PBKs - 'Sacchi Gita Khand 1' EXPOSED [Hindi]

DEDICATED to Ex-PBKs.
For those who wish to narrate their experiences about the BKs and PBK 'Advanced Knowledge' and post views about their NEW beliefs.
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PBKs - 'Sacchi Gita Khand 1' EXPOSED [Hindi]

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माफ़ कीजिए पहले थोडा लेक्चर देना पड़ेगा| लेकिन यह बहुत जरुरी है, इसे जरूर पढ़ लेना एक बार|

पीबीकेज का ज्ञान को थोड़ा समझने की कोशिश करेंगे| इनका ज्ञान का सबसे बड़ा और पहला आधार है 'सच्ची गीता खंड 1'| इससे ही काफी लोगो की सेवा हुई जो पीबीकेज बने| आज भी सब पीबीकेज इसको बहुत मानते | उनके यहाँ तो इस किताब को कंठस्थ भी करना पड़ता था फिर क्लास में पॉइंट्स सुनाना पड़ता था, वह भी मुरली के तारीख के साथ |

इसके अलावा, सबसे मुख्य बात जो पीबीकेज में हमेशा से माना जाता था कि,
पहला "ब्रह्मम व्याख्यम जनार्धनम"| मतलब मुरली की बाते ही सर्वश्रेष्ठ है| दूसरा, "जो ब्रह्मा के मुख से निकली वाणी को नहीं मानते तो कुखवंशावली है, अगर मुखवंशावली ब्राह्मण है तो ब्रह्मा के मुख की वाणियों को मानना चाइए"| मतलब हम पीबीकेज हमेशा से और आज भी कहते कि हम "मुखवंशावली" ब्राह्मण और मुरली की हर बात को मानते है| बाकी जैसे बीकेज वगैरा कुखवंशावली है| यह कहते हुए 'सच्ची गीता खंड 1' के पॉइंट्स दिखाके सारी दुनिया को आजतक डराते रहे हम पीबीकेज| लेकिन क्या "सच्ची गीता खंड" के पॉइंट्स को वेरीफाई न करें ओरिजिनल मुरली से? किसीने नहीं किया| एक तो उसमें सब रिवाइज्ड पॉइंट थे पहले, जैसे 25.2.88, 5.9.78, अब इसका ओरिजिनल कहाँ से मिलेगा जो हम वेरीफाई करें| दूसरी बात, कागज़ की मुरली पढ़ना 3rd क्लास बता दिया था दीक्षित जी ने, मतलब मत पढ़ो वह सब|

अब बीकेज भी इतने अंधे रहे कि पता नहीं इन्होने 80-85 सालों से क्या पढाई पढ़ी है यज्ञ में रहकर, उन झूठी "सच्ची गीता खंड" पॉइंट्स से डरके, जो अच्छे अच्छे पॉइंट्स थे मुरली में, जो वास्तव में पीबीकेज के ही खिलाफ है सब, उनको काटना शुरू कर दिया| चलो, सच्ची गीता में भी सबसे पहले "प्रजापिता" पर पॉइंट्स उठाते है| "प्रजापिता अलग और ब्रह्मा अलग", यह तो पीबीकेज का एकदम आधार तथा सबसे अहम पॉइंट है , इधर से ही शंकर जी भगवान् बने| क्या सच में ब्रह्मा और प्रजापिता ब्रह्मा अलग अलग है?

इनका नया "सच्ची गीता खंड 1" डाउनलोड करो नीचे लिंक है , उसमें काफी जगह ओरिजिनल मुरली के तारीख डाले हैं, जब मुरलियाँ मिली तो|
http://www.PBKs.info/Website%20written% ... 1hindi.pdf

सच्ची गीता खंड 1 में, पु.40 में जाओ, टॉपिक का नाम है "ब्रह्मा और प्रजापिता ब्रह्मा आत्माएँ हैं जुदा जुदा"| इसमें दूसरा पॉइंट "प्रजापिता ब्रह्मा वह दोनों तो नामी-ग्रामी हैं| प्रजापिता ब्रह्मा अभी तुमको मिलता हैं"| (मु.19.3.68 पु.3 आदि)

इसका ओरिजिनल मुरली देखो नीचे वाले लिंक में, पु.3 आदि में, लाइन नंबर 2,3,4 पढ़ो|
http://PBKs.info/Streaming/MP3/bma/scan/559.pdf

???????? मैं भी इसी तरह हिल गया था जब पहली बार पढ़ा था|
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"प्रजापिता ब्रह्मा" के बाद फुल स्टॉप है ओरिजिनल मुरली में| "वह दोनों" किसको कहा गया है?
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पिछले पोस्ट को आगे बढ़ाते हुए-
ऐसा पॉइंट तो कोई अनपढ़ आदमी भी नहीं बनाएगा| इसको भ्रष्टाचार कहो या कुछ भी कहो कम है| वह पॉइंट कैसे बनाया? "प्रजापिता ब्रह्मा वह दोनों तो नामीग्रामी हैं"?
ओरिजिनल मुरली में पिछले वाख्य से एक शब्द उठाया "प्रजापिता ब्रह्मा" (उससे पहले क्या क्या लिखा है वह सब छोड़ दिया), फिर फुल स्टॉप को उड़ाया, फिर अगला वाख्य को उससे जोड़ा| फिर उसके बाद में जो आया वह भी छोड़ दिया| इस तरह दिखा दिया कि "प्रजापिता ब्रह्मा वह दोनों", मतलब "प्रजापिता" और "ब्रह्मा" को अलग अलग बना दिया| जब कि वह एक ही है|

ढेर सारी मुरलियों में यह बताया गया कि "प्रजापिता" यह एक टाइटल या उपाधि है जो सिर्फ ब्रह्मा को मिलता है, न कि शंकर व विष्णु को| उसमें से कुछ पॉइंट्स दिखाएंगे बाद में| अभी के लिए, "प्रजापिता नाम इसलिए सिर्फ ब्रह्मा का है| विष्णु को वा शंकर को प्रजापिता नहीं कहेंगे"| (18.3.63.प्रा.क्लास,पु.1 मध्य). यह मुरली (18.3.63) पूरा पढ़ो, कम से कम पहला पेज| इसको भी एडवांस में अलग ही तरह से बताते कि वह "टाइटलधारी ब्रह्मा है" और यह शंकर जी असली है| क्या ज्ञान है! मतलब प्रजापिता भी दो है इनके हिसाब से| मतलब लौकिक दुनिया में महात्मा गांधी को टाइटल मिला "राष्ट्र पिता" का, तो वह टाइटल धारी होगया? और असली कोई और है? वंडरफुल ज्ञान है| मुरली में बताया "बातें बनाना, झूठ बोलना हो तो जाओ व्यास के पास बैठो, सीखो"|

अब वापस उस पॉइंट को देखते है, ओरिजिनल मुरली में बताया "शास्त्रों में लिखा हुआ है प्रजापिता ब्रह्मा"| यह शास्त्रों की बात बताई| शास्त्रों में जो "दक्ष प्रजापति" की बात है| यज्ञ के शुरुआत में भी "दक्ष प्रजापति" ही लिखते थे पुराने चित्रों में| बाद में मुरली में "प्रजापिता" शब्द आया| ऐसे नहीं कि शास्त्रों में "प्रजापिता" और "ब्रह्मा" दोनों को मशहूर दिखाया हो| "वह दोनों तो नामीग्रामी हैं"- मतलब मुरली के हिसाब से "परमपिता" और "प्रजापिता ब्रह्मा" यह दोनों नामीग्रामी है| वह मुरली पढ़ो वापस पेज 3 के शुरुआत से| जहाँ से इन्होने यह पॉइंट शुरू किया है सच्ची गीता में, उससे एकदम पहले ओरिजिनल मुरली में यह सब बातें है| उसी तरह जहाँ इन्होने पॉइंट ख़त्म किया है सच्ची गीता में, उसके तुरंत बाद बताया, "इसीलिए तुम ब्रह्मा कुमार-कुमारियाँ कहलाती हो"| आगे फिर बताया "प्रजापिता से वर्सा नहीं मिलता है" (एडवांस नॉलेज के हिसाब से तो "प्रजापिता से ही वर्सा मिलता है और ब्रह्मा से नहीं", कुछ भी), फिर "कृष्ण " की भी बात आई| आगे पीछे की बातें सब छिपाया, फिर कैसे भी आधा अधूरा पॉइंट बनाके, यह साबित कर दिया कि "ब्रह्मा और प्रजापिता ब्रह्मा आत्माएँ हैं जुदा जुदा", जो सच्ची गीता में नाम दिया उस टॉपिक का| टॉपिक का नाम से वहां दिए गए कोई भी पॉइंट्स से कुछ लेना देना ही नहीं है वास्तव में| सारे पॉइंट्स इनके विपरीत हैं ओरिजिनल मुरली में|

क्या यह है एडवांस नॉलेज? किस बात में एडवांस? झूठ बोलने में तो सिर्फ एडवांस ही नहीं सबसे ऊपर हैं हम| क्या इस किताब को "सच्ची गीता" कहेंगे? और मुरली को ज्ञानामृत नहीं कहेंगे जैसे पीबीकेज़ में पढ़ाया जाता है?
क्या हम पीबीकेज़ सच में मुरली को मानने वाले मुखवंशावली हैं? क्या हम सच में मानते हैं कि "ब्रह्मं व्याख्यं जनार्धनम"? या सिर्फ ढोंग करते फिरते हैं?
क्या हम सच में पीबीकेज हैं, जो "प्रजापिता" को ही नहीं जानते?

और हमारे BKs इस एडवांस ज्ञान से डरते थे| वह भी कुमारिका, जगदीश भाई, रमेश भाई जैसे महारथी सब|
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अगला पॉइंट बहुत ही मज़ेदार है| "सच्ची गीता खंड " में, टॉपिक का नाम "प्रजापिता (साकार)", पेज नंबर 60 में 7 वा पॉइंट|

“यह भी समझते हैं प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर साकारी सृष्टि पर ही होगा। मूंझे हुए हैं। ... वह (साकार) है कर्मबंधन में। वह (अव्यक्त) है कर्मातीत। ...बाप बैठ अर्थ समझाते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा जो मनुष्य था वही फिर फरिश्ता बनता है”। (मु.30.1.68 पु.1 मध्यान्त, 2 आदि)

सच्ची गीता लिंक: http://www.PBKs.info/Website%20written% ... 1hindi.pdf

ओरिजिनल मुरली में, पेज 1 मध्य से पेज 2 मध्य तक पढ़ो| या पहला दुसरा पेज पूरा पढ़ो, फिर देखो सच्ची गीता खंड का जो पॉइंट है वह शुरू होने से पहले क्या क्या बताया ओरिजिनल मुरली में| जहाँ सच्ची गीता खंड में पॉइंट ख़त्म हुआ, उसके बाद ओरिजिनल मुरली में क्या बताया| सबसे इम्पोर्टेन्ट, सच्ची गीता में जो "..." आया है 2 बार, वहां क्या है ओरिजिनल मुरली में? फिर सच्ची गीता में जो ब्रैकेट में एक्स्ट्रा बातें लिखी है|

ओरिजिनल मुरली लिंक: http://PBKs.info/Streaming/MP3/bma/scan/494.pdf

सच्ची गीता से:
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ओरिजिनल मुरली से, जो हाईलाइट किया है सिर्फ वही सच्ची गीता में डाला है:
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20 लाइन बीच में छोड़के कोई पॉइंट बनाता है क्या? बीच में "..." का मतलब 1-2 लाइन होना चाइए ज्यादा से ज्यादा जो फिर भी ठीक है|
जो पहला "..."आया है, वहां बताया ओरिजिनल मुरली में, समझते है प्रजापिता सतयुग में होना चाइए|
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पिछले पोस्ट पर टिपण्णी:

सबसे पहले यह समझना है यह जो टॉपिक बनाया है 'सच्ची गीता' में उसका उद्देश्य क्या है? नाम दिया है "प्रजापिता (साकार)"| मतलब, यह साबित करना चाहते कि दीक्षित जी असली प्रजापिता है, क्यों की वह साकार में है और जो BKs का ब्रह्मा है वह अभी साकार में नहीं है, शरीर छोड़ चुके है| बस इतना ही यह बताना चाहते और उसके लिए इस तरह का झूठा पॉइंट बनाया है| इनके हिसाब से जो BKs अपना ब्रह्मा को सूक्ष्मवतन में समझते है, उसकी बात हो रही है मुरली में| अरे! जब मुरली चली थी, उस समय क्या BKs ब्रह्मा को सूक्ष्मवतन में समझते थे? हर बात को बेहद बेहद करके, असली ज्ञान को ही ख़त्म कर दिया PBKs ने|

अब असलियत में, किसकी बात हो रही है मुरली में? कौन समझते है प्रजापिता को सूक्ष्मवतन में?
1.ओरिजिनल मुरली पढोगे तो उसमें बताया, 'प्रजापिता को सतयुग में समझते है, फिर उन्होंने सूक्ष्मवतन में भी दिखाया'| शास्त्रों में दिखाया है ना 'दक्ष प्रजापति' कि कहानी जिसका कालक्रम सतयुगमें दिखाया| इसको बीच में से उड़ा दिया सच्ची गीता में| ध्यान से देखो| "..." डाल दिया| यह तो सबसे इम्पोर्टेन्ट पॉइंट है| यहाँ बात हो रही है भक्तिमार्ग की, शास्त्रों की| शास्त्रकार मूंझे हुए है, फिर बाबा ने समझाया कि वह तो यहाँ साकारी सृष्टि, मतलब स्थूलवतन में होना चाइए संगम के समय में| ऐसे नहीं कि ज़िंदा या मुर्दा होने की बात हो रही है जैसे "सच्ची गीता" में दिखाया जा रहा है| फिर उड़ाया क्योँ इसको? इसका भी क्लैरिफिकेशन दे देते?

2.आगे सच्ची गीता में लिखा है "वह (साकार) है कर्मबंधन में। वह (अव्यक्त) है कर्मातीत", ब्रैकेट इन्होने फिर कुछ ऐसा लिखा कि जिससे यह साबित हो, दीक्षित जी प्रजापिता है जो साकार में अभी ज़िंदा है| फिर "वह (अव्यक्त) है कर्मातीत" इसका क्या मतलब हुआ? जो ब्रह्मा भले ज़िंदा नहीं है, अव्यक्त है, वह कर्मातीत है? ऐसा तो कोई PBKs नहीं मानते, उल्टा दीक्षित जी को कर्मातीत समझते है| मतलब खुद ही खुद की बात को काट रहे है| ओरिजिनल मुरली में इसका मतलब यह है कि जो संगम में ब्रह्मा है वह कर्मबन्धन में है, जब सम्पूर्ण या कर्मातीत बनता है तो सूक्ष्मवतन वासी या अव्यक्त बनेगा जिसका साक्षाकार बाबा ने भी शुरू में ही कराया था बच्चों को सूक्ष्मवतन में| शरीर तो सबको छोड़ना पड़ेगा कर्मातीत बनने पर और वापस परधाम जाना ही है|, लेकिन यह अंत में होगा एकदम| अभी तक कोई कर्मातीत नहीं बना है, BKs का ब्रह्मा भी नकली है|

3.आगे फिर "सच्ची गीता" में "..."लगाके लिख दिया "...बाप बैठ अर्थ समझाते हैं"| यह तो सबसे बड़ा झोल है| यह तो बताओ कि क्या अर्थ बैठ समझाया ओरिजिनल मुरली में? 20 लाइन हैं उस बीच में| ऐसा भी कोई पॉइंट बनाता है? ओरिजिनल मुरली में पढ़ो, बाबा ने अच्छे से समझाया है, प्रजापिता देहधारी है वह सूक्ष्मवतन में नहीं हो सकता, फिर विष्णु और शंकर का भी बताया| यह भी बता दिया शंकर का तो कोई पार्ट है नहीं| यह भक्तिमार्ग के चित्र आदि एक्यूरेट नहीं है, त्रिमूर्ति का भी| जिसमें प्रजापिता को सूक्ष्मवतन में दिखाया| भक्तिमार्ग की बात हो रही है, उस हिसाब से बताया प्रजापिता सूक्ष्मवतन में नहीं है| यह सब बातें उड़ा दिया "सच्ची गीता" में| असली बात को छुपाके, अपना ही नया ज्ञान निकाला, नाम दे दिया "एडवांस नॉलेज" जिसका आधार बना "सच्ची गीता खंड"| "एडवांस" और "सच्चाई" का अर्थ ही बदल दिया| इसको 'एडवांस नॉलेज" कहेंगे? इसको "सच्ची गीता" कहेंगे?

4.फिर "सच्ची गीता" के उस पॉइंट में लास्ट में आया "प्रजापिता ब्रह्मा जो मनुष्य था वही फिर फरिश्ता बनता है”| इनको पता ही नहीं है फरिस्ता क्या होता? पता होता तो यह भी काट देते| फरिस्ता का मतलब यह नहीं कि "फर्स की दुनिया से कोई रिश्ता नहीं"| फरिश्ता माना अव्यक्त, बिना शरीर के, जिसे सूक्ष्मवतन भी बताया मुरली में, जो अंत का स्टेज है| यह लाइन इनके ही खिलाफ है, अब अज्ञानी होने के कारण अपने फेवर में डाला है|

5.जहाँ इन्होने "सच्ची गीता" में अपना पॉइंट ख़त्म किया है, ठीक उसके बाद ओरिजिनल मुरली में पढ़ो, सूक्ष्मवतन के बारे में अच्छे से समझाया| सूक्ष्मवतन के भक्तिमार्ग के चित्र न होते तो समझाना मुश्किल हो जाता, बाकि सूक्ष्मवतन की कोई बात नहीं है, आत्मा पवित्र बानी तो सीधा ऊपर जाना है, सूक्ष्मवतन में क्या काम| कितनी अच्छी बात है ओरिजिनल मुरली में, इसको नहीं डालेंगे यह सच्ची गीता में|

6.इनको ज्ञान से कोई मतलब ही नहीं है| सिर्फ अपने फायदे के लिए कैसे भी आधा अधूरा पॉइंट बना देना है बस| फिर खुद की ही बातों को काटते रहेंगे| जैसे कि "सच्ची गीता" में "सम्पूर्ण/अपूर्ण मम्मा-बाबा" टॉपिक में , पेज नंबर 25 में, 9 वा पॉइंट में लिखा है कि, प्रजापिता ब्रह्मा जब सम्पूर्ण बनता है, पाप कट जाते तो फरिश्ता, सूक्ष्मवतन वासी बन जाता है| यहाँ यह लोग दीक्षित जी की बात कर रहे है जिसको वह सम्पूर्ण समझते है और BKs वाला ब्रह्मा को अपूर्ण| फिर सूक्ष्मवतन वासी का क्या मतलब हुआ इस पॉइंट में? अच्छा "सूक्ष्म मनन चिंतन मंथन की स्टेज"? मतलब कुछ भी बोलेंगे मौके के हिसाब से|
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7.अब "सच्ची गीता" के "ब्रह्मा और प्रजापिता ब्रह्मा आत्माएँ हैं जुदा जुदा" टॉपिक में आओ पेज नंबर 41 में , वहां फिर पॉइंट डाला कि "सूक्ष्मवतन वासी को प्रजापिता नहीं कहेंगे...", यहाँ फिर साबित कर रहे कि जो ज़िंदा है वही प्रजापिता, ब्रह्मा जिसने शरीर छोड़ा वह प्रजापिता नहीं है| यहाँ फिर सूक्ष्मवतन का मतलब बदल दिया| मतलब जब जैसे चाइए वैसे अर्थ लगा लो, इस तरह के ही पॉइंट्स हर जगह मिलेंगे| यह है "एडवांस नॉलेज"|
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"सच्ची गीता खंड" के पॉइंट्स वेरीफाई करने के लिए कुछ तरीकें:

1. सबसे पहले नया "सच्ची गीता खंड 1" डाउनलोड करो| नया इसीलिए कि इसमें कुछ समय पहले रिवाइज्ड तारीखों को असली मुरली तारीख में बदली किया है|

लिंक: http://www.PBKs.info/Website%20written% ... 1hindi.pdf

2. कोई भी टॉपिक उठाओ| उसमें सबसे पहले वह पॉइंट्स उठाओ जिनका मुरली तारीख ओरिजिनल है, मतलब 69 से पहले के| फिर उसका ओरिजिनल मुरली मिलता है क्या देखो वेबसाइट में| लिंक नीचे दिया है,

http://www.adhyatmik-vidyalaya.com/MurliScript.aspx

उसमें नहीं मिला तो स्कैन में देखो जिसका लिंक : http://www.adhyatmik-vidyalaya.com/ScanMurli.aspx

3.अगर ओरिजिनल मुरली मिलती है तो सबसे पहले, उस टॉपिक का नाम पे ध्यान दो जो "सच्ची गीता" में दिया है| उससे समझ में आजायेगा कि वहां दिए गए पॉइंट्स से यह क्या साबित करना चाहते है| फिर जब उस पॉइंट को ओरिजिनल मुरली से वेरीफाई करोगे तो विचार करो कि उस टॉपिक का नाम से उस पॉइंट का कुछ लेना देना है? कोई भी टॉपिक का कोई भी पॉइंट से लेना देना ही नहीं है| खुद देख लो| लेकिन ओरिजिनल मुरली में यह समझ में आएगा| उदहारण के तौर पर, कुछ टॉपिक हैं "बाप के कर्तव्य" , "बाप के गुण" वगैरा में वास्तव में ओरिजिनल मुरली के हिसाब से वह "शिव" के लिए है, "सच्ची गीता में "दीक्षित जी" के लिए दिखाया जाता है| वैसे ही टॉपिक है "संगमयुगी लक्ष्मी नारायण"- कोई भी मुरली में संगमयुगी कृष्ण, संगमयुगी नारायण शब्द ही नहीं है| हमेशा सतयुग की ही बात होती है| वैसे ही "ब्रह्मा" से सम्बंधित जो टॉपिक्स है|

4.जब कोई भी पॉइंट वेरीफाई कर रहे हो तो उस "सच्ची गीता" पॉइंट से ठीक पहले और उसके ठीक बाद में ओरिजिनल मुरली में क्या क्या आया है, उस पर ध्यान देना चाइए| यह बहुत जरुरी है, जिससे काफी राज़ खुल जायेंगे|

5. उसी तरह "सच्ची गीता" के जो पॉइंट् है उसमें बीच बीच में "..." मिलेगा, एक ही पॉइंट में ऐसे 2 - 4 बार भी मिलेगा| उस "..." में, ओरिजिनल मुरली में क्या बताया है वह समझो पढ़के अच्छे से|

6. "सच्ची गीता" पॉइंट में, बीच बीच में इन लोगोने ब्रैकेट्स के अंदर कुछ भी लिखा है जो ओरिजिनल मुरली में नहीं है| वह क्यों लिखा है उस पर ध्यान दो|

7. बाकी ज्यादातर पॉइंट्स ऐसे हैं कि जिनका मुरली तारीख रिवाइज्ड है, ओरिजिनल नहीं| अब उनका ओरिजिनल निकालना थोड़ा मुश्किल है| फिर भी, सिर्फ वह पॉइंट पढ़ने से भी काफी समझ में आजाता है थोड़ा प्रैक्टिस के बाद कि उसमें क्या गड़बड़ किया होगा| जैसे कि एक पॉइंट है "प्रजापिता जरूर यहाँ ही होगा| उनका अंतिम जन्म लेखराज है| वह तो प्रजापिता बन नहीं सकता"| इसका टॉपिक है "प्रजापिता (साकार)"| तो यहाँ साबित कर रहे कि दादा लेखराज 'प्रजापिता" नहीं है| ध्यान से पढ़ो, प्रजापिता का ही अंतिम जन्म लेखराज बताया उसमें और जब वह लेखराज था 60 साल तक, तब प्रजापिता नहीं था, प्रवेशता के बाद 'प्रजापिता" बना, नाम बदली किया जाता है अडॉप्ट करने के बाद| इसके लिए बाबा ने शादी का भी उदहारण दिया है दूसरी मुरली में | इसका ओरिजिनल मुरली देंगे बाद में|

हर टॉपिक का हर पॉइंट गलत है सच्ची गीता में| हर एक का पोस्ट बनाने में टाइम लगता है| इसीलिए यह सब बाद में टॉपिक बाय टॉपिक वेरीफाई करेंगे| पहले कुछ इम्पोर्टेन्ट पॉइंट्स पर ध्यान देते|

अगला पॉइंट- "सच्ची गीता" में पेज नंबर 57 , टॉपिक "राम फेल" में तीसरा पॉइंट जो इस तरह है,
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जो ओरिजिनल मुरली में कुछ इस तरह आया है,

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सबसे पहले एक बात साफ़ कर दें कि हम पीबीकेज के खिलाफ नहीं है| सब जानते हैं कि पीबीकेज में, ख़ास लिटरेचर को लेके दीक्षित बाबा काफी स्ट्रिक्ट है| कोई भी अपनी मर्जी से कोई भी तरह का लिटरेचर नहीं बना सकता है| हर छोटी सी छोटी लिटरेचर भी पास् करने में काफी वक़्त लगता है| ट्रान्सलेशन्स हो, "सच्ची गीता" हो सब दीक्षित बाबा से पास् करने के बाद ही छपता है| जिन लोगों ने भी यह किताब बनाने की सेवा की है, उन्होंने सिर्फ डायरेक्शन फॉलो किया है और सेवा समझके दिल से काम किया है| तो उनकी कोई गलती नहीं है| हम खुद पीबीके थे लम्बे समय तक|

अब पिछले पोस्ट का 'राम फेल' वाला पॉइंट देखते है| काफी इंटरेस्टिंग पॉइंट है|

1."सच्ची गीता" में जहाँ से इन्होने पॉइंट शुरू किया है, उसके ठीक पहले 8, 108, 16108 की बात हो रही है| ख़ास 8 की माला की| फिर उनकी तुलना में बताया कि रामचंद्र फेल होता है| बाकी सभी मालाओं की तुलना में बताया| अब इतनी बड़ी बात छिपा दी "सच्ची गीता" में| "जैसे" शब्द को भी उड़ा दिया| ऐसे अधूरे पॉइंट बनाओगे? उसी तरह जहाँ "सच्ची गीता" में इन्होने पॉइंट ख़त्म किया है, उसके ठीक बाद में यह भी बताया ओरिजिनल मुरली में कि नापास होने के कारण 2 कला काम हुए, क्षैत्रिय भी कहलाये और देरी से राज्य मिलता है त्रेता में| यह भी छिपा दिया "सच्ची गीता" में|

2."सच्ची गीता" में आधा अधूरा पॉइंट दिखाके यह बताते कि क्षत्रिय तो सब है, फ़ैल तो सब होते हैं ना, उसमें राम सबसे पहले फेल होगया तो वह अनुभवी बन गया, उसको अगले जन्म में बाण मिले वर्से के रूप में वगैरा| सब बकवास| वह भी अज्ञान के बाण मिले वर्से में?

3.सबसे पहली बात समझना चाइए कि आदि में यह (दीक्षित जी) थे ही नहीं| दूसरी बात, आदि में कोई फेल कैसे हो जायेगा? अरे भाई, पहले पढाई तो शुरू होने दो| सीधा फेल होगया? बाबा ने कराची से 1947 या उसके बाद मुरली चलाना शुरू किया| दीक्षित जी का जन्म 1942 में हुआ था|पहले पढ़ाई पूरी हो, फिर परीक्षा हो फिर रिजल्ट निकले, उसके बाद पास या फेल का पता चलता है ना| रिजल्ट तो अंत में ही निकलेगा| वर्से में कोई बाण नहीं मिलता, वर्सा तो अगले जन्म में या इस जन्म के अंत में मिलेगा जो मुक्ति-जीवन मुक्ति का वर्सा है|
अपना ही ज्ञान चला है इनका| लगता है, गलत बोर्ड में एग्जाम देने आगये है यह, सिलेबस तक नहीं पता इनको|
अभी इस तरह के 'राम के फेल होने के बारे में' कम से कम 200 से ज्यादा पॉइंट्स मिले हैं अभी तक मुरली में और "सच्ची गीता" में भी| उसमें से 3-4 भी देख लिया ना तो सब क्लियर हो जाएगा|

4.एक मुरली में एकदम साफ़ बताया कि 'क्षत्रिय तो तुम भी हो (इस वक़्त माया से लड़ने वाले ) लेकिन तुम पास् हो जाते हो और रामचंद्र फेल होता है’| हम बच्चों से तुलना करके बताया| जो क्षत्रिय ही रह गया, लड़ते लड़ते ही रह गया, जीत नहीं पाया और रिजल्ट भी निकल गया| तो उस बात के यादगार में 'बाण' दे दिया| कुछ मुरली में यह भी बता दिया कि शास्त्रकारों ने इस बात को स्थूल में उठा लिया फिर उसको हिंसक क्षत्रिय बना दिया| बाकी हम 9 लाख देवता बन गए पास् होके| एक मुरली में यह भी बताया रिजल्ट के यादगार बनते हैं| ऐसे नहीं आदि में फेल हो जाते है और उसका यादगार भी बनता है|
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जब यह सब बातें बाहर आईं तो वीसीडी में दीक्षित जी ने यह भी बोल दिया "राम अंत में भी फेल होगा|आदि सो अंत"| डेढ़ साल पहले की वीसीडी है| एकदम से यु टर्न लिया, पहली बार ऐसा कुछ बोल दिया| अंत में फेल, फिर भी नंबर 1? वीसीडी दिखाएंगे, चिंता मत करो|

5.सिर्फ रामचंद्र की ही बात नहीं है, जब जब शंकर की भी बात आती है मुरली में, हमेशा ब्रह्मा और विष्णु के साथ तुलना करके ही बात करते है मुरली में| उसमें भी यह सच्ची गीता में आधा अधूरा छाप देते है| शंकर के बारे में फिर कभी बात करेंगे डिटेल में|

6.इसमें एक और सबसे मुख्य बात समझना है, इस पॉइंट में कम से कम इतना तो समझ में आरहा है कि 8 सजा नहीं खाते है और रामचंद्र को सजा खानी पड़ी| एकदम क्लियर बताया तुलना करके| इसका मतलब रामचंद्र 8 में तो नहीं है ना जो सजा खायेगा| फिर वह कैसे नंबर 1 बन गया? क्या 7 कोई आदि में पास् हुए थे, जब राम फेल हुआ था? और अंत वाले 8 अलग है क्या? हम क्या समझें अब इस मुरली से? 8 से तो रामचंद्र सीधा बाहर हुआ|

लेकिन असलियत में, सिर्फ सजा खाने की बात नहीं है, वह तो नापास होगया| 33 मार्क्स भी नहीं मिले बताया दूसरी मुरली में| अब इसका भी कोई बेहद का अर्थ है क्या? कुछ भी नहीं| यह तो पूरा 9 लाख से बाहर हुए| अभी उनका 83 वा ही जन्म चल रहा है| पहला जन्म नहीं मिलता ब्राह्मण का, ब्राह्मण ही नहीं बने (इसके सम्बंधित पॉइंट्स देंगे बाद में)| तो यह 83 जन्म लेंगे| इस बात पर विस्तार में देखेंगे फिर कभी|

अगला पॉइंट तो सबका बाप है| उसी टॉपिक में 'राम फेल' में पहला और दूसरा पॉइंट देखो| एक ही मुरली के पॉइंट है, एकदम एक के बाद एक आती हैं ओरिजिनल मुरली में, उसको तोड़के 2 बनाया, अर्थ भी अलग अलग लगाया “सच्ची गीता” में| वास्तव में, वह दोनों पॉइंट्स बहुत ही जुड़े हुए है| स्कैन (scan) सेक्शन में मिलेगी उसकी ओरिजिनल मुरली, डाउनलोड करो|

http://PBKs.info/Streaming/MP3/bma/orgl ... 3-7-68.pdf

BKs ने इस मुरली को बाबा दीक्षित के पक्ष में थोड़ा बदल दिया है- http://www.bkmurlitoday.com/2019/07/bra ... Hindi.html
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Re: PBKs - 'Sacchi Gita Khand 1' EXPOSED [Hindi]

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"सच्ची गीता" में, पु. 57 में, टॉपिक 'राम फेल' में पहला और दूसरा पॉइंट:
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पहले समझते कि इस टॉपिक में PBKs क्या बताना चाहते है, जो नाम दिया 'राम फेल'| जहाँ तक हमे लगता है, BKs शुरू से ही एडवांस के खिलाफ यही बात उठाते थे 'राम तो फेल होता है'| क्यों की उन्होंने काफी मुरलियो में सुना हुआ है, यह बहुत ही आम पॉइंट है मुरलियों में| अब दीक्षित जी को जवाब देना पड़ेगा| तो इनका जवाब था, "क्षत्रिय तो सब हैं ना, माया से कोई बचता है क्या? फाइनल में थोड़ी फेल हुआ| यह थोड़ी न बोला फेल हो जायेगा| होगया बोला, मतलब आदि में फेल हुआ| फिर 1976 से पूरा निश्चय बुद्धि बन गया| अब अंत में थोड़ी फेल होगा| आदि में ज्ञान नहीं था, बुद्धिमान आत्मा होने के कारण संशय आया वगैरा| फिर बताते कि पहले पहले फेल हुआ तो अनुभवी बन गया| फिर उसको शिवबाबा ने वर्सा भी दे दिया तीर-कमान के रूप में, 'जाओ अपना कमाओ खाओ' करके| फिर वह ज्ञान के बाण मारता रहता है BKs को 1976 से जबसे त्रेता का शूटिंग (जो होता नहीं वास्तव में ऐसा कुछ शूटिंग वगैरा) शुरू होता है| इसके यादगार में कथा-कहानी, बाण की निशानी वगैरा बने भक्तिमार्ग में"|
तो इस तरह जवाब तैयार हुआ, इसी जवाब के लिए फिर यह टॉपिक भी बना सच्ची गीता में|
वास्तव में, पुरुषार्थी स्टेज का यादगार बनते नहीं है वैसे, ब्राह्मण ऊपर नीचे होते रहते इसीलिए अलंकार सब देवताओ को देते है| इसीलिए ब्रह्मा का भी नहीं बनता, विष्णु के रूप में बनता है यादगार, पूजा भी|

अगर ओरिजिनल मुरली पढोगे पेज 3 के मध्य में, यह दोनों एक ही मुरली के पॉइंट्स और बिलकुल एक के बाद एक आते हैं, जैसे पिछले पोस्ट में बताया था|
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तो वहां बताया जा रहा कि 'रामचंद्र ने जीत नहीं पाई (मतलब फेल) इसीलिए उनको क्षत्रिय की निशानी दे दी है| (वैसे) तुम भी क्षत्रिय हो ना| जो माया पर जीत पाते हो"|
तो दोनों पॉइंट्स मिलाके पढ़ने से कोई अनपढ़ भी समझ सकता कि इसमें रामचंद्र के साथ हम बच्चों (बाबा के 9 लाख बच्चे) की तुलना करते हुए बताया कि 'रामचंद्र ने जीत नहीं पाई और तुम माया पर जीत पाते हो लड़ाई लड़ाई करते करते आखिर, तब तक तुम भी क्षत्रिय ही हो, लेकिन आखिर में पास् (पुरुषार्थ के लिए टाइम भी दिया हुआ है ना)"| सिर्फ 2 लाइन में इतना क्लियर बताया मुरली में|

अब इसको "सच्ची गीता" में कैसे दिखाया? वैसे ही दिखाया जो उनका टॉपिक बनाने का मकसद था| ऐसे कोई पॉइंट बनाता क्या, जो जिसमें 2 लाइन बिलकुल एक के बाद एक है और उनके बीच में एक शब्द भी एक्स्ट्रा नहीं आया| उनको तोड़के 2 अलग अलग पॉइंट्स बना दिया कुछ इस तरह,

*रामचंद्र ने जीत नहीं पाई इसलिए उनको क्षत्रिय की निशानी दे दी है| मु.23.7.68 पु.3 मध्य)
*तुम सभी क्षत्रिय हो ना, जो माया पर जीत पाते हो| ....राम को बाण आदि दे दिए हैं| हिंसा तो त्रेता में होती नहीं| (तो कहाँ) (मु.23.7.68 पु.3 मध्य)


पहला पॉइंट में सिर्फ इतना दिखाया कि 'राम ने जीत नहीं पाई या फेल हुआ'| इसको देख के PBKs समझेंगे- सही बात है, आदि में फेल हुआ ना, हमको पता है| फिर वही पाठ दूसरों को भी पढ़ाएंगे|

दूसरे पॉइंट में यह साबीत किया कि 'क्षत्रिय तो सब है, सिर्फ राम ही नहीं", मतलब सब फेल होंगे, आखरीन फिर माया पर विजय पा लेंगे, जिसमें राम तो सबसे ऊपर है विजय पानेवालों में |क्योंकि उसीको तो बाण दिखाते ना| मतलब शिवबाबा कहते कि "बाण देने का मतलब फेल हुआ"| दीक्षित जी कहते कि "राम को बाण दिया इसीलिए वह सबसे पहले पास् होता है, आगे जाता है एडवांस में एकदम| मतलब एकदम उलटा| हर बात में शिवबाबा के, मुरलियों के खिलाफ बात करना ही 'एडवांस नॉलेज है'|

सेकंड पॉइंट में देखो। "..." डाल दिया| उसी बीच में ही तो बताया बाण क्यों दिया| वहां बताया ओरिजिनल मुरली में "कम मार्क्स से पास् होनेवालों को चंद्रवंशी कहा जाता है| इसलिए ", यह आया उस बीच में जिसको "सच्ची गीता" में उड़ा दिया| जिसमें साफ़ बताया, नापास या कम मार्क्स लेनेवाले को क्षत्रिय कहते और इसीलिए राम को बाण दिखाते है| ध्यान से देखना वहां "इसलिए" भी उड़ाया| गफलत करने में एक्यूरेसी देखो इनका| मतलब कोई भी व्याख्य में, कोई भी शब्द उड़ा देंगे, जैसे इनको चाइए| एक तो इम्पोर्टेन्ट पॉइंट उड़ाया "..." डालके| फिर "इसलिए" भी उड़ाने से अर्थ बदल गया| अर्थ ऐसे हो जाता कि "राम ने जो माया पर जीत पाई तो उसको बाण आदि दे दिया"| जमीन आसमान का अंतर है सच्चाई में और 'एडवांस नॉलेज' में|
---- to be continued
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पिछले पोस्ट को आगे बढ़ाते हुए :

दूसरे पॉइंट में आखिर में लिखा है, "हिंसा तो त्रेता में होती नहीं| (तो कहाँ?)"

PBKs ने ब्रैकेट में लिख दिया "तो कहाँ?"| मतलब यह बताना चाहते कि यह सारे शास्त्र संगमयुग के आधार पर बनें है| संगमयुग में हिंसा होती है? बेहद में क्या? कुछ भी| पहली बात तो पुरुषार्थी स्टेज के कोई यादगार बनते ही नहीं| यह सब बड़े बड़े गपोड़े हैं| 'शूटिंग पीरियड", "संगम का यादगार", "बेहद का अर्थ लगाना" वगैरा| इन चीजों से सिर्फ PBKs ही नहीं, हर पार्टी वाले इन्फेक्ट हो चुके हैं| इनसे बड़ी दुर्गति हुई है| यह बड़े बड़े अस्त्र है अज्ञानता के| या माया के कहो|

वास्तव में, रिजल्ट के बाद के अंतिम समय के यादगार बनते हैं| वह भी देवताओं के रूप में| संगम का किसीको याद ही नहीं रहेगा द्वापर में| द्वापर से वह ड्रामानुसार कुछ न कुछ बनाते जाते साक्षात्कार के आधार पर, जो वास्तव में यादगार बन रहे होते हैं| और यह यादगार overall और eternal ड्रामा ऊपर बनते हैं, जो हर कल्प में बनते रहेंगे| उसमें भी मुख्य रूप से hero और villain के बनते हैं| मुखियों का ही गायन होता है| संगमयुग या सतयुग के नहीं बनते यादगार| शास्त्रों में तो सब झूठ है ड्रामानुसार| जैसे बाबा ने बताया 'क्षत्रिय' का मतलब जो यहाँ फेल हुआ| शास्त्रकारों ने इसको स्थूल रूप में दिखाया| उस समय जो नामीग्रामी अस्त्र रहा होगा, वह दे दिया राम को| बाण दे दिया| तो उन्होंने हिंसक बना दिया| अनजाने में हिंसक बना दिया ड्रामानुसार, लेकिन यादगार तो बन गया ना फिर भी| साथ में उससे दुर्गति भी होती है भक्तिमार्ग में| यही तो ड्रामा है| इसीलिए उस दूसरे पॉइंट में आखिर में बताया, "त्रेता में कोई हिंसा नहीं होती"| PBKs ने समझ लिया संगम में होती है| इस पॉइंट से ठीक बाद में ओरिजिनल मुरली में पढ़े तो समझ में आएगा|
इस मुरली में एक और पॉइंट है "राम राजा, राम प्रजा, राम साहूकार", इस गायन का राज़ भी फिर कभी देखेंगे| यह भी समझने लायक पॉइंट है|

अब इस क्लास (23.7.68) का जो क्लैरिफिकेशन दिया है दीक्षित जी ने वह सुनो 1092 में|

https://www.youtube.com/watch?v=ePedSUH6Bkg

वीसीडी में 6.40 मिनट में जाओ, असली मुरली में आया 'तुम जानते हो बाबा अमरकथा हमको सुना रहे है| ...न शंकर सुनाते है| ..शिव-शंकर मिला देते है| यह सभी है भक्तिमार्ग"| इस पॉइंट को अलग अलग करके अपना ही क्लैरिफिकेशन देते है वीसीडी में| मुरली में आया, “शिव-शंकर मिला देते है, यह है भक्तिमार्ग”| इस पर भी अपना ही क्लैरिफिकेशन देंगे| फिर बाबा कहते है, "तुमको भक्ति का नाम नहीं सुनना है| कान बंद नहीं करना है, समझाना है, शास्त्र आदि सभी हैं मनुष्यमत"| इस पर भी यह अपना ही क्लैरिफिकेशन देंगे| जब कि यह एक ही पॉइंट है जिसका सार है 'शंकर कहाँ से अमरकथा सुनाएगा' मतलब शंकर नहीं सुनाता, शिव के साथ शंकर को मिलाना भक्तिमार्ग है| यह सब जुड़े हुए पॉइंट्स है| वीसीडी में एकदम अलग अलग कर दिया, अर्थ का पूरा अनर्थ कर दिया|

अब असली बात पर आते है, मुरली में आता है "रामचंद्र ने जीत नहीं पाई"| यह पॉइंट तो पढ़ते भी नहीं वीसीडी में, देखो 17.30 से 19.15 मिनट में| राम का नाम नहीं लिया, उल्टा 9 कुड़ी के ब्राह्मण वगैरा क्या क्या बताया, आखिर चंद्रवंशी बता दिया जो जीत नहीं पाई|

फिर बात आती है मुरली में, "तुम सभी क्षत्रिय हो ना| जो माया पर जीत पाते हो"| वीसीडी में, इस पॉइंट को भी एकदम उल्टा पढ़के सुनाते है| 19.18 मिनट में देखो| कहते है, माया से युद्ध करते करते हार जाते हो, फिर आखरीन माया पर जीत भी पाते हो| असली बात पढ़ेंगे नहीं, उल्टा करके जरूर सुनाएंगे|

फिर मुरली में आता है "कम मार्क्स से पास होनेवाले को चंद्रवंशी कहा जाता है| इसिलिए राम को बाण आदि दे दिया है"| इसमें भी राम का नाम लिया ही नहीं, ठीक से पढ़ते ही नहीं| 20 mins से सुनना चाइए, यह (राम) वाला पॉइंट 20.30 mins से आता है| फिर घुमा फ़िराक़े, @23.40 mins में बोलते " फिर गायन हो जाता है फेल होने वाले भी पास हो सकते है"| कुछ भी|

फिर 26.45 मिनट पर बोलेंगे, “ऐसी कोई बात नहीं जो तेरे ऊपर लागु न होती हो”, अपने लिए कहते है| इस पॉइंट का राज़ भी समझेंगे बाद में, सच्ची गीता में है 'ऐसी कोई बात नहीं जो तेरे ऊपर लागू न होती हो"|

वैसे वीसीडी में तो भयानक blunders करते है यह | कभी टाइम मिला तो कुछ और देखते है|
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एक पॉइंट है "सच्ची गीता" में, जिसको 2 जगह अलग अलग टॉपिक में डाला है और दोनों जगह उसको सिर्फ और सिर्फ दीक्षित जी ने खुद के लिए लागू किया है| दोनों जगह अधूरा पॉइंट डाला है|

टॉपिक का नाम '"बाप के कर्तव्य", पु.35 में, आखरी से 2रा पॉइंट,
तुम हो जैसे लाइट हाउस, सभी को ठिकाने लगाने वाले|...ऐसी कोई बात नहीं जो तुमसे लागू नहीं होती है| मु.14.4.68 पु.3 अंत)

टॉपिक का नाम 'नया पार्ट', पु.49 में, आखरी से 3रा पॉइंट,
ऐसी कोई बात नहीं जो तुमसे लागू नहीं होती है| तुम सर्जन भी हो, सर्राफ भी हो, धोबी भी हो| सब खासियतें (विशेषताएं) तुम्हारे में आजाती हैं| (मु.14.4.68,5.5.69 पु.3 अंत)

यह सबसे बड़ा हथियार है दीक्षित जी का| इसके आधार पर खुद की खूब महिमा करते रहते है हमेशा| मतलब हर बात इनके ऊपर ही लागू होगा| यह भगवान् भी है, बड़े ते बड़ा रावण भी है, राम भी, कृष्ण भी, नारायण भी, ब्रह्मा भी प्रजापिता, शंकर भी, 5 विष्णु में भी यह मुख्य विष्णु है | मतलब सारी महिमा, सारे पार्ट खुद के लिए रखेंगे| बच्चों को कुछ नहीं देंगे| बच्चे (PBKs) अपना तन-मन-धन लगाके, इनकी महिमा सुनेंगे इनके ही मुख से 24 घंटा| क्या बात है! खुद को बीज, बाप भी कहते ना, बीज में सारे गुण है वगैरा|

यह अकेले लाइट हाउस है, सर्जन, सर्राफ,धोबी सब यह है खुद| बच्चों को तो छोड़ ही दो, यह टाइटल "शिव" को भी नहीं देते| कहते कि साकार की बात है साकार की| जहाँ भी ‘बाप’ शब्द आया मुरली में तो भी खुद पर लागू करेंगे, जो वास्तव में "शिव" के लिए होते हैं|

अब ओरिजिनल मुरली में देखो,
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तो यह सब बातें वास्तव में हम सब बच्चों के लिए हैं, नंबर वार पुरुषार्थ अनुसार| वास्तव में सारे टाइटल "शिव" के है, जो सब बच्चों को देता रहता हमेशा| इसीलिए बोला 'सब खासियतें तुम्हारे में आजाती हैं| 'लागू' होने का मतलब बाप (शिव) के सारे टाइटल हमारे ऊपर भी आजाते|
लेकिन दीक्षित जी ने इस अधूरा पॉइंट का भी नया वर्शन बनाया, जो खुद के लिए हमेशा कहते रहते जैसे कि मुरली में ही आया हो, "दुनिया की कोई ऐसी बात नहीं जो तुम से लागू न होती है"|
देखा! एक तो असली बात को आधा अधूरा उठाया, फिर उसमें ऊपर से बातें डाली, फिर बोल दिया, बाप के ऊपर हर बात लागू होती है दुनिया की| मतलब वह सब कुछ है और वह कुछ भी करेगा तो भी चेलगा| क्या बात है!

वास्तव में देख जाए तो मुरली में "तुम", "तुम्हारे" जो बताया जा रहा है हम बच्चों के लिए, उस "तुम" में 'दीक्षित जी' है ही नहीं| 9 लाख से बाहर जो है| लेकिन उल्टा उन्होंने सारे टाइटल चुरा लिया| और आधा अधूरा पॉइंट बनाके, असली बात छिपाई कि यह हम सब बच्चों के लिए बताया है, नंबर पुरुषार्थ अनुसार|

उन टाइटल में भी, ख़ास यह धोबी बन बैठ गए| बाकी PBKs को भी कहते रहते हैं तुम धोबी घाट खोलके मत बैठ जाना| यह तो सिर्फ हमारा टाइटल है| हम सबको पतितों से पावन बनाएंगे| सबको पता ही होगा 'एडवांस नॉलेज' में धोबी (Washerman) का मतलब क्या बताया हैं| नहीं तो, पता कर लो| कितना डिससर्विस कर दिया 40-45 साल में खुद धोबी बनके| कहते कि यज्ञ के आदि में भी इन्होने धोबी घाट चलाई थी|

जब कि न ही वह टाइटल इनके लिए है, न ही धोबी का अर्थ जैसे यह समझते है वह है|
यह टाइटल तो शिव का है, फिर हम सब बच्चों का भी| धोबी का मतलब, दूसरी एक मुरली में बताया, 'योगबल से सारी सृष्टि को पवित्र बनाने वाले, 5 तत्वों सहित'|
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तो जैसे पिछले पोस्ट में देखा, दीक्षित जी ने अपने लिए एक बात बनाई "दुनियाँ में ऐसी कोई बात नहीं जो तेरे ऊपर लागू न होती हो"| उसमें भी "तुम" को "तेरे" में बदली करके बोलते है| इस पॉइंट को हर जगह, हर वीसीडी में बताते हुए अपनी महिमा करते रहते है, भले उस क्लास की कागज की मुरली में यह बात आया भी नहीं हो| जैसे कल देखा था वीसीडी 1092 में| फिर "धोबी" का खुद का गलत अर्थ लगाके वैसे एक्ट भी करते है|

वास्तव में, ओरिजिनल मुरली में "दुनियाँ" की बात नहीं बताई, वह तो शिव के टाइटल की बात बताई गई है| फिर इन्होने जोड़ दिया "दुनियाँ में ऐसी कोई...."| सब ने सुना ही होगा कई बार वीसीडी में|

अब 14.4.68 का क्लैरिफिकेशन में सुनो वीसीडी 911 में,

https://www.youtube.com/watch?v=bL0nqvCSeLI

ध्यान से सुनना, @ 1.05.30 मिनट से| क्लैरिफिकेशन ही नहीं दिया जो ओरिजिनल मुरली में बताया "महिमा भी तुम्हारी हो जाती है; परन्तु नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार| जैसे कर्तव्य करते हो ऐसा गायन हो जाता है"| सिर्फ पढ़ते पढ़ते चले गए| यह तो बच्चों के लिए बताया ना, तो क्लैरिफिकेशन नहीं दिया| बाकि "ऐसी कोई बात नहीं जो तुम से लागू नहीं होती", इसका क्लैरिफिकेशन तो इससे पहले ही कई वीसीडी/कैसेट में दिया गया है, सच्ची गीता में भी पहले ही छप चुका था| तो असली बात छिपा दी वीसीडी में भी|

अब फिर से सुनना वापस @ 1.05.30 मिनट से, ध्यान से देखना वीडियो में, "ऐसी कोई बात नहीं जो तुम से लागू नहीं होती है" इसको अच्छे से अंडरलाइन करके रखते है| "धोबी वाली बात को भी"| अरे भाई, यह तो काम की चीज है, अज्ञान फैलाने के लिए चाइए न| वैसे, पहले ही "सच्ची गीता" में छप चुका था यह पॉइंट| फिर भी अंडरलाइन किया वापस| उसके आगे की बातें, "महिमा भी तुम्हारी हो जाती है; परन्तु नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार| जैसे कर्तव्य करते हो ऐसा गायन हो जाता है", इसको तो अंडरलाइन तक नहीं किया| क्लैरिफिकेशन देना तो दूर की बात है|

एक मज़ेदार बात, ओरिजिनल मुरली में "सी ऑफ'' करने की बात आई कागज की मुरली में, ऊपर वाला पॉइंट से थोड़े पहले| जो वास्तव में "see off" है इंग्लिश में, "sea off" नहीं| दीक्षित जी ने "sea off" समझके क्या मस्त क्लैरिफिकेशन दिया "ज्ञान सागर" के बारे में, "sea" माना समुन्दर ना| वीसीडी में सुनो, @58.08 मिनट से @59.25 मिनट तक| क्या मज़ेदार ज्ञान है बेहद का! हर बात बेहद में|

अगर यह पता करना है कि कौनसी मुरली का क्लैरिफिकेशन कौनसे दिन दिया, कौनसी वीसीडी में है, तो इसमें जाओ- http://PBKs.info/ , वहां से "Classes List" डाउनलोड करो|
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एकदम मस्त पॉइंट है, मज़ा नहीं आया तो बताना:

"सच्ची गीता" में, टॉपिक "लक्ष्मी-नारायण" में, पु.86 में पहला पॉइंट:
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"बाप आ करके हमको विश्व का मालिक बनावेंगे| ...इस जन्म की बात है न"| (मु.रात्रि क्ला.30.4.68 पु.1 आदि)
पढ़के क्या लगेगा? लगेगा कि "बाबा आकर हमें विश्व के मालिक बनाते है जिसकी यहाँ बात हो रही है| वह भी इसी जन्म में इसी शरीर से बनेंगे"| ऐसे ही लगेगा, यह पॉइंट बनाया ही इसीलिए| टॉपिक का नाम देखो, "लक्ष्मी-नारायण"| PBKs में तो समझते हैं हम इसी शरीर से लक्ष्मी-नारायण बनेंगे, नर से नारायण का मतलब भी इसी तरह लगाते है| "विश्व का मालिक" का मतलब PBKs के हिसाब से इसी जन्म में| PBKs कहते कि 'सतयुग' में थोड़ी विश्व होता है, विश्व तो अभी है| फिर यह भी कहते कि "शरीर बर्फ में दबे रहेंगे,फिर आत्मा परमधाम से आकर प्रवेश करेगी तो नर से नारायण बन गए"| अब वहां कहा से विश्व आएगा? मूंझे हुए है खुद अपनी ही बातों में| बाकि कह देंगे, संगमयुगी लक्ष्मी-नारयण की बात है शूटिंग पीरियड की| कुछ भी!

अब ओरिजिनल मुरली देखते,
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मज़ा आया होगा पढ़के| ओरिजिनल मुरली में बताया कि "स्वप्न में भी ऐसा ख़याल न था बाप आ करके हमको विश्व का मालिक बनावेंगे"| यहाँ बच्चे और दादा अनुभव सुना रहे हैं कि "उनको ऐसा ख़याल भी न था कि एक दिन ऐसा भी होगा", मतलब किसीने सोचा होगा कि “हम भगवान् से पढ़ेंगे"?

"सच्ची गीता" में तो ऐसे दिखाया कि "हमको विश्व का मालिक" बनाने की बात हो रही है मुरली में| उसमें भी ध्यान से देखो, ओरिजिनल मुरली से पहला लाइन तो उड़ाया ही है, साथ में, एक ही व्याख्य में आधे से शुरू किया| "कहते हैं स्वप्न में भी ऐसा ख़याल न था", इसको छोड़के, सीधा लिख दिया "बाप आ करके हमको विश्व का मालिक बनावेंगे"| भाई, कम से कम "..." तो डाल देते| एक ही लाइन (sentence) में आधे से शुरू करोगे?

आगे देखना, सच्ची गीता में "..." डाल दिया बीच में, "इस जन्म की बात है न", इससे पहले| उस "..." में ओरिजिनल मुरली में आया "कब भी किसको ख्याल नहीं आ सकता"| मतलब, "इस जन्म की बात है ना" का मतलब है, इस जन्म में ऐसा स्वप्न में भी किसीने सोचा नहीं था| ऐसे नहीं कि "इसी जन्म में विश्व के मालिक बनने की बात हो रही है"| अर्थ का पूरा पूरा अनर्थ| कुछ तो रहम करो! ओरिजिनल मुरली में थोड़ा आगे पढ़ो और 2-4 लाइन तो सब क्लियर होगा|

कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया बात को| ऊपर से दीक्षित जी संस्कृत के श्लोक सुनाते रहते वीसीडी में बीच बीच में, जिससे प्रभाव पड़ जाता है लोगों पर| असलियत में, इनको हिंदी ही नहीं आती ठीक से|

अनुभव सुनाने वाली बात को, जो इस जन्म की अनुभव है, उसको तोड़ मोड़ करके बाबा दीक्षित जी ने यह साबित कर दिया कि हम इसी शरीर से इसी विश्व में राज्य करेंगे|

हम PBKs हमेशा कहते रहते कि "बाप के बच्चे प्रूफ और प्रमाण के बिना कोई भी बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते"| जैसे कि मुरली को एकदम मानने वाले हो| इतना प्रूफ काफी है कि और चाइए?

वास्तव में, विश्व का मालिक का मतलब सतयुग को ही विश्व कहा गया है| उस समय हमारे अलावा कोई नहीं रहेंगे, तभी लक्ष्मी-नारायण राज्य करेंगे| वह भी राधा-कृष्ण से बड़े होके लक्ष्मी-नारायण बनते है|

कुछ इस तरह पॉइंट बनाया "सच्ची गीता में",,
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"सच्ची गीता" में, टॉपिक "शिवबाप की प्रवेशता", पु.22 में,
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ओरिजिनल मुरली में ऐसे आया:
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1. जो हाईलाइट करके दिखाया ओरिजिनल मुरली में, उसको "सच्ची गीता" में उड़ाया है जानबूझकर| वह 2-3 लाइन दादा लेखराज के लिए बताये गए|

2. इसी 2-3 लाइन में यह भी क्लियर किया ओरिजिनल मुरली में कि साधारण का मतलब गरीब नहीं| वैसे दादा लेखराज बहुत गरीब था बचपन में, उसीको फिर गावड़े का छोरा भी बता दिया इसी मुरली में| यह सब "सच्ची गीता" में गायब कर दिया| फिर दीक्षित जी कहते कि दादा लेखराज असाधारण था, मतलब साधारण नहीं था| शरीर से भी गोरा चिट्टा, साहूकार भी था वगैरा| जो बकवास है, ऐसा कुछ नहीं है| वह तो लास्ट में साहूकार बना| लेकिन उसको भी साहूकार नहीं कहेंगे| 10-15 मुरलियों में बताया, साधारण का मतलब गरीब नहीं| "लखपति को आजकल साहूकार थोड़ी कहेंगे, साधारण कहेंगे" ऐसे भी बताया मुरली में| यह भी बताया हर जगह कि वह भी बड़े होने के बाद साधारण बना, मतलब थोड़ा साहूकार बना, पहले तो गरीब था| यह भी बताया उन सब मुरलियों में कि यह भी भट्टी बननी थी, इसीलिए ड्रामानुसार दादा लेखराज गरीब से साधारण बना ताकि बच्चों को संभाल सकें| इसीलिए, हमेशा यह भी कहते है मुरलियों में कि ड्रामा प्लान अनुसार साधारण (मतलब गरीब नहीं) तन में ही आते है शिव, ताकि भट्टी बनें, उनको संभाल पाए| यह सब बातें 10-15 मुरली में अब तक मिल चुके हैं, जो बार बार यही सब बातें रिपीट होते हैं| जैसे यहाँ भी वही सब बताया उन 2-3 लाइन में|

3.दीक्षित जी को यही नहीं पता कि "साधारण" का मतलब क्या है| यह समझते कि साधारण मतलब एकदम गरीब| फिर बताते कि यह खुद शरीर से, आर्थिक रूप से गरीब है तो इनमें ही आएंगे शिव| ऐसी बात है तो उड़ाया क्यों सच्ची गीता में? असाधारण तो आप हो बाबा दीक्षितजी, क्या ज्ञान चलाया! क्या लिटरेचर बनाया!

4. इस मुरली पॉइंट में, दीक्षित जी को बस "गावड़े का छोरा", यह शब्द चाइए, खुद को साबित करने के लिए| लेकिन कई मुरलियों में दादा लेखराज को "गावड़े का छोरा" बताया, जैसे कृष्ण को कहते| यह भी बताया कि गावड़े का छोरा कैसे था? हिस्ट्री बताई बचपन से लेके दादा लेखराज की| एक मुरली में फिर बता दिया, यह सारी दुनिया ही "गावड़ा" है, "हेल" है, ऐसे भी बताया हुआ है|

अगला पॉइंट - S.M.26.6.68.प्रा.क्ला. में पु.2 में पूरा ब्रह्मा के बारे में, उसको रथ बनाने के बारें में बताया| पु.2 में "साधारण" का क्लियर डेफिनिशन बता दिया कि "न बहुत गरीब न बहुत साहूकार", "न बहुत ऊंच न बहुत नीच"| पु.2 में बताया "शिवबाबा तो काला बनता ही नहीं, फिर उसको काला क्यों बना दिया| जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"|

पु.3 में भी "ब्रह्मा" को रथ बनाने के बारे में ही सब बातें हो रही हैं|

लेकिन इन सबके बीच में भी, दीक्षित जी ने 2 पॉइंट निकाल लिया इस मुरली से भी| वह भी पु.2 और 3 में से|, "सच्ची गीता" में टॉपिक "शिवबाप की प्रवेशता", पु.22 में| वह दोनों बात बिलकुल दादा लेखराज पर ही हैं| पु.2 और पु.3 में उसकी ही बात हो रही है|

इसको एक order में दिखाएँगे, "सच्ची गीता" के पॉइंट्स से ऊपर क्या आया, नीचे क्या आया, अगले पोस्ट में|
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Re: PBKs - 'Sacchi Gita Khand 1' EXPOSED [Hindi]

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S.M.26.6.68.प्रा.क्ला. में पु.2 V/S "सच्ची गीता" में टॉपिक "शिवबाप की प्रवेशता", (पु.22 में)
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S.M.26.6.68.प्रा.क्ला. में पु.3 V/S "सच्ची गीता" में टॉपिक "शिवबाप की प्रवेशता", (पु.22 में)
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"सच्ची गीता" में, टॉपिक "सारी महिमा संगमयुगी ल.ना. की
है", पु. 86 में:
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इसमें यह साबित करना चाहते है अलग से कोई "संगमयुगी ल.ना." भी होते हैं, जो बाबा दीक्षित खुद को समझते है, मुरलियों में और शास्त्रों में सिर्फ इन "संगमयुगी ल.ना." की ही महिमा है और वह सारे वीश्व के मालिक थे, सिर्फ सतयुग के नहीं|

अब ओरिजिनल मुरली देखो, (रिवाइज्ड S.M.30.3.2018)
https://brahmakumarismurlislogan.blogsp ... -2018.html
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ध्यान से देखो| संक्षिप्त में बताएँगे-
जो हाईलाइट किया है वह सब काम की चीज है, जिसमें सारे इशारे सतयुग के लिए है| जैसे "पुरानी दुनिया में यह तन भी पुराने हैं| नई दुनिया में सतोप्रधान नए तन होते हैं"| इसको "सच्ची गीता" में रखा ही नहीं| "नया तन" बोल दिया सीधा| इसके बाद "वह कैसे होते हैं", इसको उड़ाया, बीच में ही शुरू करते है अपना पॉइंट| सेनेटेन्स की कोई इज्जत ही नहीं| फिर बीच में से एक लाइन उड़ाया, "..." कर दिया, जो लाइन फिर से "नए तन" की बात कर रहा है| देखा कलाकारी!


"सच्ची गीता" में, टॉपिक "कंचनकाया इसी शरीर से यहीं बनेगी", , पु. 86 में:
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टॉपिक का नाम से ही समझ में आता कि इनके हिसाब से संगमयुग में ही हमारा शरीर भी कंचन बन जायेगा| इसीलिए इसमें ख़ास 2 लाइन लिया 'सच्ची गीता' में', 1-पुरुषोत्तम संगमयुग पर ही बनते है, 2- आत्मा और काय दोनों कंचन बनती हैं| बस अपना काम के 2 लाइन ख़ास रखा है उस पॉइंट में|

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