Interesting Murli points - to understand Knowledge in another perspective

DEDICATED to Ex-PBKs.
For those who wish to narrate their experiences about the BKs and PBK 'Advanced Knowledge' and post views about their NEW beliefs.
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Interesting Murli points - to understand Knowledge in another perspective

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गीता में जो 'कृष्ण' का नाम डाला है वह आया कहाँ से शास्त्रों में?

कोई बड़ा आदमी (लार्ड) था उस (कृष्ण) नाम का, उस समय जब यह शास्त्र लिखे गए थे| या उससे थोड़े पहले|फिर शास्त्रकारों ने गीता में उसका नाम डाल दिया| 13.10.68 की मुरली (पु.1 मध्य में )पढ़के यही लगता है| हमने यह भी सुना है कि 'कृष्ण' की कथा को बौद्धि ग्रांथो ('जातक कथाएं') से उठाया हुआ है| उनका कोई पूर्वज हुआ होगा| असली कहानी में तो सिंपल बातें लिखी गई थी| इन लोगों ने उसको बढ़ा-चढ़ा के लिखा और उसे हिन्दुओं का भगवान् बना दिया अपने फायदे के लिए|

Link ((स्कैन मुरली) : http://PBKs.info/Streaming/MP3/bma/orgl ... -10-68.pdf
रिवाइज्ड (12.9.2019) : http://www.bkmurlitoday.com/2019/09/bra ... Hindi.html
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शास्त्रों में तो झूठी बातें लिख दी है| फिर भी ड्रामानुसार 'कृष्ण' की ही महिमा होगयी न| उस बड़ा आदमी का नाम भी 'लार्ड कृष्ण' था और जो दुनिया का पहला पहला आदमी हुआ है उसका नाम भी 'कृष्ण' ही रहा, जिसके अंतिम जन्म में ही भगवान् शिव ने उसको ब्रह्मा बनाके, उसमें प्रवेश करके ज्ञान सुनाया| शास्त्र लिखनेवालों का 'favourite' आदमी तो भले 'राम' है, लेकिन ड्रामा ने 'कृष्ण' को ही गीता का भगवान् बना दिया, जो हिन्दुओं का 'धर्म ग्रन्थ' के रूप में माना जाता है, है नहीं वैसे| दुर्गति भी जरूर हुई गीता से| बातें तो सब झूठी है उसमें, ज्ञान कहा है उसमें| लेकिन सब ड्रामा|

कुछ मुरलियों में यह बताया है कि कोई एक ग्रुप था शास्त्र बनाने वालों का जिन्होंने रिसर्च करके शास्त्र लिखें है| कुछ चीजें साक्षात्कार के आधार पर भी लिखी गई है| इसका मतलब यह नहीं कि रिसर्च करने से कोई संगमयुग या सतयुग-त्रेता का हिस्ट्री मिला होगा| मुरली में बताया 'देवताओं की कोई भी चीज पतित मनुष्यों को मिल न सकें', ख़ास करके जो हीरे-जवाहरात आदि थे|

उसी तरह 'चाणक्य' भी वास्तव में कोई हुआ ही नहीं| उस समय 'संस्कृत' भाषा ही नहीं थी वास्तव में जो दिखाते की चाणक्य ने संस्कृत में 'अर्थशास्त्र' लिखा, 'चाणक्य नीति' वगैरा| लेकिन, उस तरह का कोई आदमी था जिसका नाम चाणक्य भी नहीं था| वह तो कोई 'हिन्दू' या 'वैदिक धर्म' या 'ब्राह्मण धर्म' वालों का नहीं था| इन्होने उसकी कहानी चुराई, बढ़ा-चढ़ा के उसको 'चाणक्य' बना डाला और उसे 'ब्राह्मण' के रूप में दिखा दिया अपना फायदे के लिए| वैसे ही सब शास्त्रों की बात है| 'महिषासुर', 'राजा बलि',' 'हिरणस्य कश्यप' वगैरा सब अच्छे अच्छे लोग थे| जो वास्तव में 'हिस्ट्री' में हुए है| इन लोगों ने उनको असुर बना दिया और जो वास्तव में खुद असुर थे, खुद को देवता बना डाला शास्त्रों में|
इस मुरली में जो विदेशियों (Foreigners) की बात आई है, वह वास्तव में द्वापर-कलयुग के विदेशियों (Foreigners) की बात है| जो उस बड़ा आदमी को जानते थे, जो कोई कृष्ण हुआ था भारत के हिस्ट्री में| या फिर शास्त्र पढ़के उन्होंने जाना होगा कृष्ण के बारे में| लेकिन सतयुग का कृष्ण की बात नहीं है| 'लार्ड' शब्द अंग्रेजी है ना, उन्होंने ही टाइटल दिया होगा|

बाकी ऐसे नहीं कि, संगमयुग में विलायत वाले (Foreigners) उसको जानते है| न ही संगमयुग में 'कृष्ण' है, न ही संगम की बातें द्वापर-कलयुग में विलायत वालों (Foreigners) को याद रहती है| न ही संगमयुग के पुरुषार्थी जीवन के कोई यादगार बनते है| यह सब PBKs के गलत फहमियां हैं| इस बात को 'सच्ची गीता' में कैसे दिखाया देखो पु.142 में, टॉपिक का नाम देखो क्या दिया, 'संगमयुगी राधा-कृष्ण के फुटकर पॉइंट्स'|
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स्कैन मुरली में ठीक से नहीं दिखता है तो रिवाइज्ड (12.9.2019) पढ़ो| लेकिन रिवाइज्ड मुरली में कुछ बातें बदली हुई| जैसे "भारतवासियों से सुनते हैं", स्कैन में शायद "भारतवासियों ने सुनकर देखते हैं" लिखा है| इससे थोड़ा अर्थ भी बदल जाता है| पता नहीं दोनों में कौनसा सही है| इसको बाद में देखेंगे| लेकिन मूल बात समझने कि है 'लार्ड कृष्ण' कोई आदमी हुआ करता था जिसका नाम शास्त्रों में बस डाल दिया है| ऐसे नहीं कि कोई संगम के बारें में उनको कुछ पता था|

इसी तरह रिवाइज्ड में जो "इसको कहा जाता है अन्धेर नगरी..." आता है, इससे पहले के 2 लाइन उड़ा दिया है, जो स्कैन में मिलेंगे|
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Please give a short description of your interest in joining this forum.: I am a Bk and a writer. I have been benefited a lot by the knowledge given in BK institution. I also have materials written totally on logic without BK knowledge. Anyone can get them as attachments for free by email.

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1)When Baba says in the above Murli - "Krishn ko toh koyi bhee jaan lenge. Sab vilaayatvaaley bhee unko jaanthay hain = Anyone can know about Krishn. All the foreigners know about Krishn".- SM 13-01-68 (1)

In the above sentence, from the words- "ANYONE CAN KNOW", mostly, ShivBaba is implying - ANYONE CAN BECOME AWARE OF" . That is all.

That is- anyone can get some sort of awareness or feeling of Krishn. Because history of Krishna is written; may be not fully true. But, at least to some extent, one can understand that Krishna was a great person. Hence they might have given the title LORD to Krishna also. One can guess at least something from the scriptures.

2)But, no-where history or biography of ShivBaba is written. No one knows how the incorporeal being can come to this world. Baba has even said- "ShivPuraan hai, lekin sachchi2 Shivpuraan toh Gita hai = There is Shivpuraan. But the real Shivpuraan (history of Shiv is Gita)".

So- by reading Shivpuraan one cannot guess anything about Shiv. Because in Shivpuraan Shiv is shown as a corporeal personality Shankar having a wife just one Parvati, and a son Ganesh.

3)Hindus have depicted God's incarnation as taking birth in mother's womb and also like animals! To such a low extent, the incarnation has been brought down.

4) And- we can see clearly the other religions do not have any idea of how incorporeal God can incarnate. Even though they clearly say- God is incorporeal, they have no imagination of incarnation. Hence their reach is only to the prophets.

That is what baba may be saying- No one knows about Shiv.

5) For example- baba says here - http://bk-pbk.info/viewtopic.php?f=40&t ... 256#p54256 It is remembered - God teaches RajYoga through Brahma.

Where it is said/remembered?
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6)I do not think there had been some different person having same name Krishna, and that have been taken by foreigners.

But, your churning is good/OK. Kindly continue.
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Thank you brother mbbhat.

Some Murli points:
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असली त्रिमूर्ति में कौन है?

तो जैसे दीक्षित जी बताते कि " 'गीता' भी पहले 'निराकारवादी' थी, मतलब पहले द्वापर के अदि में गीता में 'शिवशंकर भोलेनाथ का नाम था" जो विदेशियों ने रिसर्च करके बताया है, बाद में अधूरे ब्राह्मणों (माना BKs) ने द्वापर में 'बाप के बदली बच्चे' नाम डाल दिया, 'मतलब' 'कृष्ण' का नाम डाल दिया" वगैरा| और बताते कि "इसकी शूटिंग भी यहाँ हो जाती है संगम में, जो BKs बाप (सेवकराम) को घूम कर देते है| फिर कागज़ की मुरली में पहले जो 'शिवबाबा याद है' लिखते थे, जिसको BKs ने 'पिताश्री' करके लिखना शुरू कर दिया, माना कृष्ण का नाम डालने की शूटिंग होगयी"|

देखा, क्या बातें बनाई है! झूठ ही सही, लेकिन क्रिएटिविटी देखो| हम लोग 50 जन्म लेके प्रैक्टिस करेंगे तो भी ऐसा झूठ नहीं बोल पाएंगे| अरे! इन्होने 63 जन्म यही किया होगा| संस्कार पक्के हुए पड़े है|

13.10.68 की मुरली में तो क्लियर बता दिया विदेशी भी 'लार्ड कृष्ण' को मानते थे, उसके बाद 'गीता' में नाम डाला 'कृष्ण’ का शास्त्र बनाने वालों ने|

उसी तरह चाणक्य को बहुत मानते है PBKs| हमने खुद पूरा सीरियल 15 बार देखा होगा कम से कम| वह भी झूठी निकली| बाकि सारे भक्तिमार्ग के सीरियल तो झूठे है ही, जिन्हे PBKs मुरली से भी ज्यादा मान देते है|

इसी तरह त्रिमूर्ति भी झूठी बनाई भक्तिमार्ग में| बाबा हमेशा कहते रहते मुरली में "यह भक्तिमार्ग के चित्र कोई एक्यूरेट नहीं है, 'विष्णु' का, 'त्रिमूर्ति' का भी"| फिर यह भी बताते कि लेकिन इन चित्रों के बिना समझाना बहुत मुश्किल है"| ख़ास करके '30.1.68' कि मुरली में बताया हुआ है| 'प्रजापिता' को सूक्ष्मवतन में दिखाने वाले भी भक्तिमार्ग वाले है (BKs नहीं) जो 'दक्ष प्रजापति' की कहानी सतयुग कालक्रम में दिखाया शास्त्रों में|

फिर असली त्रिमूर्ति क्या है जैसे मुरली में बताया हो?

"वास्तव में त्रिमूर्ति में होना चाइए 'ब्रह्मा', 'विष्णु' और 'शिव' न की 'शंकर'| अब 'शिव' को कैसे दिखाए (जो निराकार है)? इसीलिए शोभा के लिए 'शंकर' को रख दिया (भक्तिमार्ग में)"| गड़बड़ किया ना| इसीलिए बार बार यह भी बोलते है मुरली में "त्रिमूर्ति में शिव को उड़ा दिया"| तो अब हमें शंकर को उड़ाना चाइए|

और क्लियर किया मुरली में "त्रिमूर्ति माना 'शिव' ने 'ब्रह्मा' में प्रवेश करके पढ़ाया और उसको 'विष्णु' बनाया"| कहानी ख़त्म| 'तो उसमें सिर्फ पढ़नेवाले, पढ़ानेवाला और एम-ऑब्जेक्ट", बस यही त्रिमूर्ति है असली| कुछ मुरली में और क्लियर किया- "त्रिमूर्ति में जो ब्रह्मा दिखाया है, उसके saath सरस्वती भी आजाती है (जो दिखाया नहीं भक्तिमार्ग में)"| और बताया "ब्रह्मा के साथ सारे ब्राह्मण ((9 लाख) भी आजाते उसमें"|

इसीलिए बताया कई मुरलियों में "मुखियों का गायन होता है"| भक्तिमार्ग में भी, मुरली में भी नटशेल में समझाते है, फिर कहते तत्त्वं| मतलब जो भी लक्ष्मी-नारायण की पूजा होती है, उनको जो भी प्राप्ति होती है, उनको जो भी टाइटल मिलते है जैसे 'विश्व के मालिक' , वह हम सब के लिए भी है| 'कोई एक तो नहीं होगा ना' ऐसे आता ना मुरली में|

उसी तरह 9 लाख के बाद जो दुनिया है, उनका मुखिया है 'राम' की आत्मा| इसीलिए मुरली में जब जब फेल होनेवालों की बात आती है तो 'राम' का उदहारण लिया जाता है| ऐसे नहीं कि 'शिव' को 'राम' से दुश्मनी है ((बाबा दीक्षित को तो वह तब जानते ही नहीं थे) या सिर्फ 'राम' ही एक अकेला फेल होता हो, नहीं| यह मुखिया है, इसमें बाकि सब आगये| इसीलिए गायन है 'राम राजा, राम प्रजा, राम साहूकार'| अलग-अलग मुरलियों में यह भी बताते कि 'फेल होनेवाले त्रेता में राजा बनेंगे', 'फेल होने वाले सतयुग में दस-दासी बनेंगे', 'प्रजा बनेंगे' वगैरा| तो गायन हो जाता है मुखिया का| सिर्फ राम को ही बाण क्यों दिखाया? वह अकेला थोड़ी फेल होता है? मुखिया है|

यह भी बोला जो कुमारिका से एक मुरली में पूछा "मैं कहता हूँ शिवबाबा के 2 बच्चे हैं| एक 'ब्रह्मा' सो 'विष्णु' बन जाते| दूसरा बचा 'शंकर'| तुम शंकर को क्यों छोड़ देती हो?"| उसी मुरली में 'पहले यह पूछा, क्या 500 करोड़ मेरे बच्चे नहीं है? फिर कह दिया 2 बच्चे हैं'| कॉमन सेंस की बात है, 'शिव' के सिर्फ 2 बच्चे कैसे होंगे? सारी दुनिया उसके बच्चे है ना| तो मुखियों के रूप में बताया, उन 2 मुखियों में सारी दुनिया आगयी| नकली त्रिमूर्ति में भी मुखिया ही दिखाए गए है|
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एक और बात(Just a thought):

हिन्दू कौन? रावण कौन?

हिंदुओं के जो शास्त्र बने है, वह सिर्फ अपने फायदे के लिए बनाये है| इसीलिए उससे सारी दुनिया की दुर्गति होती है , सिर्फ भारत की नहीं| मुरली में बताया, विदेशी भी इनसे सीखते, लेकिन विदेशियों से खुद अच्छी अच्छी चीजें सीखते है भारतवासी|
अब 'कृष्ण' का जो नाम डाला, उसमें ट्रिक यह है कि 'जिस आदमी का नाम पहले से मशहूर है, विलायत तक'| कुछ सालों बाद उसका इस्तेमाल किया| जैसे 'ब्रांड अम्बस्सडोर्स' होते ना, advertaisement के लिए| बस वही|

दूसरी बात मुरली में बताया, 'हिन्दू' तो कोई धर्म ही नहीं है, यह तो सिर्फ देवताओं की ग्लानि करते है| इनका धर्म स्थापक कौन है? धर्मग्रन्थ कौनसा है (आजतक गीता को ऑफिशियली धर्मग्रन्थ नहीं मानते)? बाबा के हिसाब से, असली धर्म है 'बौद्ध', 'इस्लाम', 'क्रिस्चियन', 'सिक्ख' जिनके धर्म स्थापक है, धर्मग्रन्थ है, उनके आँखों के सामने धर्म स्थापन करते है आकर| तो उनके धर्म ग्रंथों में सच्चाई भी है| वह सब निराकार को मानते है| उन धर्मो में समानता को मानते है|

हमारा धर्म जब स्थापन होता तो हम सब नीचे ही रहते है पतित अवस्था में| बाकि जब क्राइस्ट आएगा तो उसके साथ कुछ साथिया भी ऊपर से आते है| उन धर्मग्रन्थ 100-200 साल बाद बनाते होंगे जो पहले बहुत छोटी होती है, बाद में वह भी बढ़ाते जाते, हिन्दुओं से सीखके| अब हमारा धर्मग्रन्थ और शास्त्र, 3000 साल बाद क्यों बनेंगे? उसमें क्या सच्चाई होगी? वह कोई धर्म ही नहीं| 'सन्यासियों' के लिए भी बाबा ने बोल दिया उनका भी कोई धर्म ही नहीं है| इससे सम्बंधित मुरली पॉइंट्स देते रहेंगे आगे|

हिन्दू धर्म में सिर्फ ऊंच-नीच की बात है| अभी मान लो मैं हिन्दू हूँ और उसमें भी शूद्र हूँ| फिर भी अगर मैं गर्व से कहता हूँ कि 'मैं हिन्दू हूँ, मैं हिन्दू हूँ' तो मुझसे बड़ा बेवकूफ कोई नहीं होगा| मतलब 'मैं नीच हूँ' यह बात गर्व से कहना|

दूसरी बात, अगर मैं क्रिस्चियन या दूसरे धर्म में कन्वर्ट होता हूँ तो मुझे वहां समानता मिलेगी| इज्जत मिलेगी| अब सोचो, मैं क्रिस्चियन हूँ, हिन्दू धर्म में आना चाहता हूँ तो क्या मुझे ब्राह्मण वर्ण में शामिल करेंगे?

जितना हम जानते है, एक ब्राह्मण का बच्चा ही ब्राह्मण बन सकता है| इसी तरह का एक और धर्म है 'यहूदी' (Jews), वह भी हिन्दू धर्म का भाई है| इन धर्मों का विरोध करने के लिए बाकि धर्मों की स्थापना हुई| कई संत महात्मा आये 'कबीर','तुकाराम', 'बसवण्णा' वगैरा| बाद में इनकी हिस्ट्री भी घूम करके, उनका भी ब्रह्मणीकरण किया गया| 'अशोक' इतना बड़ा राजा जिसने 'बौद्ध' धर्म को विदेशों में पहुँचाया था, उसका हिस्ट्री किसीको पता नहीं था| रिसेंटली पता चला है| यादगार में देखो, 'अशोक चक्र' 'अशोक लांछन' सब बौद्ध धर्म के ही है आज भी|

वैसे बाकि धर्म भी सब तमोप्रधान बन गए अभी तो, सिक्खों में भी जातिवाद है शायद|

मुरली में बोला 'देश' के नाम पर भला कोई धर्म का नाम होता है (हिन्दू धर्म)? जो शायद मुग़लों ने या कोई विदेशियों ने दिया हुआ है|

बाकि जानकारी के लिए 'आर्यन्स' के ऊपर स्टडी करो, 'डीएनए' थ्योरी जो राखीगढ़ी पर हुई, और मुरली|
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13.10.68, जो पहले देखा था:

"कृष्ण को तो कोई भी जान लेंगे| सभी विलायत वाले भी उनको जानते है| लार्ड कृष्ण कहते है ना|....भारतवासियों ने सुनकर देखते है इनकी पूजा बहुत होती है तो फिर गीता में भी लिख दिया है कृष्णभगवानुवाच| अभी भगवान् को भला लार्ड कहा जाता है क्या| लार्ड कृष्ण कहते है| लार्ड का टाइटल वास्तव में बड़े आदमी को मिलता है| वह तो सभी को देते हैं| इंडियन का (को) बड़ा आदमी होगा तो उनको भी लार्ड कह देते है| ...अभी वह कहाँ वैकुण्ठ का पहला प्रिंस, और कहाँ यह कलयुगी पतित मनुष्य| इसको कहा जाता है अंधेर नगरी... कोई भी पतित को लार्ड कह देते|..."

इससे अभी यह पक्का होता कि लार्ड कृष्ण कोई बड़ा आदमी था| यह ऊपर के लाइन पूरा पढ़ने से समझ में आएगा| इसमें भी ख़ास,
"फिर गीता में भी लिख दिया है कृष्ण भगवानुवाच| अभी भगवान् को भला लार्ड कहा जाता है क्या| लार्ड कृष्ण कहते है| लार्ड का टाइटल वास्तव में बड़े आदमी को मिलता है”|
---भगवान् को लार्ड नहीं कहता कोई| मतलब, ऐसे नहीं कि गीता पढ़के बाद में विलायत वालों ने भगवान् कृष्ण को 'लार्ड' टाइटल दिया| नहीं, विलायत वालों ने 'लार्ड' टाइटल जिसको दिया था जो बड़ा आदमी था, उसको शास्त्रों में 'भगवान्' बना दिया|

---दूसरी बात, गीता वैसे द्वापर में काफी बाद में बानी थी, रामायण, महाभारत सबके बाद| लगभग कलयुग के नज़दीक| लेकिन इस मुरली में बाबा कलयुग के मनुष्य को भी लार्ड कह देते वगैरा बता रहे बार बार| दिमाग में रखने की बात है फिलहाल| आगे क्लियर होगा गीता कलयुग में ही बानी थी या उससे पहले|

लेकिन एक बात समझ में आगया इस मुरली से, इसको समझने में हमे 2 दिन लगे|
मतलब मुरली हिंदी में ही है सब फिर भी समझना मुश्किल हो रहा है| कल वाला पोस्ट में हमने यह भी लिखा था कि शायद शास्त्र पढ़के उन्होंने कृष्ण को जाना होगा और लार्ड टाइटल दिया होगा विलायत वालों ने| लेकिन बात बहुत सिंपल थी|
ऐसे में BKs मुरली पढ़ना और भी डेंजर है| वैसे ही टाइम लग रहा है हमें, ऊपर से BKs के changes| इस मुरली में और भी काफी changes मिलें इसी 5-6 लाइन में|

लेकिन कल वाला पोस्ट में एक मुरली पॉइंट है 16.7.63 की, उसमें यह बताया कि कोई ग्रुप ने यह सब बनाया| यह ग्रुप ने एक लाइफ में सब तो नहीं बनाया होगा शायद| फिर कौनसा ग्रुप होगा? उसीमें एक order बताया, जिन्होंने गीता बनाई, गीता के साथ भागवत , उसके साथ महाभारत, फिर उसके साथ रामायण भी उसी ग्रुप ने बनाया| इसका मतलब पहले गीता फिर भागवत फिर महाभारत फिर रामायण, ऐसा तो नहीं होगा शायद| फिर भी ध्यान में रखने की बात है, आगे क्लियर होगा|

इसी पॉइंट में बताया, व्यास भगवान् ने कृष्ण भगवानुवाच के साथ, उनके चरित्र भी उसने लिखें है| ग्लानि किया आखिर, उसमें भी उसका फायदा रहा होगा या उस ग्रुप का|

हमने यह भी सुना था कि बौद्धों के जातक कथाओं से कृष्ण की story उठाके बढ़ा-चढ़ा के लिखा गया|
मुरली में तो बाबा ने उस गीता को कभी सपोर्ट नहीं किया| यहाँ तक बोला 'सर्वव्यापी का ज्ञान गीता से निकला है', 'उसमें आटे में लून मिसल सच्चाई है', '5% भी सच नहीं है' वगैरा|
व्यास को तो बाबा हमेशा धोते रहते| असल में व्यास भी हम बच्चे हैं बताया| उसने नाम धार लिया 'व्यास भगवान्'|
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LINK (S.M.9.8.1964): http://PBKs.info/Streaming/MP3/bma/scan/150.pdf
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Interesting point:
एक मुरली (शायद 1962 की कोई) में बताया, "कोई नुज़ियम (शायद, नास्त्रोदामूस नहीं) की भविष्यवाणी में भी लिखा है, 8 ग्रह मिलें थे (या मिलेंगे) और महाभारत लड़ाई लगी थी"|

मुरली ढूँढ़के बताएँगे बाद में| लेकिन बाबा दीक्षित ने इसका अर्थ लगाया कि 8 ग्रह आपस में टकराएंगे| इसका बेहद में भी बता दिया, ब्राह्मणों की दुनिया में 8 अलग-अलग रजाइयां आगे चल स्पष्ट दिखाई देंगे शूटिंग पीरियड में और वह आपस में टकराएंगे| जो एकदम बकवास है| बेहद में छोडो, हद में ही गलत अर्थ लगाया|

मुरली में बताया 8 ग्रह मिलेंगे| टकराएंगे नहीं बताया, जो उन्होंने गलत अर्थ निकाल लिया इसका| सोचो, टकराएंगे तो वह कभी वापस बन पाएंगे? हमेशा के लिए ड्रामा ही ख़त्म हुआ| कितनी अज्ञान की बात बता दी| कोई खिलौना समझ रखा है ग्रहों को|

फिर, इस पर थोड़ा रिसर्च करके पता चला कि 'ग्रह' मिलेंगे का मतलब alignment की बात है| हिंदी में 'संरेखित'| मतलब उनकी धुरी तो फिक्स्ड रहेगी सूरज से| लेकिन एक लाइन में जैसे एक-एक नीचे एक आजायेंगे|

अभी भी जो भूकंप होते है, रिसर्च करने वाले इस alignment के आधार पर ही बताते कब कितने परिमाण का भूकंप आ सकता है| सुना है, कभी 2 या 3 ग्रह भी align हो जाये या जभी हुए थे, तो विनाश का तांडव मचता है धरती पर| कुदरती आफदाएँ जैसे भूकंप वगैरा होते हैं|


दूसरी एक बात- S.M.2.9.62 में एक बात आई (ऊपर वाली बात से इसका कुछ लेना देना नहीं है),
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2.9.62.earthquake.PNG
इंटरनेट में ढूँढा तो, ध्यान देने वाली बात है, 2.9.63 में कश्मीर में भूकंप आया था| मतलब सिर्फ 62 की जगह 63, बाकि 2 सितम्बर को ही हुआ लेकिन 1963 में|

अब गलती से मुरली को 63 का बना दिया टाइप करते वक़्त? या, या फिर यह कोई पुरानी बात है, मतलब पुरानी मुरली है जो 1962 में रिवाइज्ड हुआ| जिसको असली मुरली के रूप में दिखा दिया हो और तारीख ठीक से मैच करने की कोशिश की हो उस कश्मीर वाली भूकंप के साथ, लेकिन उसमें थोड़ी गड़बड़ी हुई हो, यह सोचने की बात है|

क्योंकि, इससे पहले भूकंप 1960, 1956 में गुजरात में, फिर 1954,1950 वगैरा में आया भारत में|1962 में भी गुजरात में आया जो शायद जनवरी में |

अभी इनका एनालिसिस करके कुछ ख़ास समझ में नहीं आया अभी तक| करना भी बेकार है|BKs ने क्या झोल किया है क्या पता| मुरली में रात को 3.30 बजे बताया, मतलब सवेरे| 1956 का भूकंप 9 बजे सुबह आया (UTC 15.32)|

इस लिंक में देख लो: https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_e ... s_in_India

Wikipedia पर भी 100% भरोसा नहीं कर सकते| कुछ बातें ऊपर-नीचे भी होंगे|

अब अगर यह रिवाइज्ड है तो असली मुरली कब चली थी? क्या असली ब्रह्मा 1962-63 तक था या उससे पहले ही गया था? जो ऑडियो कैसेट मिले हैं वह तो 1963 से चलाना शुरू किया|
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कुछ और मुरलिया :
4.12.68, रात्रि , पु.1 अंत
15.1.69, प्रा. पु.3 आदि
18.12.68, प्रा. पु.3 मध्य (इसमें थोड़ा आगे बताया, देवतायें वाममार्ग में गए तो निशानियां दिखाया बहुत मंदिरों में| दूसरी मुरलियों में इस बात पर जगन्नाथ मंदिर का उदाहरण दिया है)
23.4.62, प्रा. पु.3 मध्य (एक ही पढाई से कोई सूर्यवंशी बन जाते , कोई कम पढ़ते तो चंद्रवंशी)
29.10.67 प्रा. पु.2 मध्य

इसके अलावा, गूगल करो 'देलवाड़ा bk Murli Hindi' या 'दिलवाड़ा bk Murli Hindi' तो रिवाइज्ड मुरली मिलेगें| पेज के अंदर भी फिर सर्च कर सकते हो CNTRL+F करके 'देलवाड़ा' टाइप करो|
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हमें वैसे भक्तिमार्ग की बातों का चिंतन नहीं करना चाहिए, फिर भी कुछ बातें शेयर करना था|

शास्त्रों में, भक्तिमार्ग में कुछ ऐसे देवतायें दिखाए गए हैं जिनमें
काफी बातें मिलती-जुलती है| जैसे वीरभद्र, भैरव, खंडोबा-मल्हार (महाराष्ट्र में) / मैलार(कर्नाटक में), खाटूशाम बाबा (राजस्थान), वीरबाबा (अबू रोड)|

इन सब में कुछ कॉमन बातें:
१. किसी किसीको तीसरा नेत्र दिखाते|
२. मूछें दिखाते है (जो शायद वीरता की निशानी है, विकार की न हो शयद)| नाम में ही वीर लगा हुआ है|
३. सबको शिव का अवतार दिखाते है, खाटूश्याम तो बर्बरीक है वास्तव में|
४. किसीको सांप दिखाते है, विष्णु वाला सांप| शंकर जी वाला नहीं, जो काटने वाला है|
५. इनको बाबा भी कहते है, जैसे मुरली में बताया,"शिव को हमेशा बाबा ही कहते है भक्तिमार्ग में"| इनको भी कहते है- श्यामबाबा, भैरव बाबा, वीर बाबा|
६. इनके वाहन- भैरव को कुत्ता, बाकि लोगों को घोडा वगैरा दिखाते है|
बाबा ने भी ब्रह्मा को रथ, घोडा, बैल, हुसैन का रथ कहते मुस्लमान वगैरा बताया| फिर बोला कि वास्तव में यह माता है, गऊ है जिसका यादगार गउमुख बने हुए है, भगीरथ मेल होने कारण बैल दिखा दिया शास्त्रों में|
७. इनके फोल्लोवेर्स या पूजा करने वाले ब्राह्मण वर्ण के नहीं होते| हिन्दू धर्म में जो नीची जाती के लोग है, जैसे धनगर वगैरा|
८. जेजुरी (खंडोबा) और मैलारा (मैलार लिंग) में घोडा (ज़िंदा) भी रखा हुआ मंदिर में|
वैसे ही एक देवी के मंदिर में 'भैंस' रखा हुआ देखा था|
९. इन मंदिरों में भी- कुछ विशेष बातें है| जेजुरी, मैलारा में वीरभद्र के मूर्ति भी रखे हुए है| इनका वाहन घोडा है, लेकिन कुत्ते भी होते है मंदिरों में| खंडोबा के एक चित्र में घोड़े के नीचे कुत्ता दिखाते| टाइगर का डॉल रखा हुआ होता है जेजुरी में| इनका कनेक्शन "रेणुका देवी यल्लम्मा") के मंदिर से भी है|
१०. बैल की मूर्ति तो इन मंदिरों में बहुत पाया जाता है| जैसे शिव के मंदिर में होता ही है|
१०. इनकी मूर्तियां सिर्फ मुख या आधा शरीर के होते हैं|
११. जगदम्बा और महाकाली को तो दिखाते ही है तीसरा नेत्र, वह सब मम्मा के ही यादगार है|
१२. वैसे ही धर्मराज को भी मूछें, तीसरा नेत्र दिखाते है| भैंस उसका वाहन दिखा दिया भक्तिमार्ग में, जैसे महिषासुर होगया| बाबा ने मुरलियों में "धर्मराज बाबा" भी कहते है उसको| मुरलियों के हिसाब से "शिवबाबा" ही धर्मराज है| "त्रिमूर्ति" के चित्र में भी जो लिखत है, उसमें ही बताया हुआ है|

मेरे हिसाब से भैरव को, वीरभद्र को खुली हुई तीसरा नेत्र दिखाते है| शंकर को ज्यादातर बंद आँख दिखाते होंगे| यह कोई शिव की प्रवेशता की निशानी नहीं है, जिस तरह दीक्षित बाबा बताते है| किसीकी खुली तो पूजा होती है| जिसकी तीसरी आंख नहीं खुली तो तप्तास्या में ही बैठा हुआ है कोशिश कर ही रहा है बस|

दीक्षित बाबा उलटा पाठ पढ़ाते है कि "शंकर पर बैल" सवार है अभी, बाद में शंकर सवारी करेगा|
सवार करने के लिए साकार में चाइए| यह रथ की बात है| बाबा ने बताया, एक तो ब्रह्मा को "गऊ" की जगह बैल बना दिया, फिर शंकर की सवारी दिखा दी, क्योंकि भक्तिमार्ग में शंकर को ही शिव समझ लिया|

वैसे ही कथाओं में, शंकर से वीरभद्र, मैलार, भैरव वगैरा पैदा होते हुए दिखाते है| वास्तव में शिव की बात है| इसीलिए शिव के अवतार माने जाते है , शिव के अंश माने जाते है यह सब देवतायें| यह सब ब्रह्मा के ही यादगार होने चाइए|

अनपढ़ दीक्षित बाबा ने "भक्तिमार्ग की गीता" पढ़के गलत अर्थ बता दिया कि "राजस्व अश्वमेधा यज्ञ" का मतलब अश्व माना "मन", "मन रूपी घोडा" उसको स्वाहा करना है|
मुरली में बताया, यह रथ की बात है, शरीर की| मन की नहीं| यह भी बताया "आत्मा को थोड़ी अर्पण करेंगे, आत्मा अविनाशी है", अश्व माना शरीर को इस यज्ञ में अर्पण करना है|

कुछ फोटो अपलोड करेंगे अगले पोस्ट में|
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+10 दो 100 लो का ऑफर:+
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साकार मुरली पढ़ने का जब सोचा था तब हमने एक प्लान बनाया था, "10 दो 100 लो"|
देखो, हर-एक मुरली- कंप्यूटर में टाइप किये हुए, स्कैन मुरली, रिवाइज्ड, सब मुरलियों को, एक -एक मुरली को हममें से हर-एक को खुद पढ़ना जरुरी है| दूसरों के भरोसे बैठना बेवकूफी है| कोई भी पॉइंट मिस हो सकता है|
लेकिन इसमें थोड़ा वक़्त लग जायेगा सब पढ़ने में| लेकिन पढ़ना जरुरी है बाद में ही सही|

अभी के लिए कुछ ऐसा करें कि जिससे सबका भला हो| एक बार सब मुरलियों को जल्दी से पढ़ लेना है दूसरों की मदद लेके| इसीलिए हमने वह प्लान बनाया था, "10 दो 100 लो"| लेकिन तब किसीका सहयोग नहीं मिला, तो अकेले पढ़ना पड़ा|

लेकिन अभी कोई चाहे तो कर सकते है| प्लान सिंपल है, मान लो मुझे 100 मुरली पढ़ने में 10 दिन लगता है| वही 100 मुरली 10 लोग पढ़ेंगे तो 1 ही दिन में ख़त्म हो जाता है|
मतलब, 10 लोगों का एक ग्रुप बनाया, हर-एक को 10 मुरली दे दिया पढ़ने| सबने 10-10 मुरली पढ़के, पॉइंट्स नोट किया| फिर ग्रुप में बाकि सबको दे दिया, उसके बदले में 90 मुरली के पॉइंट्स मिल गए| क्योंकि, बाकि सबने भी वैसे ही किया ना|
कोई-कोई मुरली में आम बातें रिपीट होती रहती है, वह सब पढ़ने से अभी के लिए सबका टाइम बच गया, सिर्फ पॉइंट्स देखा, उसमें से हमारा काम का कोई पॉइंट हो तो वहां जाके देख लिया| इस तरह एक दिन में 100 मुरली पढ़ लिया, 10 की जगह|

अगर ग्रुप में 15-20 लोग होंगे तो और भी फायदा होगा|

कंप्यूटर में टाइप किये गए मुरली सिर्फ 2700 कुछ पेज है| अगर 10 लोग मिलके, दिन में सिर्फ 20-20 पेज भी पढ़ते रहें, तो भी दिन में 200 पेज और 14 दिन में सब मुरली ख़त्म|

इसमें ध्यान देने वाली बातें:
1. सबसे पहले ग्रुप बनाना है| फिर एक एक्सेल शीट में मेन्टेन करें, किसको कौनसी मुरली दी गयी वगैरा| फिर एक नया टॉपिक (Discussion thread) बनाया जाये, उसमें सब पॉइंट्स शेयर करते रहे|

2. कौनसे कौनसे टॉपिक पर पॉइंट्स निकालना है, यह पहले निर्धारित करना होगा|
पीबीकेज के खिलाफ वाले टॉपिक तो बहुत है और उसमें पॉइंट्स भी बहुत मिलेंगे| जैसे "राम", "शंकर", "प्रजापिता", "शिवलिंग", "सतयुग के रसम-रिवाज़", "राधा-कृष्ण के जन्म", "भगीरथ", "मुक़र्रर रथ", "विनाश की घोषणाएं (1976 के लिए)", "व्यास", "नर से नारायण" वगैरा|

लेकिन इससे भी इंटरेस्टिंग टॉपिक है "कर्मातीत स्टेज", "सूक्ष्मवतन", "याद", "आत्मा","परमात्मा", "अंत में साक्षात्कार की बातें", "ड्रामा", "ब्रह्मा बाबा की जीवन कहानी", "यज्ञ के आदि की बाते" और
"इंटरेस्टिंग पॉइंट्स"- जैसे 8 ग्रह मिलने की बात, परमधाम का वर्णन वगैरा वगैरा|
"इमीटेशन"- मतलब, ऐसा पॉइंट्स जिसमें यह साबित होता कि ऑडियो वाला ब्रह्मा डायरेक्ट मुरली नहीं चलायी, इसका सैंपल हम दिखाएंगे बाद में| आखिर में एक टॉपिक "Miscellaneous"|

तो टॉपिक का लिस्ट पहले निर्धारित करना पड़े|

3. पॉइंट्स कौनसे फॉर्मेट में नोट करना है, यह भी निर्धारित करना पड़े|
अगर इ-बुक्स पढ़ेंगे सब, तो सिंपल फॉर्मेट है| जैसे एक मुरली में "राम फेल" पर पॉइंट आया तो उस टॉपिक के फाइल में सिर्फ "किताब नंबर, पेज नंबर, आदि/मध्य/ या अंत" इतना लिख दिया तो होगया| 5 किताब है, हर-एक में 600 पेज हैं, पेज नंबर डाला गया है| यह यूनिवर्सल फॉर्मेट हो जायेगा, किसीको कोई पॉइंट बताना हो, कुछ भी हो तो सिर्फ "किताब नंबर", "पेज नंबर" से काम होगा| मुरली का तारीख, प्रातः कि रात्रि क्लास वगैरा की जरुरत नहीं है|

लेकिन अभी के लिए यह शायद काम नहीं करेगा, किताब किसीके पास है नहीं| तो जो डाउनलोड किया हुआ सॉफ्ट कॉपी है, जो सिर्फ 62 MB है, 1958 से 1969 तक के मुरलियों को मिलाके| उसको सब अपना अपना लैपटॉप-मोबाइल में रख सकते है| फिर नीचे दिए गए सैंपल फॉर्मेट में पॉइंट्स नोट करे, फिर ग्रुप में भी भेजते रहे|
Format_to_share_points.PNG
Format_to_share_points.PNG (16.13 KiB) Viewed 15770 times
इस तरह का एक फॉर्मेट ग्रुप के हर-एक मेंबर के पास हो, फिर एक मास्टर कॉपी हो, जिसमें सारे पॉइंट्स मिलाया हुआ हो सभी के|
कोई किसी दिन 20 की जगह 10 पेज ही पढ़ पाता है, तो भी कोई बात नहीं| कोई ज़बरदस्ती थोड़ी है| जिससे जितना हो सकें|

वैसे हमारे पास काफी पॉइंट्स है नोट किये गए, लेकिन एकदम नए से शुरू करना चाइए| खुद पॉइंट्स निकालने में मज़ा ही अलग है| और, हमने जब नोट किया था तो जरूर बहुत पॉइंट्स मिस भी किया होगा|

सबसे इम्पोर्टेन्ट: जैसे यहाँ बताया, वैसे ही करना जरुरी नहीं है| जिसको जैसे चाहे| अभी के लिए, कोई 2-3 टॉपिक पर ही सिर्फ 1967 और 1968 की मुरलियों में क्या क्या आया, यह देख सकता है| इस फोरम के बाहर ग्रुप बनाओ, व्हाट्सप्प में बनाओ| जैसे जिनको ठीक लगे| यह तो बस एक आईडिया दिया, किसीका काम आएं तो अच्छा ही है|
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Re: Interesting Murli points - to understand Knowledge in another perspective

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याद, आत्मा पर बातें और ब्रह्मा भोजन का महत्त्व पर:
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याद में तो बहुत पॉवर है| लेकिन कुछ लोग यहीं सोचते रह जाते कि याद कैसे करें? जैसे तैसे, जितना समझा उतना करते जाना है|
सबसे पहले, याद कितनी बड़ी चीज है, उससे कितना फायदा है, यह समझना बहुत ज़रूरी है| इतना भी बुद्धि में गहराई से, विश्वास के साथ दिमाग में बैठ गया कि बाबा की याद में बड़ी ताक़त है, तो भी याद होगया| बस, इतना भी हो कम से कम बुद्धि में तो भी याद होगया, पता भी नहीं चलेगा कि याद किया| इतनी बड़ी चीज़ है|

लेकिन जब बाबा को याद करने लगे तो माया बहुत अटैक करती है|

पीबीकेज तो खुद मायावी है, माया की गोद में बैठे हुए है| रावण भोजन खाते है, दीक्षित बाबा की याद में खाना बनाओ फिर खाते रहो| फिर कहते कि हमे माया तंग करती है| याद ही नहीं किया तो माया का पता भी कहाँ है इनको? सच्चा याद करके देखो, फिर पता चलेगा माया होती कैसे है? पीबीकेज के अंदर कितनी प्रतिशत में बैठी हुई है? पीबीकेज अच्छा मज़ाक कर लेते है| माया के गोद में बैठ के कहते माया तंग करती| AIVV का नाम बदलकर "सर्कस कंपनी" रख देना चाइए| किसीको कभी एंटरटेनमेंट चाहे ना तो बस एक-दो पीबीकेज से ज्ञान की बात कर लो 10 मिनट, हस-हस के पागल हो जाओगे|
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Re: Interesting Murli points - to understand Knowledge in another perspective

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यादगार, दृष्टान्त
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रावण राज्य की विशेषता क्या है? वीर्य से बच्चे पैदा करते है|
ऐसा रावण राज्य की शुरुआत किसने की? किसने सिखाया ऐसे बच्चे पैदा करना? वहीँ आदमी रावण हुआ, पहला रावण| लेकिन रावण कौन? इसका इतना सुन्दर दृष्टांत है शास्त्रों में, जिसका जिक्र बाबा ने मुरलियों में अनेकों बार किया है| तो शास्त्रों में जो नमक मिसाल सच्चाई, इसीको कहा जाता है| यह कोई संगमयुग या शूटिंग पीरियड की बात नहीं है| यादगार और दृष्टान्त तो पुरे ड्रामा के ऊपर आधारित है| मुरली में भी कोई भी बात शूटिंग को लेके बताया ही नहीं| शूटिंग होती भी नहीं, यह तो अनादि शूटिंग हुई पड़ी है, आत्मा माना ही एक्टर जिसके अंदर यह अनादि रोल भरा हुआ है जो कभी घिसती ही नहीं| रोल घिसती थोड़ी है जो हर बार संगमयुग में भरना पड़े?

अव्यक्त वाणी में भी गलत बता दिया कि संगमयुग में 84 जन्मों के संस्कार आत्मा के अंदर भरा जायेगा, फिर इस बात को पीबीकेज ने हमेशा की तरह कॉपी किया आँख बंद करके|
अव्यक्त वाणी में तो कुछ भी बोलते है, शिव को आत्माओं का रचयिता भी बता दिया| आत्मा रची जाती है? यहाँ देख लो अव्यक्त वाणी,
Golden Heart wrote: 07 Dec 2019 जो रूहों के रचयिता बाप को रूह-रूहान के लिए निर्वाण से वाणी में ले आते हो। ऐसी श्रेष्ठ रूह हो जो बन्धनमुक्त बाप को भी स्नेह के बन्धन में बांध देते हो।
viewtopic.php?f=40&p=54659#p54659

मुरलियों में बताया कि आत्माएं तो हमेशा से है ही, रची नहीं जाती| शिव तो स्वर्ग का रचयिता है, उससे भी पहले मुखवंशावली रचना रचते है| बात ख़त्म|

उसी तरह, शिव कोई डायरेक्टर भी नहीं है| वह तो हीरो पार्टधारी है, जो बिंदी ही है| सोचो, शिव रावण राज्य का शूटिंग क्यों कराएगा? गलत चीजें सिखाएगा? फिर डायरेक्टर कैसे? कोई भी मुरली में शिव को डायरेक्टर नहीं बताया गया, हमेशा हीरो पार्टधारी बताया है| जब कोई डायरेक्टर ही नहीं है तो शूटिंग का तो सवाल ही नहीं पैदा होता|

तो हर-एक चीज़ को, वह जैसा है, वैसे ही उसको समझना चाइए ना| एक गलत मोड़, पता नहीं कितने किलोमीटर ले जायेगा, जहाँ से लौटना मुश्किल हो जाएँ|
यह सब तो बड़ी मोटी-मोटी बातें हैं, इसमें ही फसेंगे, 50 साल लगाएंगे समझने में, तो फिर बाकि जो असली महीन बातें हैं उनको कैसे समझेंगे हम? सोचो, दुनिया में क्या-क्या चीज़ें हैं, हर एक बात को उसके असली रूप में समझना है| ख़ास करके, आत्मा, परमात्मा और ड्रामा को, कितना बड़ा काम है!

असली बात तो रह गई| तो वह दृष्टान्त कलयुग और द्वापर के लिए बना है जो रावण राज्य की और रावण की निशानी है| इसके सम्बन्ध में कुछ मुरलियों का प्रूफ अगले पोस्ट में देखेंगे|

पता नहीं, ऐसे कितने दृष्टान्त और यादगार हैं, जिनको भी असली रूप में समझना है|

ऐसे नहीं कि जो मुँह में आया बोल दो बेहद का अर्थ के नाम पर| शंकर जी में ब्रह्मा ने प्रवेश किया, इसीलिए उसके सर पर चन्द्रमा दिखाते है| क्या बोला? वैसे ही, आसमान में 9 लाख सितारे हैं जो हम ब्राह्मणों के यादगार है? 9 लाख है क्या सितारें? लगता है, यहाँ लोग चंद्र गृह तक नहीं पहुँच पा रहे हैं, लेकिन पीबीकेज ने जाके सितारों की गिनती करके आगये|

अरे, यह सितारों का उदहारण तो ऐसे ही दिया है मुरलियों में समझाने के लिए| इसमें कोई बेहद का दिमाग थोड़े ही लगाना है?

शंकर जी के सर पर चन्द्रमा दिखाते है, यह तो बढ़िया यादगार है| यह ताज दिखाया गया है| जैसे कृष्ण को मोर पंख| कोई राजाओं को मुर्गी का पंख दिखाते इतिहास में| तो कहाँ का राज्य प्राप्त किया शंकर ने संगमयुगी पुरुषार्थ में? चंद्रवंशी में राजा का पद पाया ना, तो दिखा दिया ताज|
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Re: Interesting Murli points - to understand Knowledge in another perspective

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