोड़ते हैं, रोज जोड़ते हैं, रोज रूठते हैं, रोज मना भी लेते हैं।

अपने आप ही झगड़ा करते हैं, अपने आप ही हँसने लग जाते हैं - तो बाप यह खेल एकदम साक्षी होके देखता है। बाप को मालूम है ना अभी यह मूड खराब है, थोड़ी देर में मूड सही हो जाएगा। ये खेल, खिलौने बाप बच्चों के देखते ही रहते हैं। और बाप भी कितना निरअहंकारी है, खाली अभी अपने कान खोल के सुनता है ताकि आप यह ना बोलो – ‘मेरी तो सुनता ही नहीं है’। प्यार भी बहुत करता है ताकि आप यह ना बोलो – ‘मेरे से तो प्यार ही नहीं है और .. और किसी से प्यार करते हो’। *बाबा अपना हर बच्चे के साथ 24 घंटे वाला रिश्ता निभाता है।* आपकी दुनिया के 24 घंटे! आप सोचो बाप एक मिनिट भी ऊपर-नीचे नहीं करता, आप ही भगाते हो आप ही बुलाते हो। जब आप भगाते हो, तो बाप चला जाता है; बुलाते हो, तो भी आ जाता है। ऐसा बाप कहीं देखा? ऐसा वफादार कहीं देखा - जो अपने बच्चे के साथ 24 घंटे का रिश्ता निभाता हो?

अच्छा .. ऐसे बड़े प्यारे दीवानों, मस्तानों बच्चों को, परवाने बच्चों को, फरिश्ते बच्चों को, और मीठे-लाडले बच्चों को, बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते। दिल से। आज बस!

बाप यही कहेगा - प्यार की मूरत बनो, अगर प्यार की दुनिया में चलना है तो यह बाप का हाथ है प्यार का। आज तक आपने कुछ भी किया हो, बाप ने बस प्यार किया है। कुछ भी किया हो, बाप ने बस प्यार किया है। *यह हाथ बाबा दे रहे हैं – पकड़ो, और उड़ के बाप के पास आ जाओ!* प्रेम की दुनिया में चलना है, सतयुग में चलना है, तो वहाँ प्रेम है - आप किसी को यह मत देखो कि वो आपके दुश्मन है - वो आपका परिवार है, वो आपके साथ आने वाले सतयुग में आपका भाई, आपकी बहन, आपका साथी, आपकी लक्ष्मी, आपका नारायण है, आप यह सोचो। यह नहीं सोचो वो आपका दुश्मन है, क्योंकि यहाँ दुश्मन कोई नहीं है, यहाँ आत्मा है, और आत्मा का रिश्ता आपस में भाई-भाई का है।

यहाँ एक परिवार है, यहाँ कोई धर्म नहीं, कोई जाती नहीं है, यहाँ कोई भाषा नहीं है, कुछ नहीं है। एक ही धर्म है, एक ही रिश्ता है, एक ही परिवार है, एक ही बाप है, और बाप के ये अनेक बच्चे हैं, और ये आपस में भाई-भाई हैं। यह एक ही नारा और सबको जोड़के रखेगा कि – ‘यह मेरा परिवार है, और मुझे अपने परिवार के साथ कैसे रहना है, वो मैं जानता हूँ’। आपका लौकिक परिवार में कोई रूठ जाता है तो भी आप उससे रिश्ता नहीं तोड़ते हैं, तो भी आप उसको नहीं भूलते हैं - तो इस परिवार में क्यों? *यह भी तो मेरा परिवार है, सामने वाला नहीं मानता है वो उसकी प्रॉब्लम है, पर आप दिल से एक्सेप्ट करो कि यह परिवार मेरा परिवार है।* यह आपको दिल से लगाना है - ठीक है?

फिर मिलेंगे ..

अभी आप अपने ब्रह्मा बाप की लीलाओं को देखो। अच्छा बच्चों ..

अच्छा एक सूचना! *बाप ने आप बच्चों को एक सेवा दिया था - जितने भी राज्य बाकी रह गए हैं उन राज्यों में मिलन कराओ, कोई भी राज्य का उलाहना नहीं आना चाहिए।* उसमें बैठ करके मईया से, भले बाबा के घर में रहने वाले बच्चों से मीटिंग करो, ग्रुप बना करके सेवा करने जाओ, पर सेवा करने से पहले अपने शरीर का ध्यान रखो। ऐसा ना हो वहाँ जाकर आप सेवा कर नहीं रहे हैं, पर सबकी सेवा ले रहे हैं। यह बोझ का काम चढ़ जाएगा, यह डबल पाप हो जाएगा - क्योंकि अगर शरीर ठीक नहीं है तो भले मत जाओ - वहाँ सेवा ले रहे हैं; थोड़ा बहुत ऊपर-नीचे चलता है, तो कलयुगी ड्राई-फ्रूट खा करके चलो, सेवा करो। बाकी ज्यादा बड़ी बीमारी है तो बिल्कुल भी नहीं जाना है। उस चीज का विशेष ध्यान रखना है। अपना समय दो, क्योंकि संगमयुग पूरा होने को आया है। *अगले वर्ष तक एक भी राज्य बचना नहीं चाहिए। अगले वर्ष में सारे राज्य पूरे हो जाने चाहिए।* अब यह मत सोचना कि क्या फायदा होगा? ना! जहाँ बाप की नजर पड़ जाए, और आप फरिश्तों के कदम पड़ जाए, वो धरनी जुड़ती जाएगी। आप सिल रहे हो टुकड़ों को - आप यह देखना है। जहाँ आप जाओगे वहाँ सुई धागा लेकर के जा रहे हो, और सिल रहे हो। भारत के टुकड़े-टुकड़े हैं ना तो उनको क्या करोगे? क्या करोगे? सिल रहे हो, जोड़ रहे हो। और एक नारा ‘भारत माताओं की जय’! आज हर राज्य में, हर राज्य में जब ‘वंदे मातरम’ अर्थात प्रकृति का, माँ का गायन होगा, उनके गुणों का उच्चारण होगा और साथ-साथ परमात्मा मिलन होगा, जहाँ माता और पिता दोनों का गायन हो रहा है वो भूमि कितनी महान बन जाएगी! इसलिए बाबा बार-बार कह रहे हैं कि एक भी राज्य बचना नहीं चाहिए।

अच्छा .. फिर मिलेंगे ..

(फिर बाबा ने सभी बच्चों को दृष्टि देकर, विदाई ली)!
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