PBKs - 'Sacchi Gita Khand 1' EXPOSED [Hindi]

DEDICATED to Ex-PBKs.
For those who wish to narrate their experiences about the BKs and PBK 'Advanced Knowledge' and post views about their NEW beliefs.
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पिछले पोस्ट को आगे बढ़ाते हुए,

5.12.68 का ओरिजिनल मुरली, ((इसका सच्ची गीता वाला पॉइंट पिछले पोस्ट में है)
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जो पीला रंग से मार्क हुआ है, उतना ही सच्ची गीता में लिखा है| जहाँ "..."डाला है 'सच्ची गीता' में, उस बीच में 20 लाइन हैं| जहाँ नीला रंग से अंडरलाइन किया है, उसमें तो उलटा नई दुनिया और पुरानी दुनिया की बात हो रही है| संगम युग में कंचन बनने की बात है नहीं|

उसी टॉपिक में "कंचन काया" वाले में पु.86, 87 में:
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इस पॉइंट में जो "मरना कौन चाहेगा....जीते जी मरना सिखाते है जो और कोई सिखा नहीं सकता है" आया, बस इसीको हाईलाइट कर रहे है वह 'सच्ची गीता' में| जिससे यह लगे कि हम शरीर नहीं छोड़ेंगे, हमें तो बाबा दीक्षित जीते जी मरना सिखाते है|

ओरिजिनल मुरली में क्या आया, (इसका स्कैन में नहीं दिख रहा था तो रिवाइज्ड वाला- 27-08-2019 का लिया है)
लिंक: https://bkmurli.com/brahma-kumaris-toda ... gust-2019/
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सच्ची गीता पॉइंट को इसमें नीला रंग से अंडरलाइन किया है| उसको छोड़के बाकि जगह मुरली में सिर्फ शरीर छोड़ने की बात हो रही है| सतयुग की , दूसरे जन्म में देवता बनने की , जल्दी जल्दी वापस जाने की, चोला छोड़ने की, शरीर रूपी कपडा छोड़ने की ही बातें हो रही हैं| यह भी आया यह मृत्युलोक में अंतिम जन्म है, अमरलोक सतयुग को कहा जाता है वगैरा|

लेकिन 'सच्ची गीता' में आधा अधूरा पॉइंट बनाके, यह साबित कर रहे है कि हम इस शरीर को नहीं छोड़ेंगे, इसीको कंचन काया बना लेंगे|
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IMPORTANT पॉइंट- 'सच्ची गीता ' में टॉपिक का नाम 'लक्ष्मी-नारायण', पु.83
में, छठा पॉइंट: (PBKs का डायरेक्ट 'नर' से 'नारायण' इसी शरीर से बनने का गपोड़ा)
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nar_se_narayan_sg.PNG (70.15 KiB) Viewed 9924 times

टॉपिक का नाम से और यह पॉइंट पढ़के समझ में आया ही होगा कि 'सच्ची गीता' में यहाँ क्या साबित करना चाहते है| वह बता रहे है कि "हम नर से नारायण बनेंगे डायरेक्ट इसी शरीर से, प्रिंस नहीं बनेंगे बीच में"| यह तो PBKs का कॉमन पॉइंट है| वे कहते रहते कि "BKs तो पहले प्रिंस बनेंगे फिर नर से नारायण का क्या मतलब हुआ? हम तो भाई, डायरेक्ट नारायण बनेंगे अपना बाप (बाबा दीक्षित) के साथ"|

अब इसके ओरिजिनल मुरली में देख लो क्या कहा गया,

पूरा पढ़ लेना ध्यान से| जो हाईलाइट किया हुआ हिस्सा है, वह "सच्ची गीता" में नहीं है| कुछ हिस्सा 'सच्ची गीता' पॉइंट के बीच में ही काट दिया उन्होंने| कुछ हिंसा इस 'सच्ची गीता' पॉइंट के तुरंत बाद आता है ओरिजिनल मुरली में|
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मुरली में यह नहीं बताया कि 'नर से नारायण' कहते हो तो प्रिंस नहीं बनना है| जिस तरह से 'सच्ची गीता' में दिखाया गया है| उसमें उलटा यह बताया कि 'नर से नारायण' का मतलब तुम ऐसे मत समझ लेना कि 'जब हम सतयुग में पैदा होंगे तो पहले पहले नाम नारायण पड़ेगा'| उसमें साफ़ साफ़ बता दिया 'प्रिंस बनना है' 'प्रिंस बनेंगे' करके 5-6 बार|

जहाँ 'सच्ची गीता' में "..." लगाके 3-4 लाइन गायब किया है, उसीमें बता दिया "तो तुम बच्चों को ख्याल में आना चाइए हम पहले पहले जरूर प्रिंस-प्रिन्सेज बनेंगे"| बीच में से ही उड़ा दिया 'सच्ची गीता' में| फिर जहाँ 'सच्ची गीता' में पॉइंट ख़त्म हुआ, उसके तुरंत बाद में, ओरिजिनल मुरली में एकदम साफ़ बताया 'बेगर का मतलब क्या है', 'सभी कुछ "शरीर सहित" खत्म होना है', 'सभी कुछ छोड़ना है', 'फिर प्रिंस बनना है', 'हम घर जावें', 'फिर नई दुनिया में प्रिंस बनकर आवेंगे'...'हम फिर नई दुनिया में जाते है', 'ऐसा दूसरा कोई सत्संग नहीं है जिसमें समझें कि हम नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हैं', 'तुम्हारी बुद्धि में है बाबा हमको पहले बेगर बनाय फिर प्रिंस बनाते है'..वगैरा वगैरा| कितना साफ़ साफ़ बताया हुआ है|

अरे मेरे PBKs भाइयों, हम जानते है आप लोग यह पढ़ने के बाद भी क्या सोच रहे होंगे| हम खुद बड़े भगत थे दीक्षित जी के तो आपकी भावनाओं को समझ सकते है| आप सोच रहे होंगे "बेगर टु प्रिंस तो शूटिंग पीरियड की बात है, जो दीक्षित जी 76 में प्रिंस बनते उसकी बात है| इसीको सीढ़ी के चित्र में भी बेगर भारत को दिखाया" वगैरा| आप यह भी पूछोगे फिर से कि 'नर से नारायण' का मतलब क्या है?

इसका जवाब 'सच्ची गीता' पॉइंट्स में भी मिल जाएगा, बाकी ढेर सारी मुरलियों में तो अच्छे से समझाया हुआ है| पहली बात, बाबा हमें रजाई का वर्सा देने आये है, राजा बनाते है रजाई स्थापन करके| दूसरी बात, कोई भी युग कि शुरुवात के लिए 'रजाई' या 'डायनेस्टी' चाइए| तो जब 'कृष्ण' बड़ा होके 'नारायण ' बनता है उस समय से ही 'सतयुग' की शुरुआत कहेंगे| संवत १.१.1| इसीलिए यह भी बताया 'कृष्ण की डायनेस्टी' नहीं कहेंगे| 'नारायण की डायनेस्टी' कहेंगे|

इसीलिए गायन है 'नर से नारायण'| नारायण बनाने वाला तो बाबा ही है| दूसरी बात, बाबा आत्माओं को पढ़ाते है, शरीर को नहीं| बाबा नहीं पढ़ाते तो क्या ब्रह्मा अगले जन्म में 'कृष्ण' जैसे पावरफुल जन्म ले सकता क्या? जो नारायण बने| तो नारायण किसने बनाया? किसको बनाया? आत्मा को बनाया| सिर्फ सतयुग या सूर्यवंशी ही नहीं, बाबा तो 'त्रेता' की चंद्रवंशी डायनेस्टी की भी तो स्थापन करते है संगमयुग में| वह क्या डायरेक्ट हुआ इसी शरीर से? हम डायरेक्ट इसी शरीर से चंद्रवंशी बनेंगे क्या? आत्मा की बात है|
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अगला पॉइंट, 'सच्ची गीता' में पु.141 में, टॉपिक का नाम है 'संगमयुगी बालकृष्ण' :
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ओरिजिनल मुरली देखो,

जो नीला रंग से अंडरलाइन किया है उतना ही सच्ची गीता में डाला है|
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इस तरह पॉइंट कौन बना सकता है इनके अलावा? ध्यान से देखो, "भगवानुवाच....भूल से...भगवानुवाच कृष्ण समझ लिया है; क्योंकि कृष्ण हुआ नेक्स्ट टु गॉड"|

इस टॉपिक के नाम के हिसाब से यह साबित करना चाहते है कि शत्राकारों ने 'संगमयुगी कृष्ण (बाबा दीक्षित जी)' का नाम डाल दिया शास्त्रों में| इनके हिसाब से बाबा दीक्षित में ही भगवान् आते है और शास्त्रों में सब संगमयुग की बातें लिखी हुई है| जो एकदम गलत धारणा है इनकी|

ध्यान से देखना, इस बात को साबित करने के लिए कैसे बीच-बीच में "..." ड़ालके अपना काम निकाला है| उस "..." में एक फुल स्टॉप भी है| मतलब दो वाक्यों को जोड़ दिया, जो ओरिजिनल मुरली में अलग अलग है| पॉइंट बनाना कोई इनसे सीखे!

जहाँ इन्होने "सच्ची गीता" में ख़त्म किया, उसके तुरंत बाद ओरिजिनल मुरली में आया "बाप के बाद में बड़ा है श्रीकृष्ण| स्वर्ग जो बाप स्थापन करते हैं उनमें नम्बरवन यह है ना"| इसको क्यों नहीं लिखा 'सच्ची गीता' में?

बाबा दीक्षित जी हमेशा 'क्लैरिफिकेशन क्लास्सेस' में 'यह किसको बोला' 'वह किसको बोला' 'इनको माना उनको माना किसको बोला' 'दूर क्यों कर दिया वह बोलके' वगैरा चीजों में बहुत खेलते है| वह भी सिर्फ चुन-चुन के| बाकि लाखों बार 'यह' 'वह' जब इनके खिलाफ आता तो कुछ नहीं बोलते| यहाँ भी आया ना "नम्बरवन यह है ना", तो दीक्षित जी से पूछो "यह" किसको बोला? क्या उस समय जब मुरली चली थी वहां "संगमयुगी कृष्ण (बाबा दीक्षित)" बैठा था क्या? लिखके देता हूँ, वह जवाब देंगे "इमर्ज कराके बोला", प्रयास करके देखो|

अगला पॉइंट, 'सच्ची गीता' में पु.141 में ही, टॉपिक का नाम है 'संगमयुगी बालकृष्ण' :
(साथ में ओरिजिनल मुरली भी इसी चित्र में दिखाया है)
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'एडवांस नॉलेज' का यह एक सबसे बड़ा गपोड़ा है कि "श्याम-सुन्दर एक ही व्यक्ति माना एक ही शरीर से जो (बाबा दीक्षित) श्याम से सुन्दर, अपवित्र से पवित्र बनते है उनके लिए है, क्योंकि यह एक ही नाम है"|

इसके ऊपर एक अलग से पोस्ट बनाएंगे जिसमें सिर्फ मुख्य-मुख्य मुरली पॉइंट्स ही दिखाएंगे 10-12| उसमें दिखाएँगे कि, श्याम-सुन्दर २ अलग-अलग (ब्रह्मा और कृष्ण) व्यक्तित्व की बात है| सुन्दर से श्याम बनने में 5000 साल लगते है| और यह आत्मा की बात है, आत्मा श्याम से सुन्दर बनती है तो शरीर भी वैसे ही मिलता है |

फिलहाल, इस 'सच्ची गीता' पॉइंट में कितना बड़ा गड़बड़ किया वह देखते है ओरिजिनल मुरली में ,

(जितना नीला रंग से अंडरलाइन किया हुआ है सिर्फ वही 'सच्ची गीता' में डाला है| और जो पीला रंग से हाईलाइट किया हुआ है, उसको 'सच्ची गीता' में पॉइंट के बीच-बीच में से उड़ाया है|)

कुछ समझाने की जरुरत नहीं है इसमें| फिर भी शार्ट में,
1. इनका सच्ची गीता पॉइंट शुरू होने से पहले ओरिजिनल मुरली में 'पवित्र प्रकृति' और 'अपवित्र प्रकृति' कहाँ होती है यह साफ़ बताया|

2. 'सच्ची गीता' में जहाँ पहला "..." आता है उस जगह ओरिजिनल मुरली में एकदम साफ़ बताया "सतयुग में है सुन्दर| कलयुग में श्याम"|इसको उड़ा दिया 'सच्ची गीता' में| बताओ, एकदम साफ़ जो बात है असल में, उसीको छिपाके साबित करना चाहते कि "श्याम-सुन्दर" एक ही आदमी का नाम है|

3. 'सच्ची गीता' में जो दूसरा "..." आया, इसमें तो हद ही कर दी| ध्यान से पढ़ो, उस जगह एकदम क्लियर बताया ओरिजिनल मुरली में,
"कृष्ण तो गर्भ से निकला और नाम मिला। नाम तो ज़रूर चाहिए ना। तो कहेंगे कृष्ण की आत्मा सुन्दर थी फिर श्याम बनी; इसलिए श्याम-सुन्दर कहा जाता है"।
बताओ भाई, इतना साफ़ बताया कि शायद कोई अँधा भी पढ़ ले| बाकि अनपढ़ हो तो बात अलग है| सीधा बताया, 'कृष्ण गर्भ से निकलता है उस समय उसकी आत्मा सुन्दर, फिर श्याम बनी(कलयुग) में; इसीलिए कहा जाता श्याम सुन्दर'|

4. जहाँ 'सच्ची गीता' में पॉइंट ख़त्म हुआ, उसके तुरंत बाद ओरिजिनल मुरली में 'नई दुनिया नए घर में जाना है,' 'नई दुनिया के मालिक..' वगैरा की बातें हो रही है|
इतना सब काट-पीट करके साबित करोगे, एक ही शरीर से श्याम-सुन्दर बनेंगे?


अगला पॉइंट, 'सच्ची गीता' में पु.142 में, टॉपिक का नाम 'संगमयुगी राधा-कृष्ण के फुटकर पॉइंट्स':

इसमें भी गड़बड़ हुआ है| लेकिन ओरिजिनल मुरली में काफी इंटरेस्टिंग बात आई है| 'कृष्ण' का नाम गीता में कैसे लिखा? मतलब शास्त्र लिखनेवालों को यही नाम क्यों मिला? एक बात तो साफ़ है कि, जब सतयुग में सारा ज्ञान भूल जाता है तो द्वापर में इमर्ज होने का सवाल ही नहीं है| मुरली में भी बताया हुआ है कि व्यास को संगम की कोई बात याद नहीं रहेगी द्वापर में शास्त्र लिखते वक़्त|

इसमें देखो, viewtopic.php?f=37&t=2723
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प्रजापिता 'सच्ची गीता' में V/S ओरिजिनल मुरली में:
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देखा, क्या मस्त पॉइंट बनाया है| इससे पहले वाले पॉइंट में जो हम डिसकस कर रहे थे, वही पॉइंट आया| "वही कपडे आदि कुछ नहीं बदला, वही साधारण रूप, वही पहिरवाइस, वही साधारण रूप", यह जो बताया 'दादा लेखराज' के लिए, इसका मतलब जैसे ऑफीसर्स, प्राइम मिनिस्टर, प्रेजिडेंट आदि पोजीशन मिलते ही उनका ड्रेस वगैरा सब बदल जाता है, लेकिन यह (दादा लेखराज) इतना साधारण है, कोई अहंकार नहीं , भलें उसमें भगवान् आया हुआ है तो भी जैसे पहले लौकिक में पहनता था वही ड्रेस, कुछ नहीं बदला| ऐसे आया ओरिजिनल मुरली में| वह भी एकदम क्लियर|

'सच्ची गीता' में साबित कर रहे कि जैसे "सेवकराम' का पहनावा था वैसे ही अभी "बाबा दीक्षित" का है, कुछ नहीं बदला| वहां ब्रैकेट में भी ऊपर से डाल दिया "शरीर रूपी मिटटी के सिवाय"| मतलब आदमी दूसरा जन्म लेके आगया, लेकिन ड्रेस वैसे ही पहनता है जैसे पिछले जन्म में था, इसका इशारा बाबा ने मुरली में '1968' में ही दे दिया इनके लिए? क्या ज्ञान है भाई! अद्भुत! पहले जाके यह तो पता करो सेवकराम क्या पहनता था? वरना पूरा फस जाओगे| फिर वह बीच में क्यों उड़ा दिया सच्ची गीता में "..." लगाके?

इसीलिए उड़ाया क्योंकि 'उसी 1-2 लाइन में ही तो पता चलता है यह कोई दीक्षित बाबा के अगले जन्म की बात नहीं है| उलटा दादा लेखराज के बारे में बताया जा रहा जैसे ऊपर समझाया| वह इतना साधारण और निरहंकारी है कि ब्रह्मा बनने के बाद भी कोई बदलाव नहीं कपडे आदि में'| इनका सच्ची होता में टॉपिक का नाम भी देखो|
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प्रजापिता 'सच्ची गीता' में V/S ओरिजिनल मुरली में:
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प्रजापिता 'सच्ची गीता' में V/S ओरिजिनल मुरली में:

POINT NO.9
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इतना अज्ञानी कैसे हो सकता है कोई? कभी कभी लगता कि यह सब जो हो रहा है यह सपना ही होगा| ऐसे कैसे हो सकता है?

अगला पॉइंट 'सच्ची गीता' में पु.61 में, टॉपिक का नाम 'ब्रह्मा बड़ी माँ है"|
मैं पूछता हूँ किसने बोला 'ब्रह्मा' माँ नहीं है? लेकिन 'प्रजापिता' अलग है जो बाप है और 'ब्रह्मा' अलग है जो 'माँ' है यह तो बड़ा बच्चा बुद्धि वाला ज्ञान है| बड़ी माँ तो ब्रह्मा उर्फ़ प्रजापिता ही है|

चलो अभी पॉइंट देखते है ,
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यह क्या था? इसका ओरिजिनल मुरली से टैली करके नहीं दिखा सकता मैं| क्यों?
क्योंकि? ऐसा कभी आया ही नहीं| आधा-अधूरा पढ़के ठीक से पॉइंट नोट भी नहीं कर पाते, फिर भगवान् बनके बैठे है बड़ा|

एडवांस में तो क्या क्या बताते, ब्रह्मा तो छोडो , प्रजापिता माना बाबा दीक्षित को भी ज्ञान में जन्म देने वाली 'गीता माता' या कहो उनकी जगदम्बा थी| इतना बच्चा बुद्धि हो महाराज| क्या कहते रहते दीक्षित जी, "ब्राह्मण बने बगैर प्रजापिता था क्या"? फिर जवाब में बताते की गीता माता ने उसको सुनाया साक्षात्कार के बारे में तो यह ब्राह्मण बन गया फिर प्रजापिता, मतलब फिर इसने अपनी माँ को जन्म दिया वापस| बाप रे बाप|

वापस उसमें आओ, "ब्राह्मण बने बगैर प्रजापिता था क्या"?
हमारा जवाब है, हांजी बिलकुल था|
देखो मुरली से प्रूफ:

पहला:
21.3.68. प्रा. पु.1 मध्यान्त में,
"इस समय तुम प्रजापिता ब्रह्मा के एडाप्ट किये हुए ब्राह्मण। मुखवंशावली। इनका अर्थ भी कोई समझते नहीं है। तुम किसको एडाप्ट करते हो तो वह तुम्हारा बच्चा थोड़े ही है। फिर नाम बदलते है। तुम भी हो मुखवंशावली। तुम (तुम्हें) समझ मिली है बरोबर हम प्रजापिता ब्रह्मा के मुखवंशावली हैं। ब्रह्मा को मुखवंशावली नहीं कहेंगे। ब्रह्मा को फिर रथ कहा जाता है। भागीरथ। भागीरथ कैसे होता है..."

दूसरा:
8.10.65. प्रा. पु.1 आदि में,

स्वयं ब्रह्मा को मुखवंशावली नहीं कहेंगे| ब्राह्मण ब्रह्मा मुखवंशावली हैं| ब्रह्मा शिव की मुखवंशावली नहीं है| शिवबाबा तो आकर इनमें प्रवेश करते हैं, अपना बनाते हैं| यह भी क्रिएशन है| पहले ब्रह्मा को रचते हैं| विष्णु को पहले नहीं रचते| गाया भी जाता है ब्रह्मा, विष्णु और शंकर| विष्णु, शंकर और ब्रह्मा नहीं गाया जाता| पहले ब्रह्मा को रचते हैं| ... (बीच में समझाया कि ब्रह्मा को मात-पिता कहा जाता है)... तभी पूछते हैं मम्मा को मम्मा हैं? कहेंगे, हाँ| ब्रह्मा मम्मा की भी मम्मा है| ब्रह्मा की कोई मम्मा नहीं| यह मम्मा (ब्रह्मा) फीमेल न होने के कारण माता रूप में मम्मा चाहिए| तो ब्रह्मा की पुत्री सरस्वती| ब्रह्मा खुद मम्मा होते हुए, सरस्वती को मम्मा कहते हैं|


और क्या बोलते दीक्षित जी "मुरली में पूछा ब्रह्मा का बाप कौन? बताओ", ऐसे पूछते फिर खुद ही बताते "प्रजापिता"| कुछ भी| मुरली में सवाल पूछा 'ब्रह्मा का बाप कौन' ?, बस उतने में ही खुश होके आगे पढ़ा ही नहीं इन्होने| अरे! जवाब भी तो दिया कि "शिवबाबा" है| 'ब्रह्मा' की न कोई मम्मा है न ही कोई बाप है साकार में| ब्रह्मा शिव की भी मुखवंशावली नहीं है|

वैसे ही हर बात में पूरा अनर्थ| मुरली में आया 'शिवबाबा को पुरुषार्थी कहेंगे'?
बस उसका जवाब पढ़ा ही नहीं, कहते फिरें शिवबाबा पुरुषार्थी है, साकार है| बस भी करो| 50 साल होगये ज्ञान में आपको|

तो ऊपर वाला 'सच्ची गीता' खंड का पॉइंट ही गलत है| ब्रह्मा अडॉप्टेड हो ही नहीं सकता| वहां आया होगा "ब्राह्मण है अडॉप्टेड"|

तभी तो मुरली पढ़ने के बाद भी "फेल" होने वाला राम बनने निकले| विनाशकारी शंकर बने| मुरली पढ़ा ही नहीं ठीक से|
लेकिन अभी भी टाइम है|
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एक मज़े की बात बताएँगे| हम PBKs भी ना इतने अंधे है, बाबा की भाषा में 'पतित' है कि जिसकी कोई हद नहीं|

अब देखो, एक तो 'सच्ची गीता' में गलत पॉइंट्स डालते है| फिर उन गलतियों को पकड़ने के लिए प्रूफ भी खुद ही देते है| मतलब इसमें जाओ, http://www.adhyatmik-vidyalaya.com/Lite ... uage=Hindi

इसमें थोड़ा सा नीचे जाओ, हर एक किताब के साथ "Murli proof" का लिंक भी दिया हुआ है| जैसे 'सच्ची गीता खंड 1' में "Murli proof" इस लिंक पे क्लिक करो, फिर बाईं ओर कोई भी 'टॉपिक' में जाओ और देख लो प्रूफ्स| इनका कॉन्फिडेंस देखो, इनको लगता कि 'सच्ची गीता' में सब सही सही पॉइंट्स है एकदम, जो इनके काम आएं|
क्या बाबा दीक्षित जी! यह तो सच में कुछ ज्यादा होगया| इतना अंधकार!

लेकिन उसमें स्कैन मुरली है शायद ज्यादातर| तो वेरीफाई करने लिए डाउनलोड करो एक-एक प्रूफ, फिर थोड़ा क्लियर दिखेगा| उनमें 2 किताब तो कर लेना चाइए-
1. सच्ची गीता खंड 1- http://www.adhyatmik-vidyalaya.com/sacc ... khand.aspx
2. सच्ची गीता पॉकेट- http://www.adhyatmik-vidyalaya.com/sacc ... ocket.aspx

"यह ब्रह्मा है अडॉप्टेड| प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण"|
कल वाला जो पॉइंट था, उसमें गलत बता दिया था| इसका मतलब, शिव ने अडॉप्ट किया ब्रह्मा को| फिर उसी प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण अडॉप्ट होते| बाकि उसको मुख से कोई ज्ञान नहीं सुनाता तो मुखवंशावली नहीं कहेंगे|

ऐसे नहीं कि ब्रह्मा, प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा अडॉप्टेड ब्राह्मण| अरे, मतलब ब्रह्मा को भी कोई दूसरा आके ब्राह्मण बनाएगा? हिंदी सीख लो पहले, पढ़ना भी नहीं आता ठीक से|

कुछ और अनुभव सुनाते है, 'एडवांस ज्ञान' छोड़ने के बाद जो ख्याल आरहे है-
1. जब हम एडवांस में थे सोचते कि माया पीछे पड़ी है, गलती करने से 100 गुणा दंड पड़ेगा वगैरा| अभी उस पर विचार करें तो हंसी नहीं रुकती| कौनसी माया? हम तो युद्ध के मैदान में ही नहीं थे| माया के ही गोद में थे| उलटा शिवबाबा से ही लड़ रहे थे| कौनसा दंड? उलटा अच्छा ही हुआ, दीक्षित जी भगवान् नहीं निकले| नहीं तो 100 गुणा दंड पड़ने से अब तक शायद मर भी गए होते| शायद इसीलिए 'शिव' गुप्त है, हम मर ही जायेंगे शायद, इतना जो पाप करते है| दीक्षित जी तो नकली निकलें अच्छा हुआ|

2. ब्रह्मा भोजन का क्या? ब्रह्मा कहाँ है? हम बाहर नहीं खाते थे, घरवालों से भी लड़ाई, उनको पतित समझते थे| असल में, मुझे लगता है, हमसे ज्यादा सात्विक भोजन लौकिक वाले ही खाते थे| हम तो सीधा रावण की याद में खाना बना रहे है, खा रहे है, माहौल भी पूरा वही| आज भी कौन ब्रह्मा भोजन खा रहा है? BKs में तो स्नैक्स, स्वीट्स के लिए भी उनके ही भाई लोगों के दुकान है, इतना सीरियस है| लेकिन BKs का ब्रह्मा भी तो नकली निकला| तो ब्रह्मा का पता नहीं अभी कहाँ है| शिव की याद में खाना बनाके खाना ही असली ब्रह्मा भोजन होगा| नहीं तो पूरा नुक्सान होने वाला है|

3. हम खुद को कितना होशियार समझते थे, पूरा जोश में रहते थे| अपने दोस्तों को, सम्बन्धियों को बच्चा बुद्धि समझते थे| आज याद करता हूँ तो, वह लोग कितना सही थे, बुद्धू तो हम थे| मेरे दोस्तों ने अच्छा सुझाव ही दिया था जितना उनको समझ में आया था| उनका विचार सही निकला दीक्षित जी के बारे में| घरवालों ने मुझे बोला था भगवान् मनुष्य कैसे होगा? निराकार है वह तो | मैंने ज़बरदस्ती उनको दीक्षित जी का एक वीडियो, फोटो दिखाया, फिर बोला कि ज्ञान में भलें नहीं चलो, इनका यह चेहरा याद रख लेना और याद करते रहना बार बार बस| इससे मेरा टेंशन भी ख़त्म हो जायेगा तुम लोगों को लेके| कितना funny थे हम| BKs से कितना लड़ते थे| आज सोचता हूँ तो BKs काफी पॉइंट्स में सही थे| प्रजापिता को सूक्ष्मवतन में भक्तिमार्ग में दिखाते है, कुखवंशावली ब्राह्मण लौकिक ब्राह्मणों को कहा गया वगैरा|

चलो फिर भी कुछ न कुछ ज्ञान की बातें सीखते रहें न एडवांस में, नुक्सान नहीं हुआ| अनुभव भी लिया ना कि कैसे दुनिया गिरती है| जब सोचा कि यह सब हुआ कैसे? तो समझ में आया कि पापों का बोझ था| आत्मा पतित थी| अभी तो सेकंड में बातें समझ में आती है एडवांस नॉलेज में कितना घोटाला है| अभी भी जो PBKs फसे हुए हैं, वह हमें 'एंटी' या कोई दूसरा पार्टी वाला समझके नफरत कर रहे होंगे| यह सब आत्मा का पार्ट है| कितना वंडरफुल ड्रामा बना हुआ है!
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प्रजापिता 'सच्ची गीता' में V/S ओरिजिनल मुरली में:

POINT NO.11
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3. अभी पूछो तो कहेंगे, अरे वह टाइटलधारी प्रजापिता भी है| तो उसको उड़ाया क्यों? पूरा पॉइंट डाल देते, ब्रैकेट में लिख देते 'टाइटलधारी'| हमे तो लगता कि पहले भी किसीने पकड़ा होगा ऐसे पॉइंट्स में तभी 'टाइटलधारी' वाला ज्ञान लाया होगा बाद में| 'सच्ची गीता' में एक भी जगह 'टाइटलधारी' शब्द नहीं है| शास्त्रकार भी ऐसे ही होते हैं| समयानुसार डालते जाते चीजों को शास्त्रों में अपने फायदे के लिए| आप तो खुद व्यास कहते हो अपने आपको द्वापर में शास्त्र बनाने वाला| वैसे संस्कार भी काफी मिलते जुलते हैं|
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अब जैसे बताया कि PBKs के वेबसाइट में ही प्रूफ दिए गए है| उसमें 'प्रजापिता' वाला पॉइंट कुछा इस तरह मिला,
इसमें भी बीच में 'फुल स्टॉप' है, 'प्रजापिता' के बाद|
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अगला पॉइंट, सच्चित गीते में, पु.62 में, टॉपिक 'ब्रह्मा बड़ी माँ है':
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इसमें 'सच्ची गीता' में गड़बड़ किया ही है| लेकिन इसमें कुछ ज्ञान की बात देखते है, अभी सच्ची गीता छोडो|
इस पॉइंट में आखरी 2 लाइन में ब्रह्मा बोल रहा है '(शिव) तुम्हारे लिए तो मात-पिता हैं| हमारे लिए तो पति भी हुआ तो पिता भी हुआ|..."

जैसे कल एक पॉइंट में देखा था| ब्रह्मा को मुखवंशावली नहीं कहेंगे| ब्रह्मा की कोई मम्मा नहीं है| यहाँ भी वही बात बताया, 'मेरे लिए वह सिर्फ पिता (आत्मिक रूप से) और पति (साकार रूप में)'| ब्रह्मा के लिए 'शिव' भी माता नहीं है|

साकार रूप में तो ब्रह्मा खुद माँ है हमारे लिए, जो हम भाई-बहन हैं| 'मात-पिता' शिव के लिए भी कहा गया ब्रह्मा द्वारा बनते है वह| फिर ब्रह्मा के लिए भी 'मात-पिता' कहा गया है| जो अडॉप्ट करते है हमें|

बाकि आत्मिक रूप में, शिव, ब्रह्मा के लिए भी 'पिता' है जैसे हमारे लिए भी है| तब हम उन दोनों को 'बाप-दादा' कहेंगे| मात-पिता तो साकार में हुए|
इसीलिए एक पॉइंट ऐसा भी है (अधूरा दिखाया यहाँ फिलहाल),
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अब खुद सोचो, दीक्षित जी ने हमें असली ज्ञान से कितना दूर ले गए है|
साफ़ साफ़ बताया बार बार मुरली में, ब्रह्मा की कोई मम्मी नहीं, ब्रह्मा मुखवंशावली नहीं|

दीक्षित जी कहते कि वह खुद 'प्रजापिता' है और इस 'प्रजापिता' को भी किसी माँ ने मुखवंशावली ब्राह्मण बनाया यज्ञ के आदि में|
कहते है ना, "ब्राह्मण बने बगैर प्रजापिता था क्या?", फिर कुछ कहानी सुनाते है यज्ञ के आदि में 'गीता माता' ने सुनने-सुनाने का फाउंडेशन डाला साक्षात्कार के बारे में सेवकराम को सुनाते हुए वगैरा|

अब ब्रह्मा मुखवंशावली नहीं है, यह तो ओरिजिनल मुरली में बार-बार साबित हुआ| इसका मतलब बाबा दीक्षित जी का 'एडवांस नॉलेज' का जो फाउंडेशन है 'यज्ञ के आदि वाली कहानी', वह भी झूठा साबित हुआ| जब फाउंडेशन ही ख़त्म तो बाकि ज्ञान भी पूरा A -Z सब झूठा|
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Re: PBKs - 'Sacchi Gita Khand 1' EXPOSED [Hindi]

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प्रजापिता 'सच्ची गीता' में V/S ओरिजिनल मुरली में:
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अंधकार की भी हद होती होगी क्या?

POINT NO. 13:
'सच्ची गीता' में, टॉपिक का नाम "जगतपिता-जगदम्बा" पु.72 में,
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ओरिजिनल मुरली में,
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अब वेरीफाई करो| 'सच्ची गीता' में ओरिजिनल मुरली को काट-पीट करके, बीच-बीच में ब्रैकेट में टिपण्णी करके यह साबित करना चाहते कि 'ब्रह्मा-सरस्वती' कोई युगल नहीं है, असली मात-पिता तो 'दीक्षित बाबा' और 'कमला देवी दीक्षित' है|

इससे बड़ा मज़ाक किसीने नहीं सूना होगा| ध्यान से सुनो, भाई, पहली बात कि 'ब्रह्मा-सरस्वती' कोई युगल नहीं है, यह बात तो हर मुरली में आया है| इस पॉइंट में भी आया है| इसको साबित करने में लगे हुए हो? इसको क्या साबित करना है| सरस्वती तो ब्रह्मा की मुखवंशावली बेटी है| विकारी बुद्धि होने से कुछ भी समझ लेते हो| व्यास ने ही शास्त्रों में भी लिखा होगा 'ब्रह्मा ने बेटी से शादी कर ली', कितनी ग्लानि कर दी है|

दुसरा मज़ाक, मात-पिता जो है, वह 'शिव और ब्रह्मा' होगये| साकार में नहीं है दोनों, जैसे आप साबित करने जा रहे हो| कुछ भी!
टॉपिक का नाम भी देखो 'जगतपिता-जगदम्बा' दिया है| इनको लगता कि यह दोनों पति-पत्नी के रूप में साकार में चाइए| कितनी विकारी बुद्धि है| कहाँ शिवबाबा 'भाई-भाई' बना रहे हैं, कहाँ आप दीक्षित बाबा 'युगल' बना रहे हो|

कितनी बार बताया 'जगदम्बा तो बेटी है मुखवंशावली'| हिंदी नहीं आती क्या?

अगला पॉइंट में और क्लियर करेंगे, जो काफी इंटरेस्टिंग है|
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प्रजापिता 'सच्ची गीता' में V/S ओरिजिनल मुरली में:
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(थोड़ा लम्बा लिख दिया, लेकिन मज़ा आएगा)

हम PBKs कितना गर्व से कहते फिरते 'हम मुखवंशावली ब्राह्मण' 'सच्चे मुखवंशावली' है| वास्तव में, उसका अर्थ तक नहीं पता, बनना तो दूर की बात|
मुरली में बताया शंकर के बच्चे 'बिच्छू-टिंडन' पैदा होते है, मतलब द्वापर-कलयुग का फाउंडर बता दिया शंकर को|


'सच्ची गीता' में, पु.62 में, टॉपिक 'ब्रह्मा बड़ी माँ है':
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ओरिजिनल मुरली में,
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सबसे पहली बात, इस 'सच्ची गीता' पॉइंट में, ब्रह्मा को माँ साबित करने जा रहे है|भाई, वह माँ तो है ही, साबित क्या करना है? साथ में प्रजापिता को बाप, इनके हिसाब से तो दोनों अलग-अलग हैं ना| यहाँ अभी मात-पिता इनके हिसाब से 'ब्रह्मा' और 'प्रजापिता', जबकि दोनों माना, मात-पिता तो ब्रह्मा ही है| 'प्रजापिता' भी वही है|

"सच्ची गीता" में वह "..." डालके क्यों उड़ा दिया? ओरिजिनल मुरली में जो हाईलाइट किया है, उसमें क्लियर पूछा "क्या प्रजापिता ब्रह्मा होने से भी माता चाइए"?
मतलब अलग से कोई माँ नहीं है| 'प्रजापिता' ही माँ है| और दीक्षित जी कहेंगे वह पिता है, माता तो ब्रह्मा है| मतलब इससे बड़ा अज्ञानी कोई नहीं है| वह भी 50 साल ज्ञान में होगये, उम्र से तो 80 साल के होने वाले है|

सच में, शंकर का पार्ट बड़ा वंडरफुल है! किसीने नहीं सोचा होगा दुनिया में, या हममें से कि ऐसा भी होगा कोई| किसीको सुनाओ तो विश्वास नहीं कर सकेंगे| कहेंगे, मज़ाक कर रहा है क्या, ऐसा होता है क्या कोई?

ओरिजिनल मुरली में आखरी लाइन भी पढ़ लो, जिसको 'सच्ची गीता' में दिखाया नहीं| 'ब्रह्मा की कोई पत्नी नहीं है'| मतलब ब्रह्मा ही बाप भी है , तभी तो पत्नी का सवाल आता है| और बाप होते हुए उसकी कोई पत्नी, युगल नहीं है| कारण बता दिया, जो समझने लायक बात है|

क्योंकि, यहाँ मुखवंशावली बच्चे हैं| कितना सिंपल समझा दिया बाबा ने| फिर से पढ़ो उसको, क्लियर बता दिया 'प्रजापिता' के साथ 'प्रजापत्नी' की जरुरत नहीं है|
पत्नी तब चाइए जब कुखवंशावली बच्चे पैदा करना हो|

दूसरी मुरली में यह भी बताया, अपने को 'मुखवंशावली ब्राह्मण' बताना चाइए तब लोग समझेंगे| सिर्फ 'ब्रह्माकुमार -ब्रह्माकुमारी' कहने से उनको लगेगा, अच्छा 'ब्रह्मा-सरस्वती' युगल है| दूसरी मुरली में बताया, "समझते ही नहीं, कोई युगल इतने बच्चे कैसे पैदा कर सकते? समझते नहीं कि 'मुखवंशावली' पैदाइश है, ब्रह्मा सरस्वती कोई युगल नहीं है"|

लेकिन बाबा दीक्षित जी ने क्या किया? सब उलटा| खुद को प्रजापिता बना लिया धोखे से| ऊपर से बोला "प्रजापत्नी" भी चाइए| फिर तो कोई गिनती ही नहीं| गंगा (सविता बहन), यमुना (प्रेमकांता बहन), सरस्वती-बड़ी माँ (कमला देवी दीक्षित), छोटी माँ (वेदांती बहन), फिर 16108 भी चाइए| कहते है, जिन्होंने अपनी बेटी-बहन वगैरा अर्पण किया है वह अंदर ही अंदर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते है, गोप है वह| मतलब, इनके रिश्तेदार बन गए ना बेटी देके, तो गर्व महसूस करते है| इस तरह न जानें कितनों के साथ शारीरिक सम्बन्ध जोड़ दिया| खुद को फिर धोबी, हनुमान का पूंछ, बलराम का हल, बैल वगैरा कहते है| सारा दोष फिर कृष्ण वाली आत्मा पर लगा देते है आखिर में|

बाबा ने बोला, यह तो (असली) प्रजापिता के बच्चे हैं 16108| शास्त्रों में ग्लानि कर दी, रानियां बना दिया|

फेल होने का ही पुरुषार्थ किया दीक्षित जी ने| 'राम' अब फेल तो होगया| फिर भी रुकते ही नहीं| साथ में कितनों के लेके डूबने का प्लान है? इतना जो खाया पीया PBKs का, कितने तो मर भी गए| किसीके लिए कुछ किया तो नहीं दीक्षित जी ने, उलटा बर्बाद कर दिया| फिर भी PBKs कितना विश्वास करते बेचारे इन पर| जैसे बाबा ने बोला, कितना अगड़म बगड़म चलता है भक्तिमार्ग में, फिर भी लोग कितना विश्वास करते है|
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प्रजापिता 'सच्ची गीता' में V/S ओरिजिनल मुरली में:
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POINT NO. 15:

'सच्ची गीता' में, टॉपिक का नाम "ब्रह्मा बड़ी माँ है'" पु.61 में,
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pp_sg14.PNG
ओरिजिनल मुरली में,
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टॉपिक का नाम दिया 'ब्रह्मा बड़ी माँ है'| मतलब इस 'सच्ची गीता' पॉइंट से यह साबित करना चाहते कि 'ब्रह्मा' माँ का पार्ट है|
लेकिन ओरिजिनल मुरली में, 'सच्ची गीता' पॉइंट से एकदम पहले, वहां 'प्रजापिता' की बात चल रही है जिसको अडॉप्ट करके शिव अपनी स्त्री बनाते है|
उसको छिपाके, यह कहते ब्रह्मा का माँ का पार्ट, खुद दीक्षित बाबा का प्रजापिता बाप का पार्ट|
बेशरम दीक्षित बाबा!

जहाँ 'सच्ची गीता' में पॉइंट ख़त्म हुआ, उसके तुरंत बाद भी देखना ओरिजिनल मुरली में, "इनको माता भी कहा जाता है तो पिता भी"|
कितना साफ़ बताया, वही एक ही ब्रह्मा दोनों है| क्या अधूरा पॉइंट पॉइंट बनाते है लोग, फिर नाम देखो 'सच्ची गीता'| कोई एक पॉइंट तो सच डालो उसमें|

'सच्ची गीता' में टॉपिक के नाम से वहां डाले गए पॉइंट्स से कुछ लेना देना ही नहीं|
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न हिंदी आती है, न व्याकरण आता है| यह तो अनपढ़ है पूरा|

इतना अँधा कोई कैसे हो सकता है? ऐसे हो कैसे सकता है? इसीलिए शंकर का पार्ट इतना वंडरफुल कि कोई विश्वास नहीं कर सकते| सब कहेंगे, इतना अँधा कैसे हो सकता कोई, हम नहीं मानेंगे कि ऐसा भी कोई होगा| लेकिन, सच में है एक आदमी, शंकर जी| तभी तो बाबा ने कह दिया था पहले ही|

अब इस पॉइंट में देखो|
'सच्ची गीता' में, "शिव-शंकर व्यक्तित्व एक आत्मा दो" टॉपिक में, पु.68 में:
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सबसे पहले इस अंधे को थोड़ा हिंदी सिखा देते| भाई, 'कायम' का मतलब 'स्थिर'| जो कभी बदले नहीं| 'कायम' का मतलब 'हमेशा' नहीं|

जब बोला 'सदा कायम' तो इसमें 'सदा' तो पहले बोल दिया जिसका मतलब 'हमेशा', फिर से 'हमेशा' क्यों बोलेंगे| तो क्या, "सदा सदा तो एक शिवबाबा ही है", ऐसा क्लैरिफिकेशन दोगे?

इसी पॉइंट से अज्ञान फैला दिया, 'शिव अलग बाबा अलग', 'शिवबाबा का मतलब साकार'| और कहते 'खुद (बाबा दीक्षित) सदा इस सृष्टि पर है, शिव तो यहाँ नहीं रहता सदा, इसीलिए शिवबाबा का मतलब साकार होगया| देखो, ऐसे अभी अंधे होते है|

पहले "कायम" का अर्थ तो समझ लो| उसके बाद मुरली में 'किस भाव में बताया वह भी तो देखो'|
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देखो ओरिजिनल मुरली में, इनका 'सच्ची गीता' पॉइंट से एकदम पहले बताया, "ऐसे नहीं कि कृष्ण ही कायम है| ऐसे भी नहीं कृष्ण की आत्मा कायम है| क्योंकि, नाम- रूप तो बदल जाता है"| और 'सच्ची गीता' में भी जैसे दिखाया, यह भी तो देखो "बाकि तो सब को नीचे आना ही है", इससे भी समझ में आता कि हर मनुष्य आत्मा नीचे आती है| सबका नाम रूप भी बदलते जाता है जैसे कृष्ण के लिए बताया|

इसीलिए बताया "सदा कायम तो एक शिवबाबा ही है"| यहाँ तक बताया उसी पॉइंट में, "सदा कायम कोई भी चीज नहीं है इस सृष्टि में", मतलब सब चेंज होते जाते हैं, सतोप्रधान से तमोप्रधान, नाम रूप भी बदलते है मनुष्य आत्माओं के|

इसीलिए बताया "मेरा नाम कभी बदलता नहीं है| मेरी आत्मा का ही नाम शिव है"| इसीलिए सिर्फ उसका ही आत्मा का नाम है |

क्या अर्थ लगाया बाबा दीक्षित ने| सृष्टि पर सदा रहने की बात नहीं है महाराज|
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शंकर का पार्ट वंडरफुल कैसे है? और किस हद तक वंडरफुल है?

देखो, एक अनपढ़ आदमी, जिसको हिंदी में लिखे गए मुरली पढ़ना नहीं आता, व्याकरण नहीं जनता, उसको समझ में भी नहीं आता क्या लिखा है| ऊपर से समझ लो थोड़ा अँधा भी है, आधा अधूरा पढता है| अभी, ऐसा कोई आदमी, उन बातों का बेहद में अर्थ बताने लगे, जबकि हद में ही ठीक से नहीं समझा है| फिर वह आदमी इस बात में मशहूर भी हो जाता है, ढेर सारे फोल्लोवेर्स, विदेश के लोग भी फ़िदा हो जाते उस पर| बड़े बड़े BKs के धुरंदर भी डर जाये| अब इससे बड़ा वंडर कोई है? स्वर्ग जितना बड़ा वंडर है, उसीके सामान शंकर जी की बात भी वंडरफुल है, भले अज्ञानता में हो|

लेकिन इस अनुभव से हमें सारी दुनिया को स्टडी करके समझने का अवसर जरूर मिला|

अगला पॉइंट देखो, 'सच्ची गीता' में, "शिव-शंकर व्यक्तित्व एक आत्मा दो" टॉपिक में, पु.69 में:
shankar_sg2.PNG

इसमें, बाबा दीक्षित कह रहे कि देखो मुरली में बताया शिव-शंकर को मिलाना चाइए| इस आधा-अधूरा पॉइंट को पढ़के यही लगेगा|

अब 1-2 पॉइंट मुरलियों से दिखाएंगे,

3.5.68,प्रा.पु.2 मध्यान्त,
shankar_mu2.PNG

30.6.64,प्रा.पु.2 आदि
30.6.64.AM-page2-adi.PNG

समझ में आया ही होगा| यह तो कुछ नहीं है| शंकर पर ऐसे-ऐसे पॉइंट्स है, पढ़के समझ जाओगे रावण कौन है| वह सब बाद में दिखाने वाले है| शंकर पर, राम पर, व्यास पर, प्रजापिता, भगीरथ, मुक़र्रर रथ वगैरा, सब पर अलग अलग करके ढेर सारे पॉइंट्स दिखाएंगे| अभी तो शुरू ही कहा हुआ है| फिर, कैसे भयानक रीती से अर्थ का अनर्थ किया है बाबा दीक्षित ने वह भी बताएँगे| अज्ञान तो सागर है, कोई हद नहीं|
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